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Sting Operation: प्रयागराज अथॉरिटी में घर का नक्शा पास करने के लिए यूं होता है 'खेल'

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में घर बनाने के लिए किस तरह रिश्वत लेकर नक्शा पास किया जाता है. इसका स्टिंग ऑपरेशन में खुलासा हुआ है. नक्शा पास कराने से लेकर पर फ्लोर बनाने तक की रकम यूं तय की जाती है.

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प्रयागराज विकास प्राधिकरण
प्रयागराज विकास प्राधिकरण
स्टोरी हाइलाइट्स
  • प्राधिकरण के अफसर का कैमरे पर खुलासा
  • कहा- जैसा चाहें वैसा नक्शा पास हो जाएगा
  • बुलडोजर एक्शन के बाद चर्चा में प्रयागराज प्राधिकरण

पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी के विरोध के दौरान प्रयागराज में हिंसा हुई थी, जिसके बाद मामले के मुख्य आरोपी जावेद पंप के घर अथॉरिटी का बुलडोजर चलाया गया. नक्शा पास न होने का दावा किया गया. इस बुलडोजर कार्रवाई के बाद अथॉरिटी पर कई तरह के सवाल भी उठे. इस बीच आजतक की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम ने प्रयागराज अथॉरिटी में नक्शा पास करने की प्रक्रिया का पता लगाने की कोशिश तो हैरान करने वाली सच्चाई सामने आई. 

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प्रयागराज में घर का नक्शा पास कराने के लिए आम लोग सरकारी दफ्तर के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन सरकारी बाबू उन्हें टरकाते रहते हैं. संबंधित फाइल को मंजूरी देने के लिए वो कई बहाने बनाते हैं. एक कॉमन मैन को किन-किन चीजों से गुजरना पड़ता है, उसी को लेकर 'आजतक' की टीम ने स्टिंग ऑपरेशन किया. 

प्रयागराज विकास प्राधिकरण के ऑफिस की सातवीं मंजिल पर 22 जून को करीब 12.30 बजे 'आजतक' रिपोर्टर इंस्पेक्टर कुंवर आनंद से मिले. कुंवर आनंद प्राधिकरण में मकानों, दुकानों और व्यावसायिक बिल्डिंग का निरीक्षण करने का काम करते हैं. बनाने से लेकर हर जिम्मेदारी इंस्पेक्टर कुंवर के कंधों पर ही है. कुंवर आनंद को रिपोर्टर ने फोन करके मिलने का वक्त मांगा. टीम जानना चाहती थी एक मकान बनाने के लिए किस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इंस्पेक्टर कुंवर आनंद 'आजतक' रिपोर्टर से 7वीं मंजिल की सीढ़ियों के पास अपने सुपरवाइजर वेद तिवारी के साथ मिले. रिपोर्टर ने उन्हें बताया कि प्रयागराज के खुल्दाबाद इलाके में एक मकान का निर्माण करना है, उसकी जानकारी चाहिए. 

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रिपोर्टर और प्राधिकरण ऑफिसर की बातचीत

रिपोर्टर- नमस्कार 

कुंवर- आपने फोन किया था? 

रिपोर्टर- हां जी, खुल्दाबाद आप ही देखते हैं ? 

कुंवर- हां जी. 

रिपोर्टर- लकड़ी बाजार है, वहां मकान बनाना है. 

कुंवर- हां जी. 

रिपोर्टर-उसका प्रोसेस बता दीजिए... 

कुंवर – मकान बन चुका है आपका? 

रिपोर्टर- नहीं, बना हुआ है, तोड़ कर बनाना है. 

कुंवर- नक्शा पास करवाना पड़ेगा.. कितना बड़ा है?

रिपोर्टर- 150 गज. 

पहले तो इंस्पेक्टर कुंवर आनंद बोले कि वहां का नक्शा पास करवाना पड़ेगा. फिर बोले कि जैसा चाहे नक्शा पास हो जाएगा और बाकी जानकारी के लिए सुपरवाइजर वेद तिवारी से बात कर लें. 

कुंवर आनंद- जैसा चाहें, नक्शा पास हो जाएगा... 

रिपोर्टर- बाकी? 

कुंवर आनंद - बाकी आप इनसे बात कर लीजिए... 

जिसके बाद वेद तिवारी ने 'आजतक' रिपोर्टर से मकान की लोकेशन समझ कर बताया कि सरकारी तौर पर काम करवाने में झंझट बहुत है. पैसे के साथ-साथ वक्त भी बहुत लगता है.  

सुपरवाइजर- कहां पर है? 

