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2019 में शिवपाल लड़ेंगे लोकसभा चुनाव, इस सीट पर बिछेगी बिसात

शिवपाल यादव ने सपा से नाता तोड़कर समाजवादी सेकुलर मोर्चा बनाया है. अपनी सियासी जिंदगी में पहली बार शिवपाल लोकसभा चुनाव में ताल ठोकने जा रहे हैं. ऐसे में कुछ ऐसी सीटें हैं जहां से वे मैदान में उतर सकते हैं.

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शिवपाल यादव
शिवपाल यादव

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समाजवादी पार्टी से अलग हुए शिवपाल यादव ने अपनी सियासी राह चुन ली है. उन्होंने 'समाजवादी सेकुलर मोर्चा' बनाने का ऐलान करते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरने का फैसला किया है. शिवपाल के ताल ठोकने के बाद ये साफ हो गया है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को बीजेपी से मुकाबला करने के साथ-साथ अपने चाचा से भी दो-दो हाथ करने होंगे.

शिवपाल यादव ने अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. इससे पहले सूबे सियासत तक ही वे अपने आपको सीमित रख रहे थे, लेकिन अब वे राष्ट्रीय राजनीति में दस्तक देने के लिए कदम आगे बढ़ाया है. शिवपाल ने कहा कि मैं पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा हूं, मेरे खिलाफ प्रत्याशी उतरते हैं या नहीं ये फैसला मुलायम सिंह यादव को करना है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर शिवपाल किस संसदीय सीट से ताल ठोकेंगे.

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सपा का सबसे मजबूत गढ़ इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फिरोजाबाद, संभल और बदायूं है. इन्हीं क्षेत्र में मुलायम कुनबे का कब्जा है. इटावा लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. इस तरह इटावा से उनके लड़ने का कोई औचित्य ही नहीं है.

मैनपुरी संसदीय सीट मुलायम सिंह यादव की परपंरागत सीट रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव मैनपुरी और आजमगढ़ दो सीटों से मैदान में उतरे थे और दोनों जगह जीत हासिल की थी. बाद में उन्होंने मैनपुरी सीट छोड़ दी थी, जिसके बाद पोते तेज प्रताप यादव इस सीट से जीतकर संसद पहुंचे.

2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ के बजाय मैनपुरी से लड़ने का ऐलान किया है. ऐसे में शिवपाल मैनपुरी से मुलायम सिंह के खिलाफ चुनाव में उतरे ये नामुमकिन है.

फिरोजाबाद सीट सपा की मजबूत सीटों में से एक है. मौजूदा समय में सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव सांसद है. सपा के लिए बहुत मजबूत सीट नहीं मानी जाती है. 2009 में अखिलेश इस सीट से जीते थे, लेकिन बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद हुए उपचुनाव में डिंपल यादव उतरी, लेकिन उपचुनाव में डिंपल यादव उतरी, पर कांग्रेस के राजबब्बर से हार गईं. रामगोपाल और शिवपाल की अदावत जगजाहिर है, लेकिन फिरोजाबाद से चुनाव उतरे ये मुश्किल है.

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बदायूं लोकसभा सीट से धर्मेंद्र यादव सांसद हैं. माना जा रहा है कि इस बार भी वे बदायूं से मैदान में उतरेंगे. धर्मेंद्र के रिश्ते शिवपाल से ठीक ठाक हैं. ऐसे में इस सीट से उनके लड़ने की संभावना बहुत कम हैं.

कन्नौज से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सांसद हैं. माना जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव नहीं लड़ेंगी. पिछले लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव को इस सीट पर जीतने में लोहे के चने चबाने पड़ गए थे. इसी सीट से अखिलेश तीन बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने थे. ऐसे में माना जा रहा है कि अखिलेश यादव 2019 में इस सीट से उतर सकते हैं. हालांकि अभी उन्होंने इसका ऐलान नहीं किया है. ऐसे में शिवपाल यादव इस सीट पर अपनी दावेदारी कर सकते हैं.

संभल सीट एक दौर में सपा की सबसे मजबूत सीटों में मानी जाती रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी इस सीट को जीतने में सफल रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में रामगोपाल यादव एक बार फिर से उतर सकते हैं. इन दिनों संभल में आना जाना उन्होंने शुरू कर दिया है. ये सीट ऐसी रही है कि दो बार मुलायम सिंह यहां से सांसद बने थे. इसके बाद रामगोपाल यादव 2004 के लोकसभा जीते. अब एक बार फिर से उनकी उतरने की संभावना है.

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सपा के गढ़ में मुलायम कुनबे का कब्जा होने से इन सीटों पर शिवपाल यादव के लिए कोई स्पेश नहीं नजर आ रहे है. ऐसे में उनके पास सिर्फ एक ही सीट बचती है. वो है एटा लोकसभा सीट, जहां से शिवपाल अपनी किस्मत आजमा सकते हैं. जबकि मौजूदा समय में इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है. यहां से कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह सांसद हैं, लेकिन उनके खिलाफ माहौल नजर आ रहा है. ऐसे में बीजेपी उन्हें इस बार अलीगढ़ से चुनावी मैदान में उतार सकती है. ऐसे में शिवपाल के चुनाव लड़ने की सबसे ज्यादा संभावना एटा से है.

शिवपाल के लिए एटा लोकसभा सीट काफी मुफीद मानी जा रही है. इस सीट पर यादव और ओबीसी मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है. इसी का नतीजा है कि 1999 और 2004 में सपा इस सीट को जीतने में कामयाब रही थी. ऐसे में शिवपाल इस सीट से अपनी किस्मत आजमा सकते हैं.

शिवपाल ने अपना राजनीतिक सफर अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव की उंगली पकड़कर आगे बढ़े हैं. उन्होंने पहला चुनाव जिला सहकारी बैंक का लड़ा. 1993 में जिला सहकारी बैंक, इटावा के अध्यक्ष चुने गए.1995 से लेकर 1996 तक इटावा के जिला पंचायत अध्यक्ष भी रहे. इसी बीच 1994 से 1998 के अंतराल में उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक के भी अध्यक्ष का दायित्व संभाला. इसके बाद जसवन्तनगर से विधानसभा का चुनाव लड़े और ऐतिहासिक मतों से जीते. इसके बाद मुलायम सरकार से लेकर अखिलेश सरकार में मंत्री रहे. 2007 से 2012 तक विपक्ष के नेता का पद भी संभाला.

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