2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के खिलाफ विपक्ष महागठबंधन फॉर्मूले के साथ 2019 में उतरने का ख्वाब देख रहे थे. पर कुछ दिनों में सियासत ने ऐसा रंग बदला कि विपक्ष एकजुट होने के बजाय बिखर रहा है. कांग्रेस के सहयोगी दल एक-एक कर उससे दूर होते जा रहे है. पहले सपा, फिर बसपा और अब सीपीएम 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस से तालमेल नहीं करेगी.
बता दें कि सीपीएम की केंद्रीय कमेटी ने रविवार को इस बारे में एक प्रस्ताव पास किया. सीपीएम के पूर्व महासचिव प्रकाश करात कांग्रेस से किसी भी तरह के गठबंधन के खिलाफ हैं. वहीं, महासचिव सीताराम येचुरी के नेतृत्व वाला गुट बीजेपी से टक्कर लेने के लिए कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने को लेकर नरम है.
2019 में लेफ्ट की राह कांग्रेस से अलग
सीपीएम केंद्रीय समिति की बैठक में दोनों नेताओं के प्रस्ताव पर वोटिंग कराई गई, जिसमें करात गुट को 55 और येचुरी के पक्ष में 31 वोट पड़े. इस तरह करात गुट 24 मतों के अंतर से जीता. पास किए गए इस प्रस्ताव को अप्रैल में हैदराबाद में होने वाली सीपीएम-कांग्रेस की बैठक में औपचारिक रूप से अपनाने के लिए रखा जाएगा. कांग्रेस से गठबंधन करने और न करने को लेकर सीपीएम के अंदर दूसरी बार वोटिंग हुई है. दोनों बार येचुरी गुट की हार और करात गुट की जीत हुई.
वामदलों का प्रभाव लगातार देश में कम हो रहा है. लेफ्ट विचारों वाले सियासी दल अपने वजूद को बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं. ऐसे में सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी को कांग्रेस एक सहारा नजर आ रही थी. यही वजह थी कि येचुरी गुट कांग्रेस के साथ गठबंधन की दिशा आगे बढ़ने का मन बना रहा था, लेकिन करात गुट की मुखालफत ने उनके सारे अरमानों पर पानी फेर दिया है.
'यूपी के लड़कों' की दोस्ती में दरार
कांग्रेस के साथ लेफ्ट ही नहीं, बल्कि सपा भी 2019 में साथ उतरने से कतरा रही है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव और राहुल गांधी की बनी दोस्ती में दरार पड़ती हुई नजर आ रही है. पिछले दिनों अखिलेश कहा था कि 2019 के लिए अभी तक मैं किसी पार्टी के साथ गठबंधन की नहीं सोच रहा हूं. गठबंधन और सीट शेयरिंग पर बात कर मैं अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहता. मैं किसी भ्रम में नहीं रहना चाहता हूं. अभी मैं सिर्फ अपनी पार्टी को मजबूत करने में लगा हूं. इतना ही नहीं राज्य की सभी 80 सीटों पर सपा चुनावी तैयारी में जुट गई है. इसका मतलब साफ है कांग्रेस और सपा के बीच राह जुदा हो चुकी है.
बसपा ने भी कांग्रेस से बनाई दूरी
बीएसपी सुप्रीमों मायावती ने अपने 62वें जन्मदिन पर 2019 के चुनाव में गठबंधन से साफ इनकार किया. इतना ही नहीं उन्होंने बीजेपी और कांग्रेस दोनों को निशाने पर लिया था. मायावती ने कहा था कि उन्हें दलित उत्पीड़न में कांग्रेस व बीजेपी वाले चोर-चोर मौसेरे भाई नजर आते हैं. दोनों पर घिनौने हथकंडे व षडयंत्र से उनकी अंबेडकरवादी पार्टी को कमजोर और खत्म करने का आरोप भी लगाया था. इससे साफ है कि मायावती 2019 में अकेले चुनावी रण में उतरेंगी. जबकि माना जा रहा था कि 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को मिली करारी हार के चलते वो गठबंधन की राह अपना सकती हैं, लेकिन इन सारे कयासों पर उन्होंने विराम लगा दिया है.