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बुधवार सुबह गाजीपुर बॉर्डर पर ऐसा नजारा था मानो किसान युद्ध जीतकर अपने बैरकों में लौट रहे हो. यहां 378 दिन से लगाए गए टेंट को खोला जा रहा था, बैग और बक्सों को ट्रकों में लोड किया जा रहा था. भारतीय किसान यूनियन सीहोरा ब्लॉक के प्रमुख गजेंद्र सिंह एक ट्रैक्टर के पास खड़े थे. उन्होंने बताया कि यह पहला टैक्टर था जिससे बिजनौर से किसानों को लोड कर धरनास्थल पर लाया गया था. तीन कृषि कानून के वापस होने के बाद ये ट्रैक्टर फिर से हमें ले जाने को तैयार है.
उनके इतना बताने के बाद गजेंद्र सिंह के गांव जाट नांगला के 11 लोग ट्रैक्टर ट्रॉल पर सवार हो जाते हैं. ट्रैक्टर चला रहे प्रेम सिंह उसे स्टार्ट करते हैं और फिर ट्रैक्टर बिजनौर के लिए आगे बढ़ता है. ट्रॉल पर सवार किसान 'जय जवान, है किसान' और 'किसान एकता जिंदाबाद' का नारा भी लगाते हैं. वहीं मौके पर प्रदर्शनकारियों में कुछ सिख भी शामिल थे जो उन्होंने किसानों को 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल' कहकर विदा किया. इतने में एक 20 साल का लड़का ट्रैक्टर की ओर बढ़ा और जो लोग शिविर से विदा हो रहे हैं, उनके नाम और पता नोट करने लगा.
थोड़ी देर बाद अचानक भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के आने की सूचना मिली. समर्थकों के साथ मौके पर पहुंचे राकेश टिकैत सबसे पहले खड़े ट्रैक्टर के पास पहुंचे. उन्होंने ट्रैक्टर चला रहे युवक से कहा कि ट्रैक्टर तेज मत चलाना, जिससे किसी को असुविधा हो. यहां जो कुछ भी सीखा, उसे गांववालों को जरूर बताना. उन्होंने कहा कि ट्रैक्टर के आगे किसान यूनियन का झंडा भी लगा लो. इसके बाद उन्होंने ट्रैक्टर सवार किसानों से हाथ मिलाया और फिर ट्रैक्टर को आगे बढ़ाने को कहा.
75 साल के गजेंद्र सिंह ने कहा कि पिछली जनवरी बहुत ठंडी थी. हमने ठंड से बचने के लिए ट्रॉली के ऊपर प्लास्टिक लगाया था लेकिन वह पर्याप्त नहीं थी. उन्होंने कहा कि मेरे पास कंबल थे लेकिन सुबह होने तक पैर नीला पड़ जाता था. यह पूछे जाने पर कि 379 दिनों में तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने के अलावा क्या हासिल किया? गजेंद्र सिंह कहते हैं कि हमने सीखा है कि किसी भी मंच पर अपने मुद्दों और सोच को कैसे व्यक्त किया जाए. हमें आतंकवादी और विभाजनकारी कहा गया, लेकिन हम डटे रहे, किसानों को तीन कानूनों से बचाने में कामयाब रहे. हमें विश्वास था कि हम संघर्ष कर सकते हैं और जीत सकते हैं.
इस बीच एक किसान गजराम ने कहा कि जब से आंदोलन शुरू हुआ था, हर दिन घर लौटने का विचार बार-बार आता था. मोदी सरकार हमारी मांगों को एक महीने में मान भी सकती थी. अब एक साल बाद तीनों कानूनों को वापस ले लिया गया है लेकिन मोदी सरकार के बारे में हमारी जो धारणा है, वो नहीं बदलेगी. इसी बीच पत्नी से बात कर रहे किसान भूपिंदर सिंह ने कहा कि मुझे अपनी पत्नी और बच्चों की याद आती थी. हर दूसरे दिन मैं वीडियो कॉल कर उनसे बात करता था और घर के गाय और खेतों को भी देखता था. भूपेंदर सिंह ने बताया कि वे पूरे आंदोलन के दौरान सिर्फ दो बार घर गए थे.
