प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को 'सांझी' कलाकृति भेंट की है. पेपर कटिंग के जरिए बनाई जाने वाली सांझी कलाकृति की शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा से हुई है. जिसका पूरे बृजमंडल में विशेष महत्व है. भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ी यह कला आज पूरी तरह से विलुप्त होती जा रही है. पीएम मोदी ने विलुप्त होती इस कला को पूरी दुनिया में पहचान दिलाने के लिए राष्ट्रपति बाइडन को इसकी पेंटिंग भेंट की है.
वृंदावन में सांझीकारों में रमण राधा रमण मंदिर और राधा वल्लभ मंदिर के सेवायतों के अलावा भट परिवार के लोग जुड़े हैं. मथुरा के कंसखार निवासी आशुतोष वर्मा का कहना है कि यह सांझी पेपर कटिंग का खाका उनके बाबा स्वर्गीय चैनसुख दास वर्मा के हाथों बनाया गया था. यह गोवर्धन के प्रसिद्ध कुसुम सरोवर की डिजाइन है. इसकी एक प्रति आशुतोष के पास आज भी सुरक्षित है. आज छठवीं पीढ़ी में वह इस (सांझी कलाकृतियों को बनाने का) काम को कर रहे हैं.
आशुतोष का कहना है कि 1979 में उनके बाबा चैनसुख दास वर्मा का देहांत हो गया था. 1992 से 1997 के बीच दिल्ली स्थित नेशनल क्राफ्ट्स म्यूजियम के तत्कालीन डायरेक्टर जितेंद्र जैन इसे खरीद कर उनके ताऊ विजय वर्मा से ले गए थे. उनका कहना है कि उनके परिवार में कई पीढ़ियों से पेपर कटिंग का काम होता है. पीएम मोदी की ओर से अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन को जो सांझी भेंट की गई है. इससे विश्व पटल पर सांझी कला को पहचान मिल सकेगी.
मथुरा में सांझी कला का उत्सव ब्रज मंडल में श्राद्ध पक्ष में मनाया जाता है. शहरी इलाकों में रंग, फूल और जल की सांझी बनाई जाती है. ग्रामीण अंचलों में गोबर की सांझी बना कर सांझी महोत्सव मनाया जाता है. श्राद्ध पक्ष में ब्रज के प्रमुख मंदिर राधाबल्लभ मंदिर, राधा रमण मंदिर में नित नई तरीके से सांझी बनाई जाती है.
अगर बात करें पुराणों की तो उल्लेख है कि द्वापर काल में शाम के समय में भगवान श्रीकृष्ण को गौचरण करके आते थे तो ब्रज गोपियां उनके स्वागत के लिए फूलों की चित्रकला की सांझी सजा कर उनका स्वागत करती थीं. उसी समय से सांझी कला की परंपरा चली आ रही है.