उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के सत्ता में आने के बाद से पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान अपने तेवरों को लेकर लगातार चर्चा में हैं. सरकार हो या पार्टी, उनके बेबाक बयान और अक्रामक तेवर उन्हें विवादों में ला ही देते हैं.
मेरठ के प्रभारी मंत्री पद से हटाए जाने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मंत्री पद से इस्तीफे की पेशकश कर सरकार और पार्टी दोनों को मुश्किल में डालने वाले आजम का विवादों से पुराना नाता है.
कहा जाता है कि सपा के संस्थापक सदस्यों में से एक आजम को अपनी मुखालफत कतई मंजूर नहीं है. अगर कोई ऐसा करता है, तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाते और मौका मिलते ही हमलावर होकर करारा जवाब देते हैं, चाहे वह उनकी पार्टी का ही कोई क्यों न हो.
समय-समय पर उनकी तरफ से जाने-अनजाने कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है, जिससे पार्टी और सरकार में उनको लेकर चर्चाएं तेज हो जाती हैं.
मेरठ से ताल्लुक रखने वाले सपा नेता एवं राज्यमंत्री शाहिद मंजूर से आजम का छत्तीस का आकड़ा जगजाहिर है. कहा जा रहा है कि शाहिद मंजूर की शिकायत पर अखिलेश यादव ने आजम को मेरठ के प्रभारी मंत्री पद से हटाया तो यह आजम को बहुत नागवार लगा.
इस्तीफे की पेशकश करके जब आजम ने मुख्यमंत्री से अपनी नाराजगी सार्वजनिक की तो सपा में भूचाल आ गया. पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव के दखल के बाद 24 घंटे के अंदर उन्हें फिर से मेरठ का प्रभार सौंप दिया गया.
हाल में जौहर विश्वविद्यालय के मुद्दे पर राजभवन के खिलाफ आजम के बयान से बवाल खड़ा हो गया था. मुख्यमंत्री अखिलेश ने खुद राजभवन जाकर मामले को ठंडा किया.
इससे पहले आजम सपा सरकार के शपथ ग्रहण के समय अधूरी शपथ लेकर चर्चा में आ गए थे. बाद में मामले के अदालत में पहुंचने के बाद उन्होंने दोबारा राजभवन में शपथ ली थी.
सपा सरकार का एक महीना भी पूरा नहीं हुआ था कि आजम ने सपा के करीबी एवं दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के खिलाफ मोर्चा खोलकर मुलायम की मुश्किलें बढ़ा दी थी. दोनों के बीच विवाद को शांत करने के लिए मुलायम को आगे आना पड़ा था.
विवादों में रहने वाले आजम का सरकार और पार्टी में बड़ा कद है और यह कद उन्हें खुद सपा अध्यक्ष मुलायम ने सौंपा है. मुलायम राजनीति में सक्रिय अपने परिवार के दूसरे सदस्यों की तरह आजम को भी उतना ही महत्व देते हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान मुलायम की लगभग हर चुनावी रैली में आजम उनके साथ देखे गए.
सपा के एक वरिष्ठ नेता ने से कहा, 'नेताजी आजम को इतनी अहमियत इसलिए देते हैं, क्योंकि वह सपा का मुस्लिम चेहरा होने के साथ ही पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से हैं. उन्होंने हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर हर मोड़ पर सपा मुखिया का साथ दिया. अमर सिंह की पैठ बढ़ने के बाद सपा से निकाले जाने के बावजूद आजम ने किसी और राजनीतिक दल का दामन नहीं थामा.'