मुलायम कुनबे का घमासान अब खुलकर सामने आने लगा है. पार्टी और परिवार सीधे-सीधे दो फाड़ होती दिख रही है. सोमवार को शिवपाल यादव और अखिलेश यादव की मुलायम के साथ हुई मीटिंग बेनतीजा रही है, जिसकी झलक मंगलवार शाम उस वक्त दिख गई जब अखिलेश यादव के करीबियों ने ऐलान कर दिया कि 5 नवंबर को होने वाली रजत जयंती समारोह का वो बहिष्कार करेंगे.
सूत्रों के मुताबिक रामगोपाल यादव भी इस कार्यक्रम में नहीं आएंगे और मुख्यमंत्री अखिलेश के आने पर भी संशय बना हुआ है. गौरतलब है कि ये सब तब हो रहा है जब सोमवार को पार्टी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ये ऐलान किया था कि अखिलेश यादव ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे और 5 नवंबर को पार्टी के रजत जयंती और स्थापना दिवस के दिन एक बड़े कार्यक्रम में खुद मुलायम सिंह न सिर्फ इसका ऐलान करेंगे बल्कि अपनी संदेश यात्रा को भी हरी झंड़ी दिखाएंगे.
बेनजीता बैठक का असर
सोमवार शाम की बैठक खत्म होने के बाद ही इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश को मनाने में मुलायम सफल नहीं हुए हैं और अब पार्टी बड़ी टूट की ओर बढ़ सकती है. सोमवार को अखिलेश को चेहरा घोषित करने के बाद ये कयास लगाए जा रहे थे कि सोमवार को हुई उनकी मीटिंग के बाद सब कुछ पटरी पर आ जाएगा लेकिन जिस तरह से आज समर्थकों ने पार्टी के सबसे बड़े कार्यक्रम का बहिष्कार किया, साफ है अखिलेश गुट फिलहाल अपनी शर्तों से पीछे हटने को तैयार नहीं है.
रामगोपाल भी नहीं आएंगे इस समारोह में
सूत्रों की मानें तो अखिलेश के करीबी तमाम नेताओं ने इस समारोह से दूरी बना ली है. रामगोपाल यादव ने भी इस समारोह में फिलहाल नहीं आने का मन बनाया है जबकि मुख्यमंत्री अखिलेश के तरफ से इस समारोह में आने को लेकर संशय बना हुआ है. अखिलेश गुट के सभी नेता इसमें तब तक नहीं आएंगे जबतक खुद अखिलेश यादव की तरफ से उन्हे हरी झंड़ी नहीं मिलेगी.
मीटिंग में अखिलेश की शर्तों को मानने से इनकार के बाद संमर्थकों ने दिखाए बागी तेवर
सोमवार को मुलामय के घर हुई सुलह मीटिंग में अखिलेश यादव की तीनों मांगों को शिवपाल ने मानने से इनकार दिया. बताया जा रहा है कि शिवपाल यादव अखिलेश यादव की कोई भी शर्त को पूरी तरह से मानने को तैयार नहीं हुए जिससे खफा अखिलेश ने अब आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया.
अखिलेश यादव की शर्तें
पहली शर्त थी कि अखिलेश के तमाम समर्थक युवा नेता जिन्हें हाल में शिवपाल ने पार्टी से निकाल दिया था, उन्हें बिना शर्त वापस लिया जाए, जबकि शिवपाल इसके लिए तैयार नहीं थे. शिवपाल के मुताबिक इन नेताओं की वजह से पार्टी का माहौल खराब हुआ है और इन्होंने बड़े नेताओं की सभाओं में नारेबाजी करवाई इसलिए इन्हें वापस नहीं ले सकते. हालांकि कुछ नेताओं से सार्वजनिक माफी के बाद वापस लेने की दूसरी शर्त थी कि चुनावों में टिकट के बंटवारे का अधिकार अखिलेश के पास हो क्योंकि उन्हें ही चुनाव में सरकार बनानी है. अखिलेश की इस बात पर कोई सहमति नहीं बनी, शिवपाल यादव ने ये शर्त नहीं मानी. तीसरी और आखिरी शर्त थी अमर सिंह, जिन्हें शिवपाल बीच का आदमी कह रहे हैं, उनकी भूमिका यूपी और युपी चुनावों में नहीं होगी.
सूत्रों की मानें तो अखिलेश के किसी शर्त पर कोई सहमति नहीं बन पाई उल्टे पार्टी ने उन्हें रजत जयंती की तैयारी करने और पार्टी का चेहरा बनकर चुनाव को नेतृत्व करने को कहा, जिसे फिलहाल अखिलेश तब तक मानने को तैयार नहीं जब तक चुनाव में उन्हे पूरी छूट न मिले.
माना जा रहा है कि अखिलेश अब मुलायम सिंह के नाम पर भी पिघलते नहीं दिख रहे और अखिलेश समर्थकों ने आज बैठक कर अपने बागी तेवर दिखा दिए हैं बहरहाल अखिलेश समर्थकों के मुताबिक अगर अखिलेश को यूं हीं हाशिए पर धकेला जाता रहा तो अखिलेश 5 नवंबर के बाद कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं लेकिन उससे पहले मुलायम सिंह के कुनबे में घमासान का ये दौर जारी रहेगा.
बहरहाल अखिलेश यादव को दूसरे दलों से भी फीलर मिलने लगे है कांग्रेस अखिलेश यादव के बड़े फैसले के इंतजार में है तो नीतीश कुमार ने भी इशारों में कह दिया है कि अखिलेश हिमम्त करें तो उनका साथ देंगे. साफ है अब मुलायम सिंह के लिए दोनों खेमे को साधना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा.