डीजल मूल्य वृद्धि, सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडर की संख्या सीमित करने और खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एडीआई) के मुद्दे पर कांग्रेस नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से तृणमूल कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने की घोषणा किए जाने के बाद अब सबकी निगाहें समाजवादी पार्टी(सपा) के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी(बसपा) की अध्यक्ष मायावती पर टिक गई हैं.
मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में इन दोनों राजनीतिक धुरंधरों के लिए अब केंद्र सरकार के खिलाफ 'उत्तर प्रदेश में रार और दिल्ली में प्यार' वाली नीति पर चलना आसान नहीं होगा.
महंगाई, भ्रष्टाचार और ईंधन कीमतों में वृद्धि जैसे विभिन्न मुद्दों पर बीते समय में मुलायम और मायावती की पार्टियों ने उत्तर प्रदेश में तो सड़कों पर उतरकर कड़ा विरोध जताया, लेकिन दोनों पार्टियां संसद के भीतर सरकार के साथ खड़ी दिखाई दीं. ममता बनर्जी द्वारा कड़ा फैसला लेने के बाद बदले राजनीतिक हालात में मुलायम और मायावती के लिए भी कठोर फैसले लेने का दबाब बन गया है.
दोनों नेताओं को पता है कि महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घिरी केंद्र सरकार के साथ वर्तमान समय में खड़े दिखाई देने से आगामी लोकसभा चुनाव में जनता की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को सपा और बसपा दोनों ने फिलहाल बाहर से समर्थन दे रखा है.
ममता से बात न बनने की स्थिति में कांग्रेस को मायावती और मुलायम का ही सहारा होगा. केंद्र सरकार के फैसलों को जनविरोधी बताकर सपा जहां भारत बंद में शामिल है. वहीं बसपा 9 अक्टूबर को लखनऊ में संकल्प रैली के जरिए विरोध जताएगी. अल्पमत में आई केंद्र सरकार को समर्थन के प्रश्न पर सपा और बसपा की तरफ से कहा जा रहा है कि पार्टी संसदीय दल की बैठक में केंद्र की संप्रग सरकार को समर्थन के मुद्दे पर फैसला किया जाएगा.
सपा संसदीय दल की बैठक गुरुवार को होने जा रही है, वहीं बसपा संसदीय दल की बैठक 9 अक्टूबर को बुलाई गई है. फिलहाल दोनों दल स्थिति पर पैनी नजर रखे हुए हैं और कांग्रेस के रुख का इंतजार कर रहे हैं. ममता बनर्जी के साथ छोड़ने की घोषणा के बीच राजनीतिक संकट का सामना कर रही कांग्रेस के राजनीतिक प्रबंधकों ने मायावती और मुलायम से सम्पर्क साधना शुरू कर दिया है.
राजनीतिक विश्लेषक एवं लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रमेश दीक्षित ने आईएएनएस से कहा, 'वर्तमान राजनीतिक स्थितियों में मायावती और मुलायम के लिए दोनों हाथों में लड्ड रखना मुश्किल होगा.
अगर मुलायम सरकार बचाते हैं, तो 2014 में केंद्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने और प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना चकनाचूर हो सकता है. मायावती फिलहाल असमंजस की स्थिति में हैं, और उनके लिए भी कांग्रेस की मदद करना नुकसानदेह हो सकता है.'