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अखिलेश-जयंत ने निकाली मायावती की काट? सपा गठबंधन में चंद्रशेखर की एंट्री

उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के जरिए 2024 के लोकसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जा रही है. बीजेपी मैनपुरी उपचुनाव को जीतकर 2024 में क्लीन स्वीप का मजबूत आधार रखना चाहती है. वहीं, सपा-आरएलडी उपचुनाव से अपने राजनीतिक समीकरण को दुरुस्त करने में जुटी है.

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चंद्रशेखर आजाद और जयंत चौधरी
चंद्रशेखर आजाद और जयंत चौधरी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भले ही दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ दोस्ती बनते-बनते रह गई थी, लेकिन अब उपचुनाव के जरिए दोनों ही नेता करीब आ रहे हैं. मैनपुरी लोकसभा और खतौली-रामपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में चंद्रशेखर आजाद सपा गठबंधन के साथ खुलकर खड़े हैं. खतौली में जयंत चौधरी के साथ प्रचार करने के बाद अब तीन दिसंबर को आजम खान के रामपुर में अखिलेश यादव और जयंत के साथ चंद्रशेखर भी मंच साझा करेंगे. इससे साफ जाहिर होता है कि सपा गठबंधन में चंद्रशेखर की एंट्री आखिरकार हो चुकी है. 

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मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट पश्चिम यूपी की सियासत का कुरुक्षेत्र बना है. बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए आरएलडी ने गुर्जर समुदाय के दिग्गज नेता मदन भैया को मैदान में उतारा है. मैनपुरी और रामपुर सीट पर सपा और बीजेपी की सीधी लड़ाई है. बसपा उपचुनाव नहीं लड़ रही है. ऐसे में मायावती के दलित वोटबैंक को साधने के लिए जयंत चौधरी ने चंद्रशेखर आजाद को गठबंधन में साथ लेकर चलने का दांव चला है. 

खतौली सीट पर जयंत चौधरी और चंद्रशेखर आजाद एक मंच पर थे और दोनों का मकसद मदन भैया को जिताना है. जयंत ने खतौली से दिल्ली पर निशाना साधा. जंयत चौधरी ने कहा, 'जीत पक्की करने को नहीं है ये गठबंधन. हम खतौली से दिल्ली तक का समीकरण बिगाड़ देंगे.' इतना ही नहीं जयंत चौधरी ने आजतक से बातचीत करते कहा कि चंद्रशेखर की गठबंधन में औपचारिक एंट्री हो चुकी है और आप देख सकते हैं तीनों रामपुर में एक साथ एक गाड़ी पर चलने जा रहे हैं. 

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वहीं, चंद्रशेखर आजाद के तेवर भी बीजेपी को लेकर आक्रामक है. खतौली उपचुनाव में हाथरस की घटना किसान आंदोलन में मारे गए किसानों का जिक्र कर सियासी पारा और भी चढ़ा दिया. चंद्रशेखर ने कहा कि खतौली का उपचुनाव बीजेपी के अहंकार के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम करेगा. खतौली सीट का रिजल्ट किसान आंदोलन में शहीद किसानों को सच्ची श्रद्धांजलि देगा. 

खतौली उपचुनाव सीट पर सपा-आरएलजी गठबंधन की जीत की कहानी लिखने उतरे जयंत-चंद्रशेखर ने मुजफ्फरनगर से दिल्ली पर निशाना साधकर गठबंधन का नया फार्मूला सामने रखा. ऐसे ही रामपुर में तीन दिसंबर को सपा प्रमुख अखिलेश यादव, आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी और चंद्रशेखर आजाद एक साथ चुनाव प्रचार करने के लिए उतर रहे हैं. चंद्रशेखर के जरिए गठबंधन दलित वोटों को साधने में जुटा है. ऐसे में यह फॉर्मूला कामयाब हुआ तो चंद्रशेखर आजाद फिर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में सपा-आरएलडी गठबंधन का हिस्सा होंगे? 

