उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सात महीने के कार्यकाल में अलग-अलग शहरों में आठ साम्प्रदायिक झ्झड़पों की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. अखिलेश सरकार ऐसी घटनाओं को रोकने में विफल साबित हो रही है.
विभिन्न मौकों पर देश को कौमी एकता और भाईचारे का संदेश देने वाली रामनगरी फैजाबाद में आजकल कर्फ्यू लगा हुआ है. यहां बीते सप्ताह देवी दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के मौके पर दो समुदायों के बीच हिंसा हुई, जिसके परिणामस्वरूप प्रशासन को यह कदम उठाना पड़ा.
मुख्यमंत्री ने फैजाबाद की घटना के बाद कहा कि ये मेरी सरकार को बदनाम करने का प्रयास है. साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं समाजवादी पार्टी द्वारा चलाए जा रहे जनकल्याणकारी कार्यक्रमों से जनता का ध्यान हटाने की सुनियोजित साजिश का हिस्सा है.
उन्होंने कहा कि मेरी सरकार भाईचारा और कौमी एकता बिगाड़ने वाले ऐसे तत्वों के खिलाफ सख्त कदम उठाएगी.
फैजाबाद से पहले मथुरा, प्रतापगढ़, बरेली और गाजियाबाद ने साम्प्रदायिक हिंसा का कहर झेला. मथुरा के कोसीकलां इलाके में जून में दो समुदायों के बीच हिंसा हुई. अगस्त में बरेली शहर में दो बार साम्प्रदायिक झड़पें हुईं और कर्फ्यू लगा.
इसी तरह प्रतापगढ़ में जून और अगस्त में साप्रदायिक झ्झड़पें हुईं और कर्फ्यू लगाया गया. पिछले गाजियाबाद के डासना में दो समुदायों में झड़प के बाद गोलीबारी और आगजनी हुई, जिसके बाद काफी समय तक शहर का माहौल तनावपूर्ण रहा. इन साम्प्रदायिक झड़पों में करीब 10 लोगों की जान गई और 50 से ज्यादा घायल हुए तथा करोड़ों रुपये की सम्पत्ति खाक हो गई.
इन सभी घटनाओं में विवाद छोटी सी बात पर शुरू हुआ और पुलिस की अनदेखी की वजह से देखते ही देखते पूरा शहर हिंसा की चपेट में आ गया.
साम्प्रदायिक हिंसा की हर घटना के बाद सरकार की तरफ से कारवाई के नाम पर सम्बंधित जिलों के जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों का स्थानांतरण कर दिया गया तो कुछ जगहों पर छोटे अधिकारियों को निलम्बित कर दिया गया.
विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी शंकर वाजपेयी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लाचार मुख्यमंत्री बताते हुए कहते हैं कि साम्प्रदायिक हिंसा की इन घटनाओं के लिए समाजवादी पार्टी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति जिम्मेदार है.
वहीं जानकार एक के बाद एक हो रही साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं के न थमने के पीछे सरकार की ढिलाई को जिम्मेदार मान रहे हैं. उनका कहना है कि राज्य सरकार अब तक ऐसी घटनाओं पर सख्ती का संदेश देने में विफल रही है.
सामाजिक चिंतक हृदय नारायण दीक्षति आईएएनएस से कहते हैं कि कानून व्यवस्था जैसे महत्वपूर्ण मामले में जब तक सरकार सख्ती से नहीं निपटेगी, इन पर नियंत्रण सम्भव नहीं है.
उन्होंने कहा कि जरूरत है कि सम्बंधित जिले के प्रशासिनक अधिकारियों के खिलाफ निलम्बन से भी सख्त कारवाई हो जिससे उनके मन में डर पैदा हो और वे अपना कर्तव्य जिम्मेदारी से निभाएं. कानून-व्यवस्था किसी भी राज्य के विकास के लिए सबसे प्रमुख बिंदु होता है.
उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व महानिरीक्षक एस.आर. दारापुरी कहते हैं कि पुलिस प्रशासन के अधिकारियों के साथ-साथ हिंसा भड़काने वाले और उनमें शामिल तत्वों के खिलाफ भी सख्ती से कारवाई की जाए, तब बात बनेगी. ऐसा करने में सरकार को वोट बैंक की राजनीति को किनारे रखकर मजबूत इच्छाशिक्त दिखानी पड़ेगी.