यूपी की राजनीति में बीते दो दशकों से एक अपशगुन चल रहा है. कहा जाता है कि बीते दो दशक में जिस भी मुख्यमंत्री ने नोएडा का दौरा किया, उसे कुर्सी गंवानी पड़ी है. इस अंधविश्वास को तोड़ने की हिम्मत युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी नहीं दिखा पा रहे हैं. शायद इसलिए उन्होंने नोएडा में एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) की बैठक में खुद शिरकत नहीं की. इस बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अलावा दो दर्जन से ज्यादा देशों के वित्त मंत्री शामिल हो रहे हैं.
नोएडा में दो मई से शुरू हुई चार दिवसीय एडीबी की बैठक में भाग न लेने का फैसला कर मुख्यमंत्री अखिलेश ने अपने मंत्री ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी को वहां जाने को कहा, लेकिन उनकी तबीयत बिगड़ जाने के कारण अब स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के रूप में बैठक में शिरकत करेंगे.
इससे पहले दो अप्रैल को नोएडा से जुड़ी 3,500 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास अखिलेश ने लखनऊ में अपने सरकारी आवास से किया था. पिछले साल यमुना एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन भी उन्होंने लखनऊ से ही किया.
अखिलेश के मुख्यमंत्री रहते यूं बार-बार नोएडा जाने से कतराने से सवाल उठता है कि क्या राज्य के युवा और इंजीनियरिंग के छात्र रह चुके मुख्यमंत्री भी टोटकों से डरते हैं?
समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव राम आसरे कुशवाहा ने इस पर सफाई देते हुए कहा, ‘मुख्यमंत्री व्यस्तता के कारण नोएडा नहीं जा पाए. अपशगुन की कोई बात नहीं है. कोई स्थान खराब नहीं होता.’
कहते हैं कि जो भी नेता मुख्यमंत्री रहते हुए नोएडा जाते हैं, उनकी कुर्सी चली जाती है. इसलिए उत्तर प्रदेश के मुख्यामंत्री रहते हुए नेता नोएडा जाने से तौबा करते हैं. टोटके का यह सिलसिला पिछले 20 वर्षों से जारी है.
नोएडा के अपशगुन का डर ऐसा है कि कभी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे राजनाथ सिंह ने नोएडा में एक फ्लाईओवर का उद्घाटन भी दिल्ली से किया था. जब नोएडा में निठारी कांड हुआ तब बेहद दबाव के बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव नोएडा नहीं गए.
नोएडा को लेकर यह टोटका कल्याण सिंह के समय से चला आ रहा है. 20 साल पहले वह किसी कार्यक्रम में शिरकत करने नोएडा गए थे, जिसके बाद उनकी कुर्सी चली गई. वर्ष 1999 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्ता के साथ भी ऐसा ही हुआ. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की पिछली सरकार में मुख्यमंत्री रहीं मायावती ने इस मिथक को तोड़ने का साहस किया और साल 2011 में वह नोएडा गई, लेकिन इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में बसपा हार गई.
अब एडीबी की बैठक में अखिलेश के नोएडा न जाने पर विपक्षी दलों का कहना है कि मुख्यमंत्री कुर्सी छिन जाने के अंधविश्वास के कारण नोएडा जाने से डर रहे हैं, जबकि सूबे की जनता युवा मुख्यमंत्री से दकियानूसी विचारों को तोड़ने की आस लगाए थी.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदीप माथुर ने एडीबी की बैठक में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के भाग न लेने को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदगी में मुख्यमंत्री भी एडीबी की बैठक में भाग लेते तो राज्य को इसका लाभ मिलता. शगुन-अपशगुन के फेर में बैठक में मुख्यमंत्री के भाग नहीं लेने से उनकी छवि बिगड़ेगी.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि मुख्यमंत्री कुर्सी जाने के अंधविश्वास के कारण नोएडा जाने से डर रहे हैं, जबकि लोगों को उम्मीद थी कि युवा मुख्यमंत्री इस तरह के दकियानूसी विचारों को नहीं मानेंगे.