मैनपुरी, रामपुर और खतौली उपचुनाव के जरिए उत्तर प्रदेश में डेढ़ साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अभी से ही सियासी बिसात बिछाई जाने लगी. उपचुनाव में गठबंधन के लिए चंद्रशेखर आजाद का प्रचार करना पश्चिमी यूपी के नए बनते समीकरण की ओर इशारा कर रही हैं. अखिलेश-जयंत चौधरी-चंद्रशेखर की तिकड़ी आगामी लोकसभा चुनाव में एक साथ मिलाकर उतरते हैं तो पश्चिम यूपी में बीजेपी और बीएसपी दोनों के लिए राजनीतिक तौर पर कड़ी चुनौती हो सकती है. 

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पश्चिम यूपी की सियासत में जाट, मुस्लिम और दलित काफी अहम भूमिका अदा करते हैं. आरएलडी का कोर वोटबैंक जहां जाट माना जाता है तो सपा का मुस्लिम है. वहीं, चंद्रशेखर आजाद ने दलित नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई है. 2017 में सहारनपुर में ठाकुरों और दलितों के बीच हुए जातीय संघर्ष में दलित समाज के युवाओं के बीच चंद्रशेखर ने मजबूत पकड़ बनाई है. ऐसे में चंद्रशेखर और जयंत चौधरी को अखिलेश अपने साथ जोड़कर दलित-मुस्लिम-जाट का मजबूत कॉम्बिनेशन बनाना चाहते हैं. 

BJP-BSP के लिए होगी कड़ी चुनौती

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि 2013 से पहले पश्चिम यूपी में बीजेपी का कोई खास जनाधार नहीं रहा था, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाटों को जोड़कर उसने अपनी सियासी जमीन को मजबूत किया. किसान आंदोलन ने जाट और मुस्लिम के बीच दूरियों को काफी पाटने का काम किया है. 2022 के चुनाव में अखिलेश-जयंत की जोड़ी में चंद्रशेखर जगह नहीं बना सके थे, जिसके चलते सपा-आरएलडी गठबंधन को भी नुकसान हुआ है और चंद्रशेखर के हाथ भी कुछ नही आया है. विधानसभा चुनाव से सबक लेते हुए अब तीनों नेता एक साथ खड़े हो रहे हैं, जिसके लिए उपचुनाव में इस फॉर्मूले के टेस्ट का मौका दिया है. 

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सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं यूपी में बीजेपी और बसपा की सत्ता आने में पश्चिम यूपी की काफी अहम भूमिका रही है. बसपा का बड़ा जनाधार इसी पश्चिम यूपी के इलाके में रहा है. 2007 में पश्चिम यूपी में मुस्लिम-दलित-गुर्जर के सहारे मायावती इस पूरे इलाके में क्लीन स्वीप करने में कामयाब रही थी. मुजफ्फरनगर दंगे के चलते सियासी फायदा बीजेपी को मिला था. 2022 के चुनाव में दलित वोटों का एक तबका बीजेपी के गया है, जिसके चलते सपा-आरएलडी गठबंधन बहुत सफल नहीं रहा. ऐसे में जयंत चौधरी दलित वोटों को साधने के लिए मायावती के विकल्प के तौर पर चंद्रशेखर आजाद को साथ रखने की दांव चला है, जिसका लिटमस टेस्ट उपचुनाव में होगा. 

बता दें कि पश्चिम यूपी में जाट 20 फीसदी के करीब हैं तो मुस्लिम 30 से 40 फीसदी के बीच हैं और दलित समुदाय भी 25 फीसदी के ऊपर है. ऐसे में पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम-दलित समीकरण बनता है कि बीजेपी के साथ-साथ बसपा के लिए भी चुनौती खड़ी हो जाएगी. बसपा दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने में जुटी है, लेकिन मुस्लिमों का एक तबका मायावती पर विश्वास नहीं जता पा रहा है. बसपा को बीजेपी की बी-टीम के तौर पर देखता है. ऐसे में अखिलेश यादव भी दलित वोटों के लिए तमाम जतन कर रहे हैं. इसी कड़ी में चंद्रशेखर और जयंत चौधरी के साथ अखिलेश नया सियासी फॉर्मूला बना सकते हैं? 

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