तेलंगाना विधानसभा चुनाव के तहत प्रचार बुधवार शाम पांच बजे थम जाएगा. केसीआर सत्ता को बरकरार रखने की कोशिशों में जुटे हैं. वहीं, कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष एकजुट होकर सत्ता के लिए जद्दोजहद कर रहा है. जबकि बीजेपी किंग बनने के बजाए किंगमेकर बनने की कोशिश में है. ऐसे में राज्य का 12 फीसदी मुस्लिम वोटर तय करेगा कि किस राजनीतिक दल का पलड़ा भारी रहेगा?
तेलंगाना के मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए कांग्रेस और सत्ताधारी टीआरएस- दोनों कोशिश कर रहे हैं. जबकि हैदराबाद इलाके के मुस्लिम मतदाताओं पर असदुद्दीन ओवैसी का जबर्दस्त असर देखा जा रहा है. राज्य के बाकी हिस्सों में कांग्रेस और टीआरएस के बीच मुस्लिम वोट बंटता दिख रहा है.
तेलंगाना के हैदराबाद और कुछ अन्य जिलों में मुस्लिम वोटर अच्छी संख्या में हैं. वे इस स्थिति में हैं कि सात दिसंबर को विधानसभा चुनावों में 119 विधानसभा क्षेत्रों में से करीब आधी सीटों पर वोटों के गणित को बिगाड़ सकते हैं.
राज्य की 3.51 करोड़ की आबादी में 12 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम समाज की भूमिका टीआरएस और कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन के बीच सीधी लड़ाई होती दिख रही है.
गठबंधन में तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) और तेलंगाना जन समिति (टीजेएस) जैसे दल शामिल हैं.
हैदराबाद की 10 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की आबादी 35 से 60 फीसदी और राज्य की करीब 50 सीटों पर 10 से 40 फीसदी के बीच है. मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) महज आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है और बाकी सीटों पर टीआरएस को समर्थन दिया है.
मुस्लिम संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद ने भी टीआरएस को समर्थन देने की घोषणा की है. जबकि जमीअत उलेमा-ए-हिन्द ने तेलंगाना में कांग्रेस को समर्थन दिया है. विभिन्न मुस्लिम धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों के फ्रंट युनाइटेड मुस्लिम फोरम भी टीआरएस को समर्थन के मुद्दे पर बंटा हुआ दिखाई दे रहा है. हालांकि फोरम को ओवैसी के करीबी के तौर पर देखा जाता है.
टीआरएस का समर्थन करने वाले संगठन दलील दे रहे हैं कि टीआरएस के साढ़े चार साल के शासन में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ. इसके अलावा उसने मुस्लिमों के विकास और कल्याण के लिए कई कदम उठाए हैं. 250 रिहायशी स्कूलों को खोलना, छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और 'शादी मुबारक' योजनाएं जिसके तहत गरीब लड़कियों की शादी के लिए एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता सरकार के द्वारा दी जाती है.
हालांकि, मुस्लिम समाज का एक वर्ग टीआरएस से नाखुश भी है. उसकी दलील है कि पार्टी ने मुस्लिमों के लिए आरक्षण को चार फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी करने के अपने वादे को पूरा नहीं किया. मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया है, क्योंकि केंद्र ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर कुछ नहीं किया है.
इस वर्ग को लगता है कि केसीआर चुनाव के बाद बीजेपी से हाथ मिला सकते हैं, उन्होंने टीआरएस के नोटबंदी और विभिन्न मुद्दों पर मोदी सरकार को समर्थन करने का हवाला दिया, जिसमें राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के पद के चुनाव भी शामिल हैं. इस बात को कांग्रेस भी उठा रही है. राहुल गांधी अपने चुनावी भाषणों में इस बात पर लगातार जोर दे रहे हैं कि टीआरएस बीजेपी की बी टीम है.
हैदराबाद में मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में मौजूद हैं. हैदराबाद शहर की 10 विधानसभा सीटों में से सात पर 50 फीसदी से ज्यादा आबादी मुसलमानों की है. इन सीटों पर एमआईएम का कब्जा है. इस बार के चुनावी रण में कांग्रेस गठबंधन ने 8 मु्स्लिमों को उतारा है. जबकि टीआरएस ने दो और बीजेपी ने भी दो मुस्लिमों पर दांव लगाया है. हालांकि कांग्रेस ने एमआईएम के कब्जे वाली सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं.
मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच प्रमुख एमआईएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी चंद्रायनगुट्टा से लगातार पांचवीं बार जीत के लिए जोर लगा रहे हैं. वरिष्ठ कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री मोहम्मद अली शब्बीर कामारेड्डी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. टीआरएस के मोहम्मद शकील आमिर निजामाबाद जिले के बोधन से एक बार फिर ताल ठोंक रहे हैं. कांग्रेस के ताहेर बिन हमदान निजामाबाद शहर से चुनाव लड़ रहे हैं.