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10 मिनट में बचाई जा सकती थी बाघ से मकसूद की जान

दिल्ली के चिड़‍ियाघर में सफेद बाघ के बाड़े में गिरकर एक युवक ने अपनी जान गंवा दी. मकसूद नाम के इस युवक की दर्दनाक मौत के बाद अब चिड़‍ियाघर प्रशासन पर सवाल खड़े हो रहे हैं. सवाल इसलिए भी गंभीर हैं, क्योंकि मकसूद को बचाने के लिए प्रशासन के पास पूरे 10 मिनट का वक्त था, जिसे गंवा दिया गया.

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हादसे की खौफनाक तस्वीर
हादसे की खौफनाक तस्वीर

दिल्ली के चिड़‍ियाघर में सफेद बाघ के बाड़े में गिरकर एक युवक ने अपनी जान गंवा दी. मकसूद नाम के इस युवक की दर्दनाक मौत के बाद अब चिड़‍ियाघर प्रशासन पर सवाल खड़े हो रहे हैं. सवाल इसलिए भी गंभीर हैं, क्योंकि मकसूद को बचाने के लिए प्रशासन के पास पूरे 10 मिनट का वक्त था, जिसे गंवा दिया गया.

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जैसे ही मकसूद बाघ के बाड़े में गिरा, उसके बाद 10 मिनट तक प्रशासन के कर्मचारियों ने कोई कदम नहीं उठाया. ऐसे कुछ उपाय थे, जिसे अपनाकर युवक की जान बचाई जा सकती है.

सबसे पहले तो चिड़‍ियाघर में लटकने वाली सीढ़ी का इंतजाम होना चाहिए था. अगर रस्सी की मदद से बनाई गई सीढ़ी को बाघ के बाड़े में लटका दिया जाता, तो युवक की जान बच सकती थी. मकसूद के गिरने के बहुत देर बाद तक बाघ एकदम शांत ही रहा. ऐसे में यह उपाय कारगर साबित हो सकता था.

दूसरी बात यह कि बाघ को वक्त रहते नशे की सुई (Tranquilizer Gun) से बेहोश भी किया जा सकता था. इससे आसानी से बाघ पर काबू पा लिया जाता और मकसूद की जान बच सकती थी.

सात साल का सफेद बाघ अपने बाड़े में गिरे 27 साल के मकसूद को 15 मिनट से भी ज्यादा समय तक तड़पा-तड़पाकर मारता रहा, लेकिन उसको बचाने के लिए पांच मिनट के अंदर इस्तेमाल में आने वाली ट्रंक्युलाइजर गन मौके से करीब 250 मीटर दूर चिड़ियाघर के अस्पताल में पड़ी रही. ट्रैंक्युलाइजर गन को 'कैप्चर गन' या 'डर्ट गन' भी कहते हैं. खतरनाक जानवरों को बिना चोट पहुंचाए काबू में करने व पकड़ने के लिए देश के सभी चिड़ियाघरों व जंगलों में लंबे समय से ट्रंक्युलाइजर गन का इस्तेमाल किया जाता रहा है.

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इस गन में सुई की तरह गोली होती है, जो चुभते ही मिनटों में शरीर में नशीला केमिकल फैला देता है और जानवर बेहोश होकर गिर जाता है.

सरकारी नियम के मुताबिक खतरनाक जानवरों के पास ट्रंक्युलाइजर गन के साथ तीन कर्मचारियों की तैनाती होनी चाहिए. इन कर्मचारियों में एक कीपर, एक असिस्टेंट कीपर व एक अटेन्डेंट होने चाहिए. वे तब तक तैनात रहेंगे, जब तक चिड़ियाघर आम लोगों के लिए खुला रहता है. लेकिन राजधानी के चिड़ियाघर में सिर्फ दो ही ट्रंक्युलाइजर गन होने से उसका इस्तेमाल ही नहीं हो रहा था. वह अस्पताल में पड़ी रहती थी और कर्मचारी निहत्थे खतरनाक जानवरों के बाड़े के पास खड़े रहते थे.

चिड़‍ियाघर के कर्मचारी अगर फुर्ती से काम लेकर बाघ के बाड़े में लगे बैरियर को पार करने में मकसूद की मदद करते, तो भी शायद युवक को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती. बहरहाल, चिड़‍ियाघर प्रशासन ने कुछ उपाय न करके युवक को अपने हाल पर छोड़ दिया, जिसका नतीजा सबके सामने है.

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