उत्तर प्रदेश के आगरा (Agra) में राजा की मंडी रेलवे स्टेशन (Raja ki mandi railway station) से सटे चामुंडा देवी मंदिर (chamunda devi mandir) को शिफ्ट करने का विवाद काफी गहरा गया है. रेलवे को मंदिर हटाने से रोकने के लिए अब हिंदू संगठनों ने सामूहिक आत्महत्या की धमकी दी है. हिंदू संगठनों का कहना है कि अंग्रेजों के जमाने में भी मंदिर नहीं हटाया गया तो अब कैसे हटाया जा सकता है? ये हमारी आस्था से जुड़ा विषय है.
राइट विंग के कार्यकर्ताओं ने कहा कि चामुंडा देवी मंदिर 300 साल पुराना है. अगर इसे हटाया गया तो हम सामूहिक बलिदान देंगे. बीते दिनों आगरा के मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) आनंद स्वरूप ने रेलवे स्टेशन परिसर से मंदिर को शिफ्ट करने के संबंध में एक नोटिस जारी किया है. यहां रेलवे का विस्तार होना है. नोटिस में लिखा गया है- मंदिर को शिफ्ट करने की जरूरत है, क्योंकि इससे यात्रियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. मंदिर नहीं हटाया गया तो रेलवे प्लेटफॉर्म शिफ्ट करना पड़ेगा.
विरोध में डीआरएम कार्यालय के बाहर हनुमान चालीसा
इस नोटिस के बाद से विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. इससे पहले मंदिर के महंत और श्रद्धालुओं ने भी दो टूक शब्दों में कह दिया है मंदिर नहीं हटेगा, स्टेशन कहीं भी ले जाओ. मंदिर हटाने के विरोध में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल के कार्यकर्ता सड़क पर उतर आए और डीआरएम के कार्यालय में हनुमान चालीसा का पाठ किया.
मर जाएंगे, मगर ईंट नहीं हिलने देंगे: मंदिर के महंत
महंत वीरेंद्र आनंद ने इंडिया टुडे को मंदिर का इतिहास बताया. महंत ने कहा- यह मंदिर 300 साल से ज्यादा पुराना है. हम मर जाएंगे लेकिन इस मंदिर की एक ईंट भी कोई नहीं हिला पाएगा. उन्होंने कहा- डीएमआर ये नहीं जानते हैं कि यह मंदिर 2 शताब्दियों से ज्यादा समय से है. आज जो रेलवे ट्रैक है, वह अंग्रेजों ने बनाया था. कई भक्त यहां प्रार्थना करने के लिए आते हैं. स्थानीय लोग और यहां तक कि यात्री भी ट्रेन में चढ़ते हैं या उतरते हैं तो मंदिर में प्रार्थना करते हैं.
हम किसी भी कीमत पर मंदिर की रक्षा करेंगे: पाराशर
महंत वीरेंद्र आनंद ने बताया कि वह बचपन से ही मंदिर के पुजारी रहे हैं और उनके पूर्वजों ने भी मंदिर में सेवा की थी. वहीं, राष्ट्रीय हिंदू परिषद भारत के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोविंद पाराशर ने कहा- हम किसी भी कीमत पर मंदिर की रक्षा के लिए तैयार हैं. राष्ट्रीय हिंदू परिषद ब्रिटिश काल के मंदिर को यहां से शिफ्ट नहीं होने देगा. पाराशर ने कहा कि अंग्रेजों ने भी ट्रैक तैयार करते वक्त मंदिर को नहीं छुआ था. इसके सबूत ट्रैक में देखे जा सकते. रेलवे इस जगह का इतिहास जाने बिना नोटिस भेज रहा है.
