अखिलेश यादव मुलायम सिंह यादव के बेटे हैं और राजनीति के तमाम दांव उन्होंने अपने पिता से ही सीखे हैं लेकिन सत्ता के शीर्ष पर होते हुए भी मुलायम अखिलेश पर भारी पड़ रहे हैं. अखिलेश ने जो दांव मुलायम सिंह यादव के साथ खेला, अब उसी दांव से मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को पशोपेश में डाल दिया है.
सोमवार को पार्टी कभी न तोड़ने की बात कहकर अखिलेश ने अपना ट्रंप खेला और पार्टी और नेताजी के प्रति षड्यंत्रों का हवाला देकर अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई. इससे पार्टी को तोड़ने के आरोपों को अखिलेश ने खत्म कर दिया. एक भावुक बेटे के उद्गारों का लेकिन पिता पर कोई असर नहीं पड़ा.
शिवपाल के साथ खड़े मुलायम सिंह यादव ने अपने भाषण में मुख्तार अंसारी के परिवार को एक ईमानदार परिवार बताया, अमर सिंह को अपना भाई बताया और कहा कि वो अभी कमज़ोर नहीं हुए हैं. मुलायम बोले कि उनके एक इशारे पर सारे युवा उनके साथ खड़े हो जाएंगे.
मुलायम सिंह के भाषण से स्पष्ट हो गया है कि वो अपने ऊपर किसी भी तरह का आक्षेप नहीं लेना चाहते और न ही किसी एक को अतिशक्तिशाली बनाकर देखना चाहते हैं. अखिलेश की साढ़े चार साल की सत्ता और पद को नेताजी ने खारिज कर दिया है.
गेंद वापस अखिलेश के पाले में
मुलायम सिंह यादव ने अब गेंद को वापस अखिलेश यादव के पाले में उछाल दिया है. सत्ता का अभिमान और पार्टी की मर्यादा से दूर होने जैसे बयानों के ज़रिए मुलायम सिंह ने साफ कर दिया है कि वो किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं हैं. अब विकल्प अखिलेश के सामने हैं कि वो अपने घुटने टेककर मुलायम सिंह यादव के कैंप की प्रभुसत्ता को स्वीकार करें और पार्टी से लेकर सरकार तक निर्णय लेने के अपने एकछत्र अधिकार को त्याग दें.
अगर वो ऐसा करने के लिए तैयार नहीं होते हैं तो दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि अखिलेश पार्टी को छोड़ें और अपना राजनीतिक वर्चस्व खुद तैयार करें. अखिलेश के लिए अब यही सबसे बड़ी चुनौती है कि मुलायम सिंह की इस ज़बरदस्त पटकनी से वो कैसे उबरते हैं और आगे क्या रास्ता चुनते हैं.
राजनीति में अपने वजूद को बचाने के लिए और बने रहने के लिए अखिलेश यादव के पास अब बगावत का ही विकल्प बचा है. झुकना उनको उस कतार में काफी पीछे लाकर खड़ा कर देगा जिसके सबसे आगे वो खड़े हैं.