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अखिलेश-चंद्रशेखर की तीन मुलाकात, क्या सपा के साथ गठबंधन पर बन रही बात?

यूपी में दलित युवा नेता के रूप में उभरे भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बीच हाल के दिनों में तीन मुलाकातें हो चुकी हैं. विधानसभा चुनाव से पहले दोनों नेताओं की मुलाकात के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चंद्रशेखर के जरिए अखिलेश पश्चिम यूपी में नया राजनीतिक गठजोड़ बनाने की जुगत में हैं? 

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चंद्रशेखर और अखिलेश यादव
चंद्रशेखर और अखिलेश यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अखिलेश यादव और चंद्रशेखर तीन बार मिले
  • पश्चिम यूपी में दलित वोटर्स काफी अहम माने जा रहे हैं
  • सपा 2022 में छोटे दलों के साथ गठबंधन करने में जुटी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले ही अभी एक साल का समय बाकी हो, लेकिन सियायी पार्टियों ने अभी से राजनीतिक समीकरण और गठजोड़ बनाने शुरू कर दिए हैं. दलित युवा नेता के रूप में उभरे भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बीच हाल के दिनों में तीन मुलाकातें हो चुकी हैं. विधानसभा चुनाव से पहले दोनों नेताओं की मुलाकात के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चंद्रशेखर के जरिए अखिलेश पश्चिम यूपी में नया राजनीतिक गठजोड़ बनाने की जुगत में हैं? 

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भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद की अखिलेश यादव से तीन मुलाकात हो चुकी है और यह मुलाकातें पश्चिमी यूपी के नए बनते समीकरण की ओर इशारा कर रही है. चंद्रशेखर ने आजतक से बातचीत में कहा कि बीजेपी के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन होना चाहिए ताकि बिहार की तरह दोबारा यूपी नहीं दोहराया जाना चाहिए. ऐसे में सभी दलों को एक साथ आना चाहिए. साथ ही चंद्रशेखर ने कहा कि एक बड़े गठबंधन को बनाने के लिए इस जिद को छोड़ना होगा कि मुख्यमंत्री वही होंगे या उनकी पार्टी का. सूबे में जब तक मुख्यमंत्री पद का मोह नेता और पार्टियां नहीं छोड़ेंगे तबतक विपक्षी एकता नहीं हो सकेगी. 

'अपनी पार्टी के बैनर पर लड़ेंगे पंचायत चुनाव'

चंद्रशेखर ने साफ कहा कि वह पंचायत चुनाव पूरी ताकत से अपनी पार्टी के बैनर पर लड़ेंगे. उन्होंने कहा, ''अगले 3 महीने में हमारा बूथ स्तर तक गठबंधन तैयार होगा और हम दिखाएंगे की बहुजन समाज किसके साथ हैं. फिलहाल मैं इसी काम में लगा हुआ हूं.'' 

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उन्होंने कहा कि हमारी साझा कोशिश यह होगी कि 2022 में एक मजबूर सरकार बने मजबूर सरकार का मतलब यह हुआ कि सरकार मजबूर होगी तो वो तानाशाह नहीं होगी हम मजबूर सरकार इसलिए चाहते हैं कि सरकार तानाशाह ना बने और लोगों का शोषण ना हो. विपक्ष की कोई साझा सरकार बनी तो वह मजबूर सरकार होगी और फिर किसी की प्रताड़ना नहीं होगी

चंद्रशेखर ने कहा कि मैं बसपा के बारे में कुछ बोलना नहीं चाहता, क्योंकि मैं बसपा में काम नहीं करता. मैं आजाद समाज पार्टी में काम करता हूं. इसके बावजूद उन्होंने बसपा पर इशारों इशारों में कहा कि वहां अब कार्यकर्ताओं में जुनून नहीं है. वहां पर कार्यकर्ताओं के साथ प्रताड़ना होती है और फिर भी चुप्पी साधी जाती है तो फिर मनोबल टूटता है. 

उन्होंने कहा कि हमारी साझा कोशिश यह होगी कि 2022 में एक मजबूर सरकार बने मजबूर सरकार का मतलब यह हुआ कि सरकार मजबूर होगी तो वो तानाशाह नहीं होगी हम मजबूर सरकार इसलिए चाहते हैं कि सरकार तानाशाह ना बने और लोगों का शोषण ना हो. विपक्ष की कोई साझा सरकार बनी तो वह मजबूर सरकार होगी और फिर किसी की प्रताड़ना नहीं होगी

चंद्रशेखर ने कहा कि मैं बसपा के बारे में कुछ बोलना नहीं चाहता, क्योंकि मैं बसपा में काम नहीं करता. मैं आजाद समाज पार्टी में काम करता हूं. इसके बावजूद उन्होंने बसपा पर इशारों में कहा वहां अब कार्यकर्ताओं में जुनून नहीं है. वहां पर  कार्यकर्ताओं के साथ प्रताड़ना होती है और फिर भी चुप्पी साधी जाती है तो फिर मनोबल टूटता है. 

