यूपी से जुड़े तकरीबन हर मुद्दे पर पूर्व मायावती सरकार को निशाने पर लेने वाली अखिलेश यादव सरकार के लिए कम से कम एक मामले में ऐसा नहीं है. यूपी वासियों को शराब पिलाने के मामले में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक बार फिर उन्हीं नीतियों पर भरोसा किया है जिसपर पूर्व मुख्यमंत्री मायावती चल रही थीं.
सरकार द्वारा जारी आबकारी नीति में अखिलेश सरकार भी शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा समूह पर मेहरबान दिखती है. पिछली बीएसपी सरकार में भी शराब कारोबार पर हावी इस समूह के आगे शराब सिंडिकेट के हौसले पस्त हैं. शराब करोबार पर चड्ढा समूह का पिछले सात साल से एकछत्र राज है.
सरकार का दावा है कि इस नीति से उसे राजस्व का लगातार लाभ हो रहा है और इसमें फुटकर दुकानों व सिंडीकेट के चलते नीलामी में आने वाली बाधाएं दूर हो गई हैं. लेकिन जिस तरह सरकार पुरानी नीति को ही लागू करती जा रही है, उसे लेकर उसकी चड्ढा ग्रुप पर मेहरबानी साफ झलक रही है.
शराब नीति पहले एक साल के लिए तय होती थी लेकिन जब विधान सभा चुनाव हुए और माया सरकार को माहौल अपने पक्ष में नहीं दिखा तो उसने एक के बजाय दो सालों के लिए शराब नीति अनुमोदित कर दी थी. इसी वजह से जब अखिलेश सरकार आई तो यह माना जा रहा था कि सपा सरकार दो साल के अनुबंध को समाप्त कर कैबिनेट का नया निर्णय ले आए और आबकारी नीति में संशोधन कर दिया जाए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था और सरकार ने आबकारी नीति पर लकीर पीटना शुरू कर दिया.
अखिलेश सरकार ने माया सरकार की नीति को मानते हुए एक साल तक पुरानी नीति को ही प्रभावी रहने दिया था. अब नई नीति में भी वही ढर्रा अपनाते हुए, इसे दो साल के लिए लागू कर दिया. जिस तरह सरकार ने ड्यूटी, लाइसेंस फीस और राजस्व में इजाफा किया है, उसे देखते हुए फुटकर दुकानदारों को मिलने वाले मार्जिन ऑफ प्रॉफिट में इजाफा नहीं किया गया है.