उत्तर प्रदेश की सियासत में बीजेपी की हिंदू वोटरों पर मजबूत पकड़ और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हिंदुत्व के तेवर को देखते हुए समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी यह बात समझ गए हैं कि उन्हें मुस्लिम समर्थक छवि से बाहर निकलकर सॉफ्ट हिंदुत्व की सियासी पिच पर उतरना ही होगा. हिंदू राजनीति से सार्वजनिक तौर पर परहेज करने वाले अखिलेश यादव अब मंदिरों और धार्मिक प्रतीकों की सियासत करने से परहेज नहीं कर रहे हैं. अखिलेश अयोध्या के बाद धर्मिक नगरी चित्रकूट पहुंचे हैं और वहां पर उन्होंने कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा की.
कोरोना का संकट कम होते ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सूबे में राजनीतिक तौर पर सक्रिय हो गए हैं. इस कड़ी में अखिलेश यादव गुरुवार को चित्रकूट पहुंचे थे. शुक्रवार को सुबह होते ही कामतानाथ मंदिर पहुंचकर पूजा-अर्चना और दर्शन किए. पूजा अर्चना के बाद उन्होंने पुजारी से पूछा और क्या क्या काम यहां कराने हैं? इसके बाद अखिलेश यादव ने कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा लगाई. परिक्रमा लगाते समय सपा प्रमुख ने दुकानदारों से जगह-जगह बातचीत भी की. इस दौरान उन्होंने साधु संतों से मुलाकात कर दोबारा यूपी में एक बार फिर सपा सरकार बनाने की अपील की.
अखिलेश यादव के साथ दर्जनों कार्यकर्ताओं ने कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा लगाई है. अखिलेश ने कहा कि नेता जी (मुलायम सिंह यादव) ने चित्रकूट में शिविर किया था और यहीं पर डॉ. राम मनोहर लोहिया जी ने रामलीला की शुरुआत की थी. तब भी मैं यहां आकर पूरा परिक्रमा मार्ग घूमा था. यहां के मंदिर पुजारी, संत, व्यापारी और दुकानदार सभी समाजवादी पार्टी के सरकार द्वारा किए गए कामों को याद कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी सरकार की जिम्मेदारी थी कि इन कामों को आगे बढ़ाएं लेकिन पूरे काम रोक दिए गए. दुख होता है कि 4 साल के अंदर हवाई पट्टी नहीं बन पाई. धर्मनगरी चित्रकूट पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कामदगिरि परिक्रमा मार्ग पर लक्ष्मण पहाड़ी के नीचे रामघाट पर लगी दुकानें देखीं और सपा कार्यकर्ताओं ने भी उनके साथ परिक्रमा में हिस्सा लिया.
अखिलेश साफ्ट हिंदुत्व की राह पर
बता दें कि 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता गंवाने और 2019 में करारी मात खाने के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी को मुस्लिम छवि से बाहर निकालने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व की दिशा में कदम बढ़ाया है. इसी कड़ी में वे पिछले महीने आजमगढ़ से वापस लखनऊ लौटते समय अयोध्या में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान खुद को रामभक्त बताया था. इतना ही नहीं उन्होंने कहा था कि जब राम मंदिर का निर्माण पूरा हो जाएगा तो वह पत्नी और बच्चों के साथ रामलला के दर्शन करने आएंगे. साथ ही अखिलेश यादव ने यह भी कहा था कि अयोध्या में सैंदर्यीकरण की शुरुआत उन्होंने ही की थी और पारिजात का वृक्ष भी लगवाया था.
अयोध्या और चित्रकूट की यात्रा और मंदिर और मठों में जाकर शीश झुकाकर 2022 के चुनाव से पहले अखिलेश यादव ऐसे राजनेता के तौर पर अपनी छवि बनाना चाहते हैं जो समावेशी हो. इससे पहले अखिलेश यादव ने अपने आपको कृष्ण भक्त के रूप में पेश किया था. अखिलेश ने इटावा के सेफई में भगवान श्री कृष्ण की 51 फीट ऊंची प्रतिमा लगवाई. इसके अलावा अब वो लगातार मंदिरों में दर्शन करते और माथा टेकते हुए नजर आ रहे हैं.
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दरअसल अखिलेश यादव को मालूम है बीजेपी सूबे में एक बार फिर ध्रुवीकरण की राजनीति कर सकती है. और उन्हें मुस्लिम परस्त राजनेता और समाजवादी पार्टी को मुसलमानों की एकमात्र पसंद वाली पार्टी के तौर पर पेश करेगी, इसलिए 2022 की तैयारियों को लेकर अखिलेश यादव बेहद सजग हैं और सभी धर्मों खासकर हिंदू प्रतीकों और देवी-देवताओं के दर पर जाकर माथा टेकना शुरू कर दिया है.
हालांकि, अखिलेश के चित्रकूट यात्रा के साथ ही बीजेपी ने उन पर तंज कसना भी शुरू कर दिया है योगी सरकार में असंख्यक मामलों के मंत्री मोहसिन रजा ने अखिलेश यादव पर तंज कसते हुए एक शेर कहा है "हैरत होती है तुमको मंदिर में देखकर ऐ अखिलेश, क्या बात हो गई, राम याद आ गए.'' मोहसिन रजा ने कहा जो लोग दरगाह पर चादर चढ़ाने जाते थे, जब लोग दफ्तरों में इफ़्तार पार्टियां मनाते थे वो अब मंदिरों में जा रहे हैं.