कैमूर जिले के बिहार-यूपी बॉर्डर से कैमूर की तरफ दर्जनों मजदूर पैदल आते दिखाई दिए तो जब उनसे रोक कर पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वे सभी 71 मजदूर बिहार के रहने वाले हैं जो गुजरात के विभिन्न फैक्ट्रियों में काम करते हैं. वहां पर उनको सूचना मिली थी कि 2 मई से लॉकडाउन लगने वाला है. (कैमूर से रंजन कुमार त्रिगुण की रिपोर्ट)
इसके बाद सभी मजदूरों ने अपनी कंपनी से पैसे की मांग की तो कंपनी ने इन्हें पैसा भी नहीं दिया. 20 दिन की मजदूरी छोड़कर यह सभी मजदूर अपने घर सकुशल वैश्विक महामारी कोरोना से बचने के लिए पहले ट्रेन की टिकट के लिए 5 दिनों तक रेलवे स्टेशन और साइबर कैफे का चक्कर काटते रहे.
जब तत्काल में भी टिकट उपलब्ध नहीं हुआ तो इन लोगों ने भाड़े पर प्रति यात्री बाइस सौ रुपये किराए में बस बुक की और बिहार के गया और पटना तक यात्रियों को पहुंचाने के लिए बात कर बस के साथ 71 मजदूर चल दिए लेकिन बस बीच रास्ते में ही एमपी और यूपी बॉर्डर पर खराब हो गई.
इस कारण 5 दिनों में यह लोग गुजरात से कैमूर जिले के बिहार यूपी बॉर्डर पर पहुंचे. बस वाले ने बॉर्डर पर ही लाकर इन सभी मजदूरों को बीच रास्ते में ही छोड़ दिया और बोला कि बिहार में जाने का परमिट नहीं है, अब आप लोग यहां से दूसरा साधन करो और अपने घर को चले जाओ.
प्रवासी सुनील ने बताया कि मैं गया का रहने वाला हूं, गुजरात की फैक्ट्री में काम करता था. हम सभी बस में 71 लोग अपने घरों के लिए चले हैं. सभी लोगों को बस वाला बिहार बॉर्डर पर छोड़ गया. हम लोगों से गया के लिए बाइस सौ रुपया प्रति यात्री टिकट का पैसा लिया था फिर भी यहीं छोड़कर चला गया.
बेगूसराय के महबूला बताते हैं कि गुजरात के वडोदरा से आ रहे हैं और बेगूसराय जाना है. गुजरात में सब लोग बोल रहा थे कि 2 मई से लॉकडाउन लगने वाला है, इसलिए हम लोगों ने घर जाना उचित समझा. बस वाले ने बिहार-यूपी के बॉर्डर पर छोड़ दिया, इसलिए बस पकड़ने के लिए बिहार बॉर्डर से पैदल बस स्टैंड तक जा रहे हैं. बस वाला परमिट नहीं होने का हवाला दे रहा था. हमने 20 दिन की मजदूरी भी कंपनी में छोड़ दी क्योंकि घर जाने की बात कंपनी को बताई तो कंपनी वाले ने पैसा नहीं दिया. बस वाले ने रात को एक बजे ही हम लोगों को यहां छोड़ दिया था.