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आने वाला वक्त हमारा है: चंद्रशेखर

हालांकि, चंद्रशेखर ने कहा कि वो बहुजन समाज पार्टी या मायावती का विकल्प नहीं बनना चाहते बल्कि मौजूदा सरकार का विकल्प बनना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ''मैं चाहता हूं कि हमारी सरकार बने. मौजूदा समय में आप भले आजाद समाज पार्टी को नजरअंदाज करें,  लेकिन आने वाला वक्त हमारा है.'' 

उन्होंने कहा कि वो सिर्फ दलित और मुस्लिम के समीकरण और केमिस्ट्री पर काम नहीं करते हैं बल्कि बहुजन समाज की केमिस्ट्री पर काम करते हैं. चंद्रशेखर ने कहा कि मेरे लिए दलित मुस्लिम अति पिछड़े वंचित सभी एक हैं. जय भीम, जय-मीम हमारा नारा नहीं मेरा नारा जय भीम-जय भारत का है. जय भीम किसी धर्म या जाति का नारा नहीं बल्कि अब क्रांति का नारा है. 

चंद्रशेखर ने साफ तौर पर कहा कि वो खुद 2022 में नहीं लड़ेंगे. साथ ही कहा कि मैं मुख्यमंत्री बनने नहीं आया हूं बल्कि मैं अपने समाज की ताकत को जगाने आया हूं और एक दिन हम मुख्यमंत्री जरूर बनाएंगे. साथ ही उन्होंने कहा, ''मैं किसी नेता या पार्टी के करीब नहीं हूं बल्कि अपने महापुरुषों के करीब हूं. बहुजन समाज के करीब हूं और अपने लोगों के साथ हूं.'' 

असदुद्दीन ओवैसी के साथ गठबंधन पर क्या कहा?

असदुद्दीन ओवैसी के साथ गठबंधन के सवाल उन्होंने कहा कि ओवैसी के साथ अगर कोई गठबंधन होगा तो आपको पता चलेगा. ओवैसी के साथ गठबंधन मैं चाहता हूं या नहीं चाहता हूं यह मैं नहीं तय कर सकता बल्कि हमारी पार्टी निर्णय लेगी. मैं अपना निर्णय पार्टी पर नहीं थोप सकता हूं. 

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बता दें कि कांग्रेस और बसपा के साथ हाथ मिलकर भी कोई बड़ा करिश्मा नहीं दिखा सके सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 2022 के विधानसभा चुनाव में बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ हाथ मिलाने जुगत में है. सूबे में बीजेपी के खिलाफ अखिलेश एक मजबूत गठबंधन बनाने के लिए छोटे दलों को साथ लाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. इसी के मद्देनजर सपा ने पिछले दिनों महान दल के प्रमुख केशव मौर्य और जनवादी पार्टी के संजय चौहान के साथ हाथ मिलाया है. वहीं, अब सपा अखिलेश और चंद्रशेखर के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं.

भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर और अखिलेश यादव के बीच तीन मुलाकातें हो चुकी हैं. इन मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं के बीच काफी लंबी बातचीत हुई हैं. चंद्रशेखर आजाद ने अपनी आजाद समाजा पार्टी के नाम से सियासी पार्टी गठित कर ली है और पिछले दिनों बुलंदशहर सीट पर हुई उपचुनाव में अपनी पार्टी का प्रत्याशी उतारा था, जिसे आरएलडी और कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले थे. हालांकि, सपा ने बुलंदशहर सीट पर हुए उपचुनाव में आरएलडी को समर्थन किया था. 

चंद्रशेखर पहली बार ऐसे आए चर्चा में

भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर पहली बार सहारनपुर में हुई एक जातीय हिंसा के बाद चर्चा में आए थे. ठाकुरों और दलितों के बीच हुए संघर्ष में दलित समाज के युवाओं में चंद्रशेखर लोकप्रिय बनकर उभरे थे. इसके बाद उनकी कांग्रेस से नजदीकियां भी दिखी हैं. चंद्रशेखर अस्पताल में भर्ती हुए थे तो प्रियंका उनका हाल-चाल लेने मेरठ के अस्पताल पहुंच गई थीं. इसके बाद दिल्ली में चंद्रशेखर को सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने के चलते दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था तब भी प्रियंका उनके समर्थन में खड़ी नजर आई थीं, लेकिन चंद्रशेखर अब अखिलेश के साथ पींगे बढ़ा रहे हैं और उनके बीच मुलाकातों का सिलसिला भी शुरू हो गया है. 

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भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने दलित युवा नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई है. पश्चिम यूपी के तमाम जिलों में दलित मतदाता काफी अहम हैं, जो अभी तक बसपा का कोर वोट बैंक माने जाते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव, मायावती, चौधरी अजित सिंह मिलकर चुनाव लड़े थे. पश्चिम यूपी की ज्यादातर सीटों पर बसपा ने अपने प्रत्याशी उतारे थे और तीन सीटों पर आरएलडी चुनाव लड़ी थी. पश्चिम यूपी की चार सीटें बसपा जीतने में सफल रही थी जबकि सपा मुस्लिम बहुल सीटों पर ही जीत सकी थी. 

 

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