देश में मचे सियासी घमासान के बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) उत्तर प्रदेश में अपने तंत्र को ठीक करने की कवायद में जुट गई है. लम्बे समय बाद मायावती ने अपने संगठन को दुरुस्त करने का अभियान खुद अपने हाथों में ले लिया है और इसीलिए उन्होंने अगले महीने नौ अक्टूबर को महासंकल्प रैली बुलाने का ऐलान किया है.
बसपा के रणनीतिकारों की मानें तो बसपा सुप्रीमो ने यूं तो ये रैली जाहिर तौर पर खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और डीजल की कीमत में हुई वृद्धि के खिलाफ बुलाई है लेकिन महासंकल्प रैली के बहाने उत्तर प्रदेश में अपनी पुरानी साख वापस पाना चाहती हैं.
मायावती ने 15 सितम्बर को कहा था कि अगले महीने 9 अक्टूबर को रमाबाई मैदान में महासंकल्प रैली का आयोजन किया जाएगा और बसपा रणनीतिकारों की मानें तो यह अब तक की सबसे बड़ी रैली साबित होने जा रही है.
मायावती की गंभीरता की वजह से ही शनिवार को बसपा के सभी कोआर्डिनेटरों और अन्य पदाधिकारियों की बैठक बुलाई गई थी. बैठक में कई अहम बिंदुओं पर विचार-विमर्श किया और आनन-फानन में पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी के नेतृत्व में एक समिति का भी गठन कर दिया, जो महारैली की तैयारियों का जायजा लेगी.
नसीमुद्दीन की अध्यक्षता वाली इस टीम में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य और प्रदेश अध्यक्ष रामअचल राजभर को भी शामिल किया गया है. बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी अपने वोट बैंक को मजबूत करने और उसका दायरा बढ़ाने में जुटी हुई है. इसके लिए बसपा ने अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया है.
बसपा नेता ने बताया कि पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को पदोन्नति में आरक्षण, महंगाई एवं समाजवादी पार्टी (सपा) के राज में दलितों पर हुए उत्पीड़न जैसे कई सवालों पर प्रशिक्षण देना चाहती है, ताकि इसके बारे में वे लोगों को सही तरीके से बता सकें. बसपा नेता ने बताया कि पार्टी को इस बात का अंदाजा है कि सपा के खिलाफ मैदान में कूदने से उसके वोट बैंक का दायरा बढ़ सकता है.
मायावती ने रामअचल राजभर को प्रदेश की कमान सौंपकर उन्हें पूरे प्रदेश का दौरा करने का फरमान सुनाया था, जिस पर अमल करते हुए राजभर कई जिलों का दौरा कर लौट चुके हैं. पार्टी राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य और नसीमुद्दीन को अति पिछड़ों व मुस्लिमों को जोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
बसपा नेता की मानें तो नौ अक्टूबर को होने वाली महासंकल्प रैली के लिए बसपा पूरा जोर लगाएगी ताकि वह अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार कर सके. बसपा के वरिष्ठ नेता मौर्य कहते हैं कि बसपा वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनाव में पिछले चुनावों का हिसाब भी चुकता करना चाहती है. वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में भी पार्टी की सीटें घटी थीं और उसका लाभ सपा को ही मिला था और फिर हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में भी सपा के सामने मुंह की खानी पड़ी थी.
बसपा नेता ने माना कि वर्ष 2007 के बाद पार्टी को इस बात पर भरोसा था कि वह 35 सीटें जीतेगी लेकिन वह 20 पर ही सिमट गई. पार्टी को अब यह आभास हो गया है कि बसपा के वोटर सपा की ओर खिसके हैं. अब इन्ही छिटके हुए वोटरों को वापस लाने की कवायद की जा रही है.
वरिष्ठ राजनीतिक टीकाकार रासिद खान भी बसपा नेता की बातों से इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं कि बसपा के शासन में हुए घोटालों की वजह से ही सपा की पूर्णबहुमत की सरकार बनी है. बसपा की छवि पहले से ज्यादा खराब हुई और इसका लाभ बहुत हद तक सपा ने ही उठाया है.