रिपोर्टर- लकड़ी मंडी...सर 

सुपरवाइजर- सब्जी मंडी है या उसके बाद है, आगे से नुरुला रोड मिल जाता है? 

रिपोर्टर- कई तरफ से रास्ता मिल जाता है. 

सुपरवाइजर- फ्रंट पर तो नहीं है ? 

रिपोर्टर- नहीं... 

सुपरवाइजर- कोई शिकायत तो नहीं है? अगल-बगल आस-पड़ोस. मकान बनाना है, तो नक्शा आपको पास करवाना होगा और पहले फीस जमा करवानी होगी. सारे पेपर, स्वामित ले आइए, आर्किटेक्ट को बुलाइए...और फीस जमा कर दीजिए. बहुत पैसा लगेगा...टाइम लगेगा... 

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इस पूरी प्रक्रिया से बचने का भी इलाज उनके पास था. यानी बिना किसी मंजूरी के और इसकी रिश्वत की रकम तभी बताएंगे जब मकान बनना शुरू होगा. 

सुपरवाइजर- प्राइवेट और अगर आपको उसको बनाना है तो पहले आप इसको तोड़िए..जब टूट जाएगा तब शुरू होगा... 

रिपोर्टर- क्या कुछ लगेगा? 

सुपरवाइजर- ये उसी समय तय हो जाएगा कि आप क्या बनाएंगे, आवास बनाएंगे या मार्केट बनाएंगे. 

रिपोर्टर-आवास बनाएंगे....मार्केट की तो जगह ही नहीं है.

सुपरवाइजर- नहीं-नहीं, पीछे मार्केट तो बना सकते हैं. 

रिपोर्टर- मार्केट की लायक जगह नहीं है.

सुपरवाइजर- वो भी बन जाएगा...आप पहले तोड़कर शुरुआत करिए... 

रिपोर्टर- फिर भी आप बताएं क्या लगेगा?  

सुपरवाइजर-जब बनाएंगे तभी उस समय बात करेंगे अभी से क्या बताएं...

रिपोर्टर- फिर भी क्या लगेगा? 

सुपरवाइजर-जब आप शुरू करेंगे मौके पर तब बताएंगे. देखिए आप बढ़िया तरीके से काम शुरू करिए. तब आइए यहां पर आइए तब करते हैं... 

रिपोर्टर- इंजीनियर साहब का नाम क्या है? 

सुपरवाइजर-कुंवर आनंद 

रिपोर्टर- और आप?  

सुपरवाइजर- हम उनके सुपरवाइजर हैं. 

रिपोर्टर- आपका नाम क्या है?

सुपरवाइजर- वेद तिवारी 

रिपोर्टर- वेद तिवारी 

सुपरवाइजर- हां हां आ जाइए  

रिपोर्टर- नंबर दे दीजिए  

सुपरवाइजर- उनसे ले लीजिए, आप उन्हीं से बात कर लीजिएगा...जब उनसे बात हो जाएगी वो हमको मैसेज कर देंगे. 

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इसी सिलसिले में रिपोर्टर से वेद तिवारी सुपरवाइजर की अगली मुलाकात अगले दिन दोपहर प्रयागराज प्राधिकरण के दफ्तर के बाहर हुई.  

लोकेशन-प्रयागराज विकास प्राधिकरण, वेद तिवारी, सुपरवाइजर, पीडीए 

रिपोर्टर- हमें थोड़ा सा बजट एक बार पता चल जाता कि आप क्या लेंगे. क्योंकि बिना नक्शे का मकान बनेगा. वो तो बात आनन्द जी से भी हो गई थी रात...रात...बिना नक्शे के बनेगा तो कितना पैसा लग जाएगा...पैसा बता दीजिए आप.. 

सुपरवाइजर- आप काहे इतना परेशान हैं... 

रिपोर्टर- बजट की दिक्कत आ रही है. 150 गज का है. वो जो मंदिर नहीं देखा आपने... 

सुपरवाइजर- कितने बाई कितने का है? 

सुपरवाइजर-इसका (मकान) का फेस किधर है. दक्षिण, उत्तर,पूर्व, पश्चिम... 

रिपोर्टर- जैसे हम सीधे खड़े हैं. 

सुपरवाइजर- पूर्व सामने रोड कितनी है ? 

रिपोर्टर- होगी 15-20  फीट 

सुपरवाइजर- 20 फीट पर तो नक्शा ही नहीं पास होगा.. 

सुपरवाइजर- 150 गज में लंबाई कितनी है और चौड़ाई कितनी है ? 

रिपोर्टर- 20 बाई 70 कल तो आप मिले थे न कुंवर आनंद से,  फिर क्या बात हुई ? 

