केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों, खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और डीजल की कीमतों में वृद्धि के खिलाफ ममता बनर्जी (दीदी) के केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद अब सबकी निगाहें बहनजी (मायावती) और नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के सियासी रुख पर टिकी हुई हैं.
तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता के केंद्र सरकार से हटने के बाद अचानक ही राज्य की सियासत में उबाल आ गया है. अब सबकी निगाहें बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती और समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष मुलायम पर टिकी हुई हैं. राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी माने जाने वाले ये दोनों नेता अब लोकसभा चुनाव को देखते हुए अपना नफा-नुकसान तौलने में जुट गए हैं.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो अब मायावती और मुलायम पर भी दबाव बढ़ गया है. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ये दोनों नेता केंद्र सरकार के साथ ज्यादा दिन तक खड़े नहीं हो सकते क्योंकि उन्हें जनता को भी जवाब देना पड़ेगा.
वरिष्ठ पत्रकार अभयानंद शुक्ल कहते हैं कि ममता के फैसले के बाद अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार प्रदेश के 'एम फैक्टर' के भरोसे हो गयी है लेकिन सरकार गिरने की उम्मीद कम ही है क्योंकि सरकार ममता की मांगे कुछ हद तक मान सकती है.
बसपा के एक नेता का कहना है कि बहनजी के जल्द ही पार्टी के संसदीय दल की बैठक बुलाने की सम्भावना कम ही है. वह पहले ही घोषणा कर चुकी हैं कि अगले महीने 10 अक्टूबर को कार्यकारिणी की बैठक में इस पर विचार किया जाएगा कि बसपा का केंद्र सरकार को समर्थन जारी रहेगा या नहीं.
ममता के समर्थन वापसी के बाद भी बसपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि बसपा अपने पुराने स्टैंड पर कायम है और कोई भी फैसला राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक में ही लिया जाएगा. एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक राशिद खान कहते हैं कि ममता के ऐलान के बाद मुलायम ही नहीं मायावती पर भी दबाव बढ़ गया है कि वास्तव में वह एफडीआई व महंगाई पर केंद्र की नीतियों से नाराज हैं या फिर उनका यह विरोध केवल रस्मी तौर पर है.
राज्यसभा के एक वरिष्ठ सपा सांसद का कहना है कि सपा को भी अब केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लेना चाहिए नहीं तो जनता के बीच जाना मुश्किल हो जाएगा. इस नेता ने मुलायम के अभी इस सम्बंध में फैसला लेने पर संदेह जताया. सपा के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने भी अपने एक बयान में कहा कि सपा फिलहाल 20 सितम्बर को होने वाले बंद पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए है. कोई भी फैसला पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व ही लेगा.
इस बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी मायावती और मुलायम पर इस बात के लिए दबाव बढ़ा रहे हैं कि वे दोहरा चरित्र दिखाना बंद करें और तत्काल केंद्र से अपना समर्थन वापस लें.
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि सपा और बसपा को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए क्योंकि जनता के बीच विरोध और समर्थन दोनों एक साथ नहीं चल सकते. पाठक ने कहा कि एफडीआई और महंगाई को लेकर सपा और बसपा को भी ममता की तरह ही दबाव बनाना चाहिए और अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए.