शीतल पेयों की गुणवत्ता पर सवाल उठाकर सुखिर्यों में आये सेंटर फार साइंस एण्ड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपने एक नये अध्ययन में उत्तर प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े जिले सोनभद्र के पर्यावरण और स्थानीय बाशिन्दों के शरीर में पारे की अत्यधिक मात्रा मौजूद होने का दावा किया है.
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने यह अध्ययन रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि सोनभद्र जिले के कुछ निवासियों के अनुरोध पर उनके संगठन ने सम्बन्धित क्षेत्र के जल, मिट्टी, अनाज तथा मछलियों के साथ-साथ वहां के बाशिंदों के रक्त, नाखून एवं बाल के नमूने लेकर अध्ययन किया है.
इसकी रिपोर्ट कई भयावह आशंकाओं की तरफ इशारा करती है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े जिले सोनभद्र के पर्यावरण और स्थानीय बाशिन्दों के शरीर में पारे की अत्यधिक मात्रा पायी गयी है और यही स्थिति रही तो क्षेत्र में जापान के मिनामाटा शहर में वर्ष 1956 में पारे की भयानक विषाक्तता के चलते सैकड़ों लोगों की मौत की घटना की पुनरावृत्ति भी हो सकती है.
सुनीता ने बताया कि अध्ययन में लिये गये रक्त के नमूनों में पारे की मात्रा औसत सुरक्षित स्तर से छह गुना ज्यादा पायी गयी है. सोनभद्र में मौजूद पारे की विषाक्तता जापान के मिनामाटा शहर में पारे के भयानक जहरीलेपन की याद दिलाता है.
उन्होंने बताया कि सीएसई की प्रदूषण निगरानी प्रयोगशाला ने यह अध्ययन प्रलेखित पद्धतियों के अनुसार किया है जिसे औद्योगिक विषाक्तता, जल एवं वायु प्रदूषण और खाद्य सुरक्षा के अनुसंधान के लिये उपयोगी माना जाता है.
उन्होंने बताया कि रक्त नमूनों में पारे की सर्वाधिक मात्रा 113.48 पीपीबी पायी गयी है जोकि सुरक्षित स्तर से 20 गुना ज्यादा है. सुनीता ने बताया कि पारे की मौजूदगी ने सोनभद्र के भूजल को भी जहरीला कर दिया है. पारे की सर्वाधिक 0.026 पीपीएम सांद्रता दिबुलगंज के हैंडपम्प से लिये गये नमूने में पायी गयी है, जो स्थापित मानक से 26 गुना ज्यादा है.
उन्होंने बताया कि गोविंद वल्लभ पंत जलाशय का पानी भी पारे के कारण विषाक्त हो चुका है. क्षेत्र की मछलियों में मिथाइल मरकरी की विषाक्तता पायी गयी है. सुनीता ने बताया कि ज्यादा दिनों तक पारे के सम्पर्क में रहने से मानव शरीर के तंत्रिका तंत्र पर असर पड़ने के साथ ही याददाश्त कमजोर होना, गम्भीर अवसाद, उत्तेजना में वृद्धि तथा व्यक्तित्व परिवर्तन जैसी परेशानियां भी पैदा हो सकती हैं.
सीएसई के उपमहानिदेशक तथा निगरानी प्रयोगशाला के मुखिया चंद्रभूषण ने इस मौके पर सोनभद्र में पारे से उत्पन्न खतरे से निपटने के लिये राज्य सरकार को एक कार्ययोजना बनाने का सुझाव देते हुए कहा कि सरकार को क्षेत्र में एक संचयी प्रभाव आकलन करना चाहिये.
उन्होंने सोनभद्र के विद्युत संयंत्रों, कोयला खदानों और कोयला प्रक्षालन इकाइयों के लिये स्थापित मानकों को बेहतर बनाने की मांग भी की और कहा कि इन मानकों का पालन नहीं करने वाले संस्थानों को तब तक बंद कर देना चाहिये जब तक वे इन मानकों पर अमल नहीं करते.