रिपोर्टर- फोन नंबर लिया उनसे वो कह रहे कि बात आपसे करें... 
 
सुपरवाइजर- देखिए आपका निर्माण शुरू नहीं हुआ है..अभी से ये सब बात सीक्रेट होती है इन बातों का ज्यादा प्रचार-प्रसार कि जरूरत नहीं है. आपकी हम मदद करेंगे. आपका निर्माण विदाउट नक्शा करवाएंगे. तो आप काम करते जाइए कोई दिक्कत नहीं होगी. 

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रिपोर्टर- दाम क्या लगेगा? थोड़ा सा पता चल जाए तो आईडिया लग जाएगा.  

सुपरवाइजर- 20 बाई 70 का निर्माण होगा क्या बनाएंगे आवास? 

रिपोर्टर- हां. 

सुपरवाइजर-रहने का?

रिपोर्टर- हां. 

सुपरवाइजर- टोटल आप रहने का बनाएंगे व्यापार का नहीं?  

रिपोर्टर- हां. 

सुपरवाइजर- (कागज पर लिखते हुए 70 हजार) पर फ्लोर 

रिपोर्टर- पर फ्लोर 70 हजार ..? 70 हज़ार रुपये ज्यादा नहीं है महाराज... 

सुपरवाइजर-  नहीं.  

रिपोर्टर- है? 

सुपरवाइजर-नहीं 

सुपरवाइजर-पर फ्लोर 

रिपोर्टर- पर फ्लोर 70 हजार में हो जाएगा न? 

सुपरवाइजर- हां हां...  

रिपोर्टर- तो मानकर चलिए एक लाख चालीस हजार के करीब  

सुपरवाइजर- दो मंजिल बनाएंगे न?

रिपोर्टर- हां एक लाख चालीस हज़ार हो जाएगा न?

सुपरवाइजर- हां.  

बिना नक्शे के मकान को बनाने की एक मंजिल की कीमत 70,000 रुपये थी. लेकिन इतना ही नहीं ..अगर बिना नक्शे की मकान बनने की कोई शिकायत आती है तो उसको कैसे वेद तिवारी सुपरवाइजर संभालेंगे ज़रा सुनिए...  

रिपोर्टर- फिर कोई शिकायत वगैरह सब आप संभाल लेगें न?

सुपरवाइजर-पहले मेरी बात सुनें...जब कोई शिकवा, शिकायत होगी. आपको लेटर दिखाएंगे. पक्की बात होगी. वो कोई फॉर्मेलिटी नहीं है. आपके दस रुपये लिए रहेंगे. आपका नमक खाए रहेंगे तो वो आपको दिखाकर जो भी बन सकेगा. आपकी पूरी मदद करेंगे. जरूरत पड़ेगी तो नोटिस का हल दिखाने के लिए किया जाएगा. उसका हल निकाल लिया जाएगा. आपको हैरान होने कोई आवश्यकता नहीं है.  

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रिपोर्टर-सब इसी में हो जाएगा न? 

सुपरवाइजर- यानी इस 70 हजार के हर फ्लोर के रिश्वत के पैकेज में बिना नक्शे के मकान बनाने से लेकर उसकी शिकायत तक का निवारण का इंतजाम है. अब आप सुनिए पैसा एक मुश्त नहीं जाएगा.. जैसे जैसे मकान बनेगा वैसे-वैसे पैसा जायेगा. मकान आपको युद्ध स्तर करना होगा. जितना जल्दी आप काम करेंगे उतना जल्दी आप हेडेक कम होगा. 

रिपोर्टर- पैसा एक बारी में ही जाएगा न? 

सुपरवाइजर- पहला अमाउंट आएगा, जब लेंटर लेवल पर आ जाएंगे. दूसरी एक छत पड़ जाएगी. कल से बात हो रही है. पता लग गया है कि आप अच्छे लोग हो आप सकून से काम करिए और आपके हिसाब से है, नहीं तो (उंगली दिखाते हुए) पर फ्लोर होता. 

रिपोर्टर- अच्छा एक लाख रुपये पर फ्लोर होता? 

सुपरवाइजर- आपके हिसाब से किया है? 

रिपोर्टर- ठीक है. 

सुपरवाइजर- ये बातें फोन पर नहीं की जातीं... 

रिपोर्टर- इंस्पेक्टर तो वो ही हैं न? 

सुपरवाइजर- कुंवर आनंद  

केस-2 

`आजतक` की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम ने अब दूसरे शख्स राकेश शर्मा से बात की. राकेश शर्मा कटरा इलाका देखते हैं. राकेश से रिपोर्टर की मुलाकात प्रयागराज विकास प्राधिकरण की इमारत के बाहर हुई. `आजतक` के रिपोर्टर ने राकेश शर्मा को बताया कि कटरा में एक मकान बनाना है. राकेश शर्मा ने सबसे पहले मकान की परिधि और लोकेशन समझा.  

