नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) बिल के खिलाफ डॉक्टरों का प्रदर्शन जारी है. तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में जूनियर डॉक्टरों ने गुरुवार को धरना दिया. धरने पर बैठे उस्मानिया मेडिकल कॉलेज और गांधी अस्पताल के जूनियर डॉक्टरों ने एनएमसी बिल को वापस लेने की मांग की.
तेलंगाना में डॉक्टरों ने सोमवार को भी विरोध प्रदर्शन किया था. डॉक्टरों ने अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान कहा, 'हम एनएमसी बिल का विरोध कर रहे हैं. इस बिल को पूरी तरह से हटाया जाना चाहिए. इस एक्ट का उपबंध 51 और 52 ऐसे हैं, जिनके बाद फर्जी डॉक्टरों की बाढ़ आ जाएगी, जिससे जन स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा.'
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विधेयक को 17 जुलाई के दिन मंजूरी दे दी थी. विधेयक का मुख्य उद्देश्य मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के स्थान पर एक चिकित्सा आयोग स्थापित करना है. बताया जाता है कि इससे भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956 निरस्त हो जाएगा. चिकित्सा आयोग निजी मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में 50 फीसदी सीटों के लिए सभी शुल्कों का नियमन करेगा. जिससे प्रवेश शुल्क में कमी की उम्मीद जताई जा रही है.
क्यों हो रहा इस बिल पर हंगामा?
नेशनल मेडिकल बिल के 32वें प्रावधान के तहत कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर्स को मरीजों को दवाइयां लिखने और इलाज का लाइसेंस मिलेगा. जबकि इस पर डॉक्टरों को आपत्ति है क्योंकि इससे मरीजों की जान खतरे में पड़ जाएगी. इस बिल में एक प्रावधान यह भी है कि आयुर्वेद-होम्योपैथी डॉक्टर ब्रिज कोर्स करके एलोपैथिक इलाज कर पाएंगे. जबकि डॉक्टरों का कहना है कि इससे नीम-हकीम और झोलाछाप डॉक्टरों को बढ़ावा मिलेगा.
प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को 50 फीसदी सीटों की फीस तय करने का हक मिलेगा. जबकि डॉक्टरों का कहना है कि इससे प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. प्रावधान के अनुसार पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रैक्टिस शुरू करने के लिए डॉक्टरों को एक टेस्ट पास करना होगा. वहीं इसके विरोध में डॉक्टरों का कहना है कि एक बार टेस्ट में नाकाम रहने के बाद दोबारा टेस्ट देने का विकल्प नहीं है.