लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी 'भारत जोड़ो यात्रा' के जरिए देश के सियासी नब्ज की थाह लेने के लिए निकले हैं. वहीं, बीजेपी से नाता तोड़कर महागठबंधन में वापसी करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों मिशन-2024 के लिए विपक्षी एकजुटता की मुहिम छेड़ रखी है. इसी कड़ी में नीतीश ने अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव से मिले. यह मुलाकात सिर्फ शिष्टाचार नहीं रही बल्कि उससे कहीं आगे की सियासत थी.
अखिलेश-नीतीश की मुलाकात
विपक्षी एकजुटता के मिशन पर निकले नीतीश कुमार मंगलवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव से मिले. इस दौरान अखिलेश यादव भी मौजूद रहे. मेदांता अस्पताल के एक अलग कमरे में एक घंटे की इस मुलाकात के बाद जब दोनों नेता साथ-साथ बाहर निकले. इस दौरान नीतीश कुमार ने ऐलान किया कि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में देश में बनने वाले महागठबंधन को लीड करेंगे. इस पर अखिलेश की तरफ से अभी तक कोई रिएक्शन नहीं आया, लेकिन नीतीश ने सूबे के लिए बड़ा सियासी संकेत दे दिया है.
विपक्षी एकता में बसपा के रास्ते बंद
सपा प्रमुख अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की सियासत में विपक्ष के सबसे बड़े चेहरा हैं. सूबे में सपा फिलहाल मुख्य विपक्षी पार्टी भी है, लेकिन नीतीश कुमार ने यूपी में विपक्षी एकता का चेहरा अखिलेश को बनाकर फिलहाल बसपा के लिए सारे रास्तों को बंद कर दिया है. हालांकि, बसपा प्रमुख मायावती भी 2024 चुनाव के लिए विपक्षी एकजुटता की हो रही कवायद में दिलचस्पी भी नहीं दिखा रही है और न ही अपने पत्ते खोल रही हैं. ऐसे में स्वाभाविक है कि बीजेपी के खिलाफ जो विपक्षी ताना-बाना बुना जा रहा, उसमें उनके लिए स्पेस सिकुड़ता जा रहा है.
जेडीयू ने कहा कि सभी एकजुट हों
नीतीश कुमार के करीबी और दिल्ली में जेडीयू की सियासत में अग्रणी भूमिका निभा रहे पार्टी महासचिव केसी त्यागी कहते हैं कि नीतीश कुमार की राजनीति में यानि 'विपक्षी एकता' की मुहिम में किसी तरह की कोई पॉलिटिकल अनटचेबिलिटी नहीं है. नीतीश की विपक्षी एकता में सभी के लिए जगह है. बीजेपी और मोदी के खिलाफ कोई भी दल या व्यक्ति आ सकता है.
फिलहाल नीतीश कुमार के उस बयान के बाद जिसमें उन्होंने सपा प्रमुख अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में महागठबंधन को लीड करने वाला बताया है. उस पर बसपा और मायावती की प्रतिक्रिया के आने का इंतजार है. हालांकि, मायावती अभी तक 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन आजमगढ़ संसदीय उपचुनाव के बाद दलित-मुस्लिम समीकरण पर जरूर चलने के संकेत दिए थे. ऐसे में मायावती 2024 के लिए अपनी अलग सियासी राह बना रही है, लेकिन गठबंधन को लेकर चुप हैं.
दरअसल, नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स ऑफ ऑपोजिशन यूनिटी में सभी के लिए जगह है, लेकिन माना जा रहा है कि अखिलेश यादव को प्रदेश के महागठबंधन का चेहरा बनाए जाने के बाद अब बसपा का रास्ता बंद है. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि न तो मायावती और न ही उनकी पार्टी की ओर से इस दिशा में किसी तरह से कोई सक्रिय कदम उठाया जा रहा.
उत्तर प्रदेश में विपक्ष के दूसरे बड़े खिलाड़ी हैं आरएलडी के अध्यक्ष जयंत चौधरी हैं. नीतीश कुमार की बात जयंत चौधरी से फोन पर हो चुकी है और उम्मीद है कि दोनों की मुलाकात भी जल्द होगी, लेकिन विपक्ष की इस एकजुटता में दरार दिखने लगी. केसीआर से लेकर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल अपनी-अपनी तरह से विपक्षी एकता की राजनीति कर रहे हैं तो बसपा साइलेंट मोड में है.