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रिपोर्टर- आप यहां पर क्या हैं?

राकेश शर्मा- सुपरवाइजर 

राकेश शर्मा-कितने बाई कितने का है? 

रिपोर्टर-150 गज का है.  

राकेश शर्मा- रोड पर है?  

रिपोर्टर- रोड पर नहीं है अंदर की तरह है. शर्मा जी से मकान बनाने का सेवा शुल्क यानी रिश्वत पूछी..तो उन्होंने लम-सम हर एक मंजिल के 40000 रुपये बता दिए. 

रिपोर्टर-आपका नाम क्या है?  

राकेश शर्मा- राकेश शर्मा  

रिपोर्टर- तो हो जाएगा न पंडित जी? आप सेवा बताएं 

राकेश शर्मा- सेवा, क्योंकि आज जेई साहब नहीं हैं, तो थोड़ा उनसे पूछ लिया जाए. थोड़ा मैं उनसे भी राय लेकर तब मैं आपसे बात करूंगा. 

रिपोर्टर-फिर भी एक लम-सम बता देते...  

राकेश शर्मा- आपकी लिमिट में रहेगा... लिमिट में रहेगा ..लिमिट के ऊपर नहीं जाएगा...लगभग 40 तक मान लीजिए... 

रिपोर्टर- बना लेंगे ना दो मंजिल आराम से 

राकेश शर्मा-न ... न ..न... 

रिपोर्टर-सिंगल 

राकेश शर्मा-हां  

रिपोर्टर- दो मंजिला? 

राकेश शर्मा- तो बस दुगना कर लीजिए. 

रिपोर्टर- तो 80 (हज़ार) बहुत ज्यादा है? 

(राकेश ने साफ कर दिया कि पैसा सब अफसरों में बंटता है. जिससे कोई आगे मकान को कोई दिक्कत न हो. चोरी भी ईमानदारी से हो.)

राकेश शर्मा- जो हम ये बात कर रहे हैं. जोनल और अफसर को भी देना पड़ता है. जिससे कोई दिक्कत आए तो बराबर कर सकें. किसी को देखिए अंधेरे में रख कर काम नहीं किया जाता. 

रिपोर्टर- बात साफ होनी चाहिए. 

राकेश शर्मा- चोरी में भी ईमानदारी हो.  80 हज़ार रुपये के रिश्वत के पैकेज में किसी भी तरह की मकान की शिकायत आएगी तो उसका भी इंतजाम है. 

राकेश शर्मा- complaint अगर कोई आएगा तो हम आपको बताकर तभी कोई कार्यवाही करेंगे, कि आपकी शिकायत आ गई है. कार्यवाही मैं करने चल रहा हूं. 

रिपोर्टर- तो फिर आप उसको कैसे निपटाएंगे? 

राकेश शर्मा- निपटेगा सब. 

रिपोर्टर-निपट जाएगा सब? 

राकेश शर्मा-निपटेगा कैसे नहीं ...कौन सा ऐसा काम है जो नहीं होगा... दिक्कत वहीं होती है. जहां शिकायतकर्ता ज्यादा फोकस करता है. न तो आप हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे है न ही हमारी आपकी कोई दुश्मनी है..मदद आपकी होगी जहां कहेगें. 

रिपोर्टर-नक्शा नहीं है. बड़ा डर लगने लगा है. 

केस-3

अब आइए आपको गोसनगर इलाके में लेकर चलते हैं. जहां परवीन फातीमा यानी जावेद मोहम्मद की पत्नी का मकान गिराया गया है. वहां इलाके के लोग दबी जुबान में ये कैसे बता रहे है कि इलाके में पीडीए किस तरह से गैरकानूनी मकान पैसा लेकर बनवाता है.    

निवासी- आप ये मान लीजिए सर अगर आपने 100 गज का नक्शा पास करवाया है और जब कभी पीछे 100 गज बनवाने लगें तो यहां पर एडीए (पीडीए) के कर्मचारी आते हैं, दो हजार, तीन हज़ार,चार हजार लेकर चले जाते हैं. आए दिन यहां मकान बनते हैं. बाकायदा पैसा सेट है. एडीए(पीडीए) कर्मचारी आते हैं पैसा लेकर चले जाते हैं.  

इतना ही नहीं पीडीए ने जहां जावेद मोहम्मद का घर जमीदोज किया था. उसी इलाके में चंद कदमों की दूरी एक फैक्ट्री चल रही है.

 

 

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