मंदिर को 20 अप्रैल को नोटिस भेजा: रेलवे
पाराशर ने ये भी कहा कि सौहार्दपूर्ण समाधान होना चाहिए. डीएम ने हमें आश्वासन दिया है कि वह हमें और डीएमआर को एक साथ बैठाएंगे और बीच का रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे. इधर, आगरा मंडल के वाणिज्य प्रबंधक और जनसंपर्क अधिकारी प्रशस्ति श्रीवास्तव ने कहा- हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों के अनुपालन में अतिक्रमण हटाया जा रहा है. हमने 20 अप्रैल 2022 को राजा की मंडी रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर स्थित मंदिर के मुख्य पुजारी को नोटिस भेजा है.
रेलवे ने मस्जिद और दरगाह को भी नोटिस दिया
श्रीवास्तव ने आगे कहा- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में मंदिर, दरगाह और मस्जिद को अतिक्रमण अभियान के तौर पर नोटिस भेजा गया है. उन्होंने कहा कि हमने आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के परिसर में रेलवे की जमीन पर स्थित एक मस्जिद और एक दरगाह को भी नोटिस जारी किया है और उन्हें 13 मई तक अपने दस्तावेज पेश करने का वक्त दिया है.
डीआरएम के खिलाफ कार्रवाई की जाए: भगोरे
हिंदू जागरण मंच के पूर्व सचिव सुरेंद्र भगोरे ने कहा कि हम इस कृत्य के लिए आगरा के डीआरएम के खिलाफ कार्रवाई चाहते हैं. वह (DRM) मंदिर को हटाने की मांग कर रहे हैं. बता दें कि एक तरफ मंदिर की अथॉरिटी नोटिस पर नाराज चल रही है तो दूसरी तरफ भूरे शाह बाबा की दरगाह और आगरा कैंट रेलवे स्टेशन में बनी मस्जिद के केयरटेकर भी नोटिस का जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं.
दरगाह से मेरा परिवार 1920 से जुड़ा: केयरटेकर
दरगाह के केयरटेकर तुफैल ने इसका इतिहास और अपने परिवार के दरगाह से संबंध के बारे में बताया. उन्होंने कहा- मैं 45 साल का हूं, पिछले 25 सालों से मैं इस दरगाह पर आ रहा हूं. रेलवे की जमीन पर यह दरगाह कैसे बन सकती है? उन्होंने कहा कि मेरे दादा 1920 के दशक में आगरा आए थे, तब से मेरा परिवार यहां आ रहा है. अचानक रेलवे ने हमें नोटिस भेजना शुरू कर दिया है. यह गलत है और हम पूरी ताकत से ये लड़ाई लड़ेंगे.
बाबर के शासनकाल में बनी दरगाह, शिफ्ट के लिए कैसे कह सकते?
कैंट क्षेत्र के निवासी कामेश सक्सेना ने कहा कि दरगाह किसी भी योजना को बाधित नहीं कर रही है. हम मानते हैं कि यह रेलवे की जमीन है, लेकिन हमारे पास इस बात का सबूत है कि इस दरगाह के निर्माण के लिए जमीन हमें दी गई थी. कैंट क्षेत्र की रहने वाली और दरगाह केयरटेकिंग कमेटी की सदस्य रुकसाना ने इसके इतिहास के बारे में बताया. रुकसाना कहती हैं कि जहां तक मुझे पता है, यह दरगाह बाबर के शासनकाल के दौरान बनाई गई थी तो यह सदियों पुरानी है. रेलवे लाइन और यार्ड नए निर्माण हैं, रेलवे अधिकारी हमें दरगाह को शिफ्ट करने के लिए कैसे कह सकते हैं?
सबूत के तौर पर पुराने दस्तावेज पेश करेंगे
रुकसाना ने कहा कि हमारे दस्तावेज तैयार हैं. हमने पहले के नोटिस का जवाब दिया है और अब हम सबूत के तौर पर पुराने दस्तावेजों को जमा कर रहे हैं. अगर अधिकारी हमारी नहीं सुनते हैं तो हम भी विरोध करने के लिए तैयार हैं. वहीं, रेलवे अधिकारियों ने सार्वजनिक तौर पर दरगाह की दीवार पर नोटिस चस्पा किया है. मामले की सुनवाई के लिए प्रतिवादी 13 मई को रेलवे कोर्ट जाएंगे.