विपक्षी एकता में दरार दिख रही
वहीं, इंडियन नेशनल लोक दल यानी ओम प्रकाश चौटाला ने 25 सितंबर को चौधरी देवीलाल की जयंती पर विपक्षी एकता को प्रदर्शित करने के लिए एक बड़ी रैली रखी है. यह रैली हरियाणा के फतेहाबाद में रखी गई है, जिसमें जयंत चौधरी को न्योता नहीं दिया गया है जबकि नीतीश कुमार से लेकर अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और प्रकाश सिंह बादल सरीखे सभी नेताओं को बुलाया गया. जयंत चौधरी के नहीं बुलाए जाने से सवाल खड़े होने लगे हैं.
ओमप्रकाश चौटाला और जयंत चौधरी दोनों ही जाट समुदाय के नेता हैं और एक ही सियासी धारा से निकले हैं. ऐसे में दोनों ही नेतातओं की अपनी-अपनी सियासी महत्वाकांक्षाए भी हैं, लेकिन चौटाला की कर्मभूमि हरियाणा रही है तो जंयत चौधरी की यूपी. ऐसे में जयंत चौधरी के न बुलाए जाने से विपक्षी एकता बनने के पहले ही बिखरती भी दिख रही है. खासकर उत्तर प्रदेश के लिहाज से, जिसमें सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से लेकर शिवपाल यादव और महान दल तक पहले ही सपा से नाता तोड़ चुके हैं तो मायावती चुप हैं.
सपा को नीतीश का नेतृत्व कुबूल
समाजवादी पार्टी 2024 के चुनाव में खुद को प्रधानमंत्री के रेस में खुले तौर पर नहीं मानती. अखिलेश यादव के करीबी नेता उदयवीर सिंह कहते हैं कि नीतीश कुमार अगर प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बनते हैं तो उन्हें कोई एतराज नहीं होगा. साथ ही यह बात भी कहते हैं कि विपक्षी खेमे में कई बड़े ऐसे नेता हैं, जो प्रधानमंत्री बनने की काबिलियत रखते हैं. इस तरह से सपा एक तरफ तो नीतीश की तरफ कदम भी बढ़ा रही है और दूसरी तरफ विकल्प भी दे रही है.
यूपी में कुर्मी-कोइरी समीकरण
उत्तर प्रदेश में कुर्मी और कोइरी जातियों की तादाद काफी ज्यादा है. वो फिर चाहे अनुप्रिया पटेल हो या पल्लवी पटेल दोनों ने कुर्मी वोटों के आधार पर ही उत्तर प्रदेश की सियासत ने अपनी जगह बनाई है. ऐसे में नीतीश कुमार को यूपी की राजनीति में अपने लिए उम्मीद की किरण नजर आती है, क्योंकि वो भी कुर्मी समुदाय से आते हैं. ऐसे में अगर 2024 चुनाव में उनके नाम का ऐलान हो जाए तो एक बड़ा मतदाता वर्ग विपक्षी एकता के साथ खड़ा हो सकता है, जो फिलहाल बीजेपी का कोर वोटर है.
अखिलेश यादव के साथ पल्लवी पटेल और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे दो बड़े चेहरे हैं, जिनके दम पर सपा गैर यादव ओबीसी के बीच अपनी राजनीति जगह बना रही है. ऐसे में अगर नीतीश कुमार भी सपा गठबंधन में शामिल हो जाते हैं तो ओबीसी के बीच बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है. इसे लेकर उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की राजनीति में एक नई सुगबुगाहट तेज हो गई है.
2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी खेमें जिस तरह से सियासी समीकरण बन रहे हैं. ऐसे अब देखना यह है कि क्या अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन लीड करने के एलान के एवज में नीतीश कुमार ने खुद के विपक्षी खेमें से पीएम पद के लिए चेहरा बनने के बारे में कोई आश्वासन मांगा है. इसी पर सभी की निगाहें लगी है. नीतीश कुमार ने अपना दांव तो चल दिया है, लेकिन देखना है कि अखिलेश यादव क्या पासा फेंकते हैं?