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2024 के लिए दांव या मजबूरी... डिंपल का टिकट काट अखिलेश जयंत को क्यों भेज रहे राज्यसभा?

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आरएडी अध्यक्ष जयंत चौधरी को अपने कोटे से राज्यसभा भेजने का फैसला किया है. अखिलेश ने इस तरह जयंत चौधरी को आठ साल के बाद संसद भेजकर बड़ा सियासी दांव चला है. एक तरफ आरएलडी-सपा के साथ गठबंधन को बनाए रखने की कोशिश की है तो दूसरी तरफ जावेद अली को राज्यसभा भेजकर मुस्लिम वोटों का साधने का दांव चला है.

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अखिलेश यादव-डिंपल यादव-जयंत चौधरी
अखिलेश यादव-डिंपल यादव-जयंत चौधरी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • आठ साल के बाद जयंत सपा के सहयोग से जाएंगे संसद
  • सपा और आरएलडी के बीच दोस्ती को मिलेगी मजबूती
  • अखिलेश यादव ने मुस्लिम वोट बैंक का भी रखा ख्याल

राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने सभी पत्ते खोल दिए हैं. सूबे में विधायकों की संख्या के आधार पर सपा को मिलने वाली तीनों सीट के लिए अखिलेश यादव ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. सपा ने जावेद अली को पार्टी का कैंडिडेट बनाया है तो कपिल सिब्बल को निर्दलीय और आरएलडी के जयंत चौधरी को समर्थन देने का ऐलान किया. इस तरह से अखिलेश ने अपने कोर वोटबैंक का एक तरफ ख्याल रखा तो दूसरी तरफ 2024 के चुनाव को देखते हुए जयंत के साथ दोस्ती को बनाए रखने का सियासी दांव चला है. 

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2022 विधानसभा चुनाव में सपा-आरएलडी ने मिलकर लड़ा था, उस वक्त सीट शेयरिंग के दौरान अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का वादा किया था. ऐसे में गुरुवार को सपा ने ट्वीट कर कहा कि 'जयंत चौधरी समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल से राज्यसभा के संयुक्त प्रत्याशी होंगे. 

अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का कदम उठाकर बड़ा सियासी दांव चला है. इससे एक तरफ जयंत और अखिलेश यादव की दोस्ती को 2024 के लोकसभा चुनाव में मजबूती देगा. वहीं, जयंत चौधरी आठ साल के बाद संसद पहुंचेंगे. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से जयंत चौधरी संसद से बाहर हैं और अब जाकर सपा के समर्थन से राज्यसभा पहुंचेंगे. इसका सियासी संदेश भी पश्चिमी यूपी में जाएगा, जिसका राजनीतिक लाभ 2024 में मिल सकता है. 

मुस्लिम समुदाय को साधने की कवायद

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राज्यसभा चुनाव के जरिए अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछाने में जुटे हैं. अखिलेश ने जावेद अली को सपा का कैंडिडेट बनाकर मुस्लिम समुदाय को साधने की कवायद की है. 2022 के चुनाव में सपा को मुस्लिमों ने जिस तरह से एकजुट होकर वोट दिया था, जिसके चलते एक मुस्लिम कैंडिडेट देना मजबूरी थी. इसकी एक वजह यह भी थी कि राज्यसभा में सपा कोटे से फिलहाल कोई मुस्लिम सांसद नहीं है, जिसे देखते हुए भी अखिलेश के ऊपर मुस्लिम प्रत्याशी बनाने का भी दबाव था. 

यूपी में करीब बीस फीसदी मुस्लिम मतदाता है, जो एक दर्जन संसदीय सीटों पर अपना खास असर रखते हैं. ऐसे में मुस्लिम वोटों की सियासी ताकत को देखते हुए सपा के लिए उन्हें नजर अंदाज करना आसान नहीं था. मुस्लिम बहुल पश्चिमी यूपी के सम्भल से आने वाले जावेद अली खान को दोबारा से राज्यसभा भेजने का फैसला किया है. जावेद अली साफ सुथरी छवि के नेता माने जाते हैं और मुस्लिम सियासत में फिट भी बैठते हैं. 

जाट समुदाय को भी संदेश

वहीं, सपा ने अपने कोटे से जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजकर जाट समुदाय को भी संदेश दिया. इससे आरएलडी और सपा की दोस्ती 2024 के चुनाव में मजबूत होगी. 2022 के चुनाव में सपा-आरएलडी गठबंधन ने मिलकर पश्चिमी यूपी के जिलों में बीजेपी को तगड़ी चुनौती ही नहीं दी ही बल्कि जीतने में भी सफल रही थी. 

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मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बरेली और रामपुर जिले में सपा-आरएलडी का दबदबा रहा था और बीजेपी को मात खानी पड़ी थी. ये वही इलाका है, जहां पर जाट और मुस्लिम वोट काफी अहम हैं. इसी समीकरण को अखिलेश यादव फिर से दोहाराने के मूड में है, जिसके चलते उन्होंने एक तरफ जयंत चौधरी को समर्थन देकर संसद भेज रहे हैं तो जावेद अली को दोबारा से राज्यसभा. 

सिब्बल को साधकर आजम पर दांव

अखिलेश यादव ने एक राज्यसभा सीट पर पूर्व कांग्रेसी कपिल सिब्बल को समर्थन देने का ऐलान किया है. सपा ने सिब्बल को समर्थन देने के कदम को पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत दिलाने में मदद करने के लिए एक बदले के रूप में देखा जा रहा है. आजम खान ने खुद भी कहा था कि अगर सपा सिब्बल को राज्यसभा भेजेगी तो उन्हें खुशी होगी. 

अखिलेश ने कपिल सिब्बल के जरिए आजम की नाराजगी को दूर करने का दांव चला है. इसके संकेत इस तरह भी मिलते हैं कि सपा प्रमुख अखिलेश  ने जिस दिन सिब्बल को राज्यसभा के लिए समर्थन का ऐलान किया तो उसी दिन विधानसभा में आजम खान के मुद्दे को उठाया. अखिलेश यादव ने सदन में कहा कि सरकार ने जिस तरह से बदले की कार्रवाई के भावना में आजम खान के खिलाफ मुकदमें लिखे गए हैं, वो उचित नहीं है. इस तरह सदन के पटल पर पहली बार आजम खान के मुद्दे को उठाकर अखिलेश ने उनकी भी नाराजगी दूर करने की कोशिश की है. 

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इस तरह से साफ है कि अखिलेश यादव अब 2024 के समीकरण सेट करने में जुटे हैं, जिसमें आजम खान को खुद से अलग नहीं करना चाहते हैं. आजम खान भी मुस्लिम सियासत के जरिए फिर से खुद को स्थापित करना चाहते हैं. ऐसे में अखिलेश उन्हें किसी तरह से अपने साथ बनाए रखना चाहते हैं, जिसके लिए तमाम जतन कर रहे हैं. ऐसे में देखना है कि अखिलेश की यह कोशिश क्या सियासी रंग लाती है. 


 

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