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आगरा में एक नहीं दो ताजमहल हैं. शाहजहां के अपनी पत्नी मुमताज की याद में बनवाए ताजमहल को लगभग सभी जानते और पहचानते है, लेकिन शायद ही कोई जानता हो कि एक पत्नी ने अपने पति की याद में भी ताजमहल बनवाया था. यह कर्नल जॉन विलियम हैसिंग का मकबरा है. विलियम हैसिंग डच थे और सिपाही की जीवन जीने के उद्देश्य से लंका आए थे.
विलियम हैसिंग ने 1765 में कैंडी युद्ध में हिस्सा लिया था. इसके बाद वह हैदराबाद के निजाम की सेवा में रहा और 1784 में मराठा सरदार महादजी सिंधिया की नौकरी में आ गया. विलियम हैसिंग फ्रांसीसी ने सेनापति दा तूने के नेतृत्व में कई युद्ध लड़े. महादजी उस पर पूरा विश्वास करता था और वह उसे 1762 में अपने साथ पूना ले आया.
वहां 1764 में महादजी की मृत्यु के बाद विलियम हैसिंग आगरा लौट आया. आगरा उस समय मराठों के अधिकार में था. उसे 1766 में किले और उसके दुर्ग रक्षक मराठा सेना का अधिपति बनाया गया. किले में 29 जुलाई 1803 को उसकी मौत हो गई. 1803 में ही किले पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया.
विलियम हैसिंग की मौत के बाद उनकी पत्नी के मन में अपने पति की याद में नायाब इमारत बनवाने का ख्याल आया और उन्होंने ताजमहल से प्रेरित होकर इस लाल ताजमहल जैसी इमारत का निर्माण करवाया. यह इमारत ताजमहल जैसी खूबसूरत और विशाल तो नहीं है लेकिन एक पत्नी का पति के प्रति प्रेम और मृत्यु उपरांत उस प्रेम को जिंदा रखने के लिए समर्पण की निशानी बनकर आज भी खड़ी हुई है.
हैसिंग का मकबरा वर्गाकार चबूतरे पर बना है. इसके अंदर एक तहखाना है, जिसमें असली कब्र है और उसके चारों ओर एक गलियारा है. इमारत के हर कोने पर छोटा बुर्ज के रूप आठ कोनों का चबूतरा है. चबूतरे के ऊपर इमारत तक जाने के लिए पूर्व और पश्चिम दिशा की तरफ सीढ़ियां हैं. 22 फीट लंबा और सवा आठ फीट चौड़ा एक चबूतरा है.
एक ईवान (शाही या शानदार मेहराब) है, जिसके दोनों तरफ लाल पत्थर पर नक्काशी दार बुहैरे पेशात्मक (मेहबदार आले) बने हुए है. दीवान के किनारों पर पतली और छोटी मीनारें हैं. इमारत पर दो फीट लंबी चौकोर मीनारें मकबरे के कोनों पर लगी हुई हैं. उन पर लंबी लंबी धारियां हैं. मकबरे के ऊपर गुंबद है, जिस पर महापदम और कलश उकेर कर बनाया गया है.
यह इमारत संतुलन और लाल पत्थर पर नक्काशी का बेजोड़ उदाहरण है. शायद भारत में यह अलग पहचान रखने वाला डच मकबरा है.आत्मा, अक्षर और बनावट से यह आगरा को मिली बेमिसाल देन है और यमुना चंबल क्षेत्र की बेहतरीन कलाकृति है. यह 20वीं शताब्दी में तत्कालीन विचारों भावनाओं और कला कौशलों का सूचक भी माना जा सकता है.
इस मकबरे को आरसी सेमेट्री के नाम से जाना जाता है. अकबर के पीरियड में रोमन कैथोलिक कब्रिस्तान बनाने के लिए दान किया किया गया था. यहां अलग-अलग देश के क्रिश्चियन लोगों की कब्र बनी हुई है. सबसे पहली कब्र 1611 में बनी थी. कर्नल जॉन हैसिंग की कब्र ताजमहल के निर्माण के काफी बाद बनी है.
देखने में ऐसा लगता भी है कि वह ताजमहल के आर्किटेक्चर से प्रेरित है. कैथोलिक चर्च में बनी पुरानी कब्रों का संरक्षण करने के लिए योजना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में तैयार की है. कई जगहों पर घास उग गई है. कब्रों से प्लास्टर उखड़ गए है. पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी एएसआई अब चुनी गई छः कब्रो की मरम्मत कर संरक्षण करेगा.
बताया गया है कि इसके लिए बजट पास हो चुका है. बड़ी कब्रो को संरक्षित करने के लिए बीम कॉलम और पिलर का निर्माण भी किया जाएगा.