किसानों की ट्रैक्टर जैसे ही गंगा नदी के किनारे गढ़ मुक्तेश्वर तक पहुंची, किसान गंगा में डूबकी लगाकर आगे बढ़े. करीब एक घंटे तक ट्रैक्टर चलने के बाद गजरौला के पास रहने वाले मनसा ने कहा कि हम गजरौला के पास एक ढाबे पर दोपहर का खाना खाएंगे. टैक्टर पर मौजूद अधिकतर किसान आसपास के इलाकों के रहने वाले हैं. धरनास्थल पर हमने एक साल में करीब 35 से 40 हजार रुपए खर्च किए हैं. 40 मिनट तक खाना खाने के बाद किसान एक बार फिर टैक्टर पर सवार होकर आगे निकले.
ट्रैक्टर जैसे ही आगे बढ़ा, संजय चौधरी नाम के किसान ने क्रांतिकारी गानों की धुन बजाई. उन्होंने कहा कि किसान खासकर जाट हमेशा प्रभावशाली रहे हैं. हमारी संख्या कम थी लेकिन हमारे पास चरण सिंह जैसे नेता थे जो प्रधानमंत्री बने. लेकिन पिछले तीन चुनालों में अजीत सिंह और जयंत चौधरी जैसे नेता चुनाव हार गए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने महसूस किया है कि सत्ता के केंद्र में हमारा नाम फिर से दर्ज हो, इसके लिए बदलाव की जरूरत है. करीब दो घंटे बाद ट्रैक्टर धनौरा पहुंची. यहां एक बार फिर से किसानों ने सेलिब्रेशन शुरू किया. लगभग 20 ट्रैक्टर पर सवालर करीब 300 किसान डीजे बजाते हुए सेलिब्रेशन में शामिल हो गए. इसके बाद आसपास के मौजूद ग्रामीणों ने किसानों पर फूल बरसाना शुरू कर दिया.
महेंद्र सिंह ने भीड़ को किया संबोधित
इस दौरान महेंद्र सिंह नाम के किसान ट्रैक्टर के इंजन पर चढ़ गए और भीड़ को संबोधित करने लगे. उन्होंने कहा कि शुरू से ही जाहिर था कि यह आंदोलन टूटने वाला नहीं है, आंदोलन भाजपा के खिलाफ जाएगा. उन्होंने कहा कि आने वाले चुनाव में कोई भी किसान चुनाव नहीं लड़ेगा.
थोड़ी देर बाद ट्रैक्टर गजेंद्र सिंह चलाने लगते हैं, वे कहते हैं कि कानूनों को वापस लेने के फैसले के बाद भाजपा के उन कार्यकर्ताओं को राहत मिलेगी जो गांवों और कॉलोनियों में एंट्री नहीं कर सकते थे. उन्होंने कहा कि उत्तरप्रदेश में आदर्श आचार संहिता लागू होने में दो महीने का समय है. एमएसपी, गन्ना खरीद मूल्य में वृद्धि के लिए हां कहती है तो फिर इसके बाद हम अपने अगले रूख की समीक्षा कर सकते हैं. इस बीच बिजनौर के एक बीकेयू कार्यकर्ता भूरे मलिक ने स्वीकार किया कि 2013 के दंगों ने जाटों और मुसलमानों के बीच नहीं बल्कि किसानों के बीच विभाजन पैदा किया. बीकेयू उन्हें साथ ला रहा है.
इस बीच भीड़ से गुजरते हुए करीब एक घंटे बाद ट्रैक्टरों का काफिला जाट नांगला गांव पहुंचा. यहां भी ढोल बजाकर किसानों का स्वागत किया गया. किसान नेता अपने-अपने घर गए जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ. गजेंद्र सिंह ने कहा कि हमने सबक सीखा है. और अब समय आ गया है कि उन्हें न भूलें. उन्होंने कहा कि अबकी बार भाजपा के चक्कर में नहीं पड़ना है, अभी तय नहीं किया किसको वोट करेंगे, मगर भाजपा को नहीं देंगे.
किसानों की 16 घंटे की यात्रा के दौरान महसूस किया गया कि मोदी सरकार उम्मीद कर रही है कि कृषि कानूनों को निरस्त करने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का विरोध कम होगा लेकिन बीकेयू किसान आंदोलन की यादों और किसानों के गुस्से को जिंदा रखना चाहता है.