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पत्नी डिंपल की सीट पर आसान नहीं होगी अखिलेश की 'घर वापसी'

सूबे के बदले सियासी समीकरण में अखिलेश के लिए भी कन्नौज से जीतना आसान नहीं होगा, क्योंकि 2014 के ही लोकसभा चुनाव में डिंपल को जीतने के लिए लोहे के चने चबाने पड़े थे. इसके बाद ही कहीं जाकर वो 19 हजार 907 वोट से जीत हासिल कर पाई थीं.

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव और डिंपल यादव
सपा प्रमुख अखिलेश यादव और डिंपल यादव

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उत्तर प्रदेश का कन्नौज लोकसभा क्षेत्र समाजवादी पार्टी का मजबूत गढ़ माना जाता है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव यहां से सांसद हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में डिपंल यहां से नहीं उतरेंगी. अखिलेश ने खुद ही इस सीट से चुनाव लड़ने का संकेत दिया है. पर सूबे के बदले सियासी समीकरण में अखिलेश के लिए भी कन्नौज से जीतना आसान नहीं होगा, क्योंकि 2014 के ही लोकसभा चुनाव में डिंपल को जीतने के लिए लोहे के चने चबाने पड़े थे. इसके बाद ही कहीं जाकर वो 19 हजार 907 वोट से जीत हासिल कर पाई थीं.

अखिलेश यादव ने सोमवार को कहा कि कन्नौज लोहिया जी की सीट रही है, इसीलिए मैं चाहता हूं कि कन्नौज सीट से हमें चुनाव लड़ने का मौका मिले. वैसे पिछले साल 24 सितंबर को भी रायपुर में राजनीतिक दलों में परिवारवाद के बारे में पूछे जाने पर अखिलेश ने कहा था, 'अगर हमारा परिवारवाद है तो हम तय करते हैं कि अगले चुनाव में हमारी पत्नी चुनाव नहीं लड़ेंगी.  साफ है कि डिंपल 2019 के चुनाव में कन्नौज से नहीं लड़ेंगी. ऐसे में अखिलेश अपनी परपंरागत सीट पर किसी दूसरे को चुनाव लड़ाने के बजाय खुद ही उतरना चाहते हैं.

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कन्नौज: पांच में से चार MLA बीजेपी के

कन्नौज लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें कन्नौज जिले की तीन विधानसभा कन्नौज, तिरवा और छिबरामऊ शामिल हैं. इसके अलावा कानपुर देहात की रसूलाबाद और औरेया जिले की बिधूना विधानसभा सीट भी कन्नौज लोकसभा सीट का हिस्सा है. 2017 के विधानसभा चुनाव में इन पांच में से चार सीट पर बीजेपी और महज एक पर सपा जीती थी. सपा ने अपनी एकमात्र सीट भी महज 2400 वोटों से जीती. विधानसभा चुनाव के हिसाब से देखा जाए तो सपा के दुर्ग कहे जाने वाले कन्नौज में बीजेपी ने जबर्दस्त सेंधमारी कर दी है.ये अखिलेश के लिए चिंता की बात होनी चाहिए.

कन्नौज का सियासी समीकरण

समाजवादी पार्टी जिस जातीय समीकरण के आधार पर अब तक कन्नौज लोकसभा क्षेत्र से जीत हासिल करती रही है, वह सारा ताना-बाना बिखर गया है. पिछड़ों और मुस्लिमों में अपनी पैठ रखने का दावा करने वाली सपा अपना यह वोट बैंक भी नहीं संभाल सकी. यही वजह रही कि अखिलेश यादव के सत्ता में रहते हुए भी 2014 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव को चुनाव जीतने में पसीना आ गया था.

डिंपल यादव ने इससे पहले 2009 में फिरोजाबाद लोकसभा उपचुनाव में अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन उन्हें सपा से बागी होकर कांग्रेस में गए अभिनेता राज बब्बर से पराजय का सामना करना पड़ा था. साल 2012 में अखिलेश ने प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद कन्नौज से सांसद पद से इस्तीफा दिया था. उसके बाद हुए उपचुनाव में डिंपल पहली बार निर्विरोध निर्वाचित हुईं. साल 2014 में वो दोबारा कन्नौज से जीतीं.

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6 लोकसभा चुनाव से सपा का कब्जा

बता दें कि 1998 में समाजवादी पार्टी ने यह सीट बीजेपी के एमपी चन्द्रभूषण सिंह से छीनी थी. उसके बाद से लगातार हुए 6 चुनाव से सपा की झोली में रही कन्नौज संसदीय सीट को 2019 में बचाए रखना अखिलेश के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. अखिलेश यादव ने अपनी सियासी पारी का आगाज कन्नौज संसदीय सीट पर 2000 में हुए उपचुनाव से किया. इसके बाद अखिलेश यादव ने लगातार तीन बार यहां से जीत हासिल की. अब एक बार फिर 2019 में वे यहां से उतरने  वाले हैं.

जातीय समीकरण

कन्नौज के जातीय समीकरण को देखें तो यहां 16 फीसदी यादव मतदाता हैं, वहीं मुस्लिम वोटर करीब 36 फीसदी हैं. इसके अलावा ब्राह्मण मतदाता 15 फीसदी के ऊपर हैं. करीब 10 फीसदी राजपूत हैं तो वहीं ओबीसी मतदाताओं में लोधी, कुशवाहा, पटेल बघेल मतदाता अच्छे खासे हैं. ऐसे में अखिलेश की जीत में अगर मुस्लिम वोटर बिदके तो फिर राह मुश्किलों भरी होंगी.

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