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पंजाब उत्तराखंड होते हुए चुनाव में आज तक का यह सफर पहुंचा है अब उत्तर प्रदेश. देश का सबसे बड़ा सूबा है उत्तर प्रदेश. अगले दो महीनों के भीतर होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के राजनीतिक समीकरण को बदलकर रखने की क्षमता रखते हैं. उत्तर प्रदेश का सबसे प्रभावी इलाका है पश्चिमी उत्तर प्रदेश. जिसे राजनीति की प्रयोगशाला भी कहा जाता है. इस बार विधानसभा चुनाव के पहले विवाद की आवाज उठी कृष्ण की जन्मभूमि कहे जाने वाले मथुरा से.
मथुरा श्री कष्ण की जन्मस्थली है इसलिए सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में सनातन संस्कृति से जुड़े लोगों के लिए आध्यात्म और आस्था का केंद्र भी है. मथुरा अपनी परंपराओं के लिए मशहूर है. मथुरा अपने पेड़ो की मिठास के लिए भी जाना चाहता है, तो ब्रज की धरती दूध दही मक्खन के ज़ायके से भी भरी है. लेकिन आस्था और अध्यात्म का ये केंद्र पिछले कुछ दिनों से विवादों का युद्ध क्षेत्र बन गया है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की आहट से ठीक पहले मथुरा का मुद्दा गरमाने लगा.
कुछ संगठनों की ओर से 'अयोध्या झांकी है काशी मथुरा बाकी है' के नारे छेड़े जाने लगे. 28 नवंबर को अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने ऐलान कर दिया कि वह 6 दिसंबर को मथुरा में मस्जिद के अंदर जन्मस्थान पर श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित कर जलाभिषेक करेंगे. लेकिन मथुरा जिला प्रशासन के इनकार के बाद इसे रद्द कर दिया गया. कार्यक्रम को देखते हुए धारा-144 लागू कर दी गई. मामले को और ज्यादा तूल तब मिला, जब खुद राज्य के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने सोशल मीडिया पर लिख दिया कि, 'अयोध्या और काशी में भव्य मंदिर निर्माण जारी है और मथुरा की तैयारी है.' केशव प्रसाद मौर्य के बयान से एक बार को ऐसा लगा कि बीजेपी एक बार फिर अयोध्या-मथुरा-काशी के एजेंडे के सहारे चुनावी नैया पार लगाना चाहती है, क्योंकि अयोध्या-काशी-मथुरा शुरू से ही बीजेपी के एजेंडे में शामिल रहा है.
केशव प्रसाद मौर्य ने मुद्दा छेड़ा तो हिंदू महासभा ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह तो चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश है. जब विवाद खड़ा हुआ तो उप-मुख्यमंत्री ने सफाई में कह दिया कि ये चुनावी मुद्दा नहीं है. सिर्फ उत्तर भारत ही नहीं, बल्कि मथुरा को लेकर दक्षिण भारत में भी बीजेपी के नेताओं ने आवाज मुखर की. कर्नाटक से बीजेपी विधायक अरविंद बेल्लाद ने बयान देते हुए कहा कि मथुरा और बनारस का मुद्दा हिंदुओं के लिए खत्म नहीं हुआ है. हिंदुओं के लिए मथुरा और काशी का धार्मिक महत्व है इसलिए इस मुद्दे पर भी फैसला होना चाहिए. विपक्ष ने चुनाव से पहले काशी और मथुरा को मुद्दा बनाए जाने को लेकर सीधे-सीधे बीजेपी पर निशाना साधा.
आखिर यह पूरा विवाद शुरु कैसे हुआ?
मथुरा श्री कृष्ण विराजमान वाद मथुरा कोर्ट में 25 सितंबर 2020 को दाखिल हुआ. यह कुल 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक का विवाद है, जिसमें से 10.9 एकड भूमि श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास है, जबकि 2.5 एकड़ भूमि शाही ईदगाह मस्जिद के पास है.
याचिका दाखिल होने के बाद अदालत ने 4 संस्थाओं को नोटिस दिया, जिनमें
1- श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान
2- श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट
3- शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी
4- उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल बोर्ड शामिल हैं.
इस मामले में अब तक कुल 6 वाद दायर किए जा चुके हैं. यह सभी वाद जिला जज के न्यायालय में विचाराधीन है, जिसमें अब तक एक साल में 11 बार सुनवाई हो सकी है. लेकिन अभी तक जिला अदालत से यह निर्णय नहीं हो सका है कि यह वाद यहां चलने योग्य स्वीकार किया जाएगा या हाई कोर्ट ही इस मामले की सुनवाई कर सकेगा. इस निर्णय पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं.
वाद में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर बने पहले मन्दिर से अंतिम मंदिर के बनने का इतिहास बताया गया है. साथ ही, कहा गया है कि सन 1618 में राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने 33 लाख से श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर प्रथम मन्दिर बनवाया था. वाद में यह भी कहा गया है कि औरंगजेब द्वारा मन्दिर को तोड़कर जन्मस्थान की भूमि पर शाही मस्जिद ईदगाह का निर्माण कराया गया था.
इस जमीन विवाद में याचिकाकर्ता की ओर से यह भी मांग की गई है कि शाही मस्जिद ईदगाह और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के बीच 1967 में जो भी समझौता हुआ है, उसे रद्द किया जाए. अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक महेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं मुगलों ने जन्मभूमि पर हमला किया और आज भी ईदगाह वही बनी हुई है, जहां भगवान कृष्ण पैदा हुए थे. ऐसे में, यह हमारी आस्था का विषय है और इस मुद्दे को जरूर उठना चाहिए.
अदालत में दायर याचिका में कहा गया है कि कटरा केशव देव की सम्पूर्ण सम्पत्ति ट्रस्ट की है और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को उसका मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता. इसलिए उसके द्वारा किया गया उक्त समझौता जहां अवैध है, वहीं कटरा केशव देव की सम्पत्ति पर शाही मस्जिद ईदगाह का किसी प्रकार अधिकार नही हो सकता. इसलिए उस पर किया गया निर्माण भी अवैध है. इसी आधार पर शाही मस्जिद ईदगाह को हटाने की बात कही गई. महेंद्र प्रताप की दलील है कि श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को शाही ईदगाह मस्जिद के साथ, ऐसा किसी तरह का करार करने का अधिकार ही नहीं था, इसलिए उस करार को निरस्त किया जाए.
तो क्या मथुरा में इस जमीन को लेकर के पहले भी विवाद रहा है?
मथुरा में बतौर पत्रकार शहर को अच्छी तरह समझने वाले मदन गोपाल कहते हैं, 'यह जो शाही ईदगाह मस्जिद वाला विवाद है, इसमें एक समझौता 1968 में हुआ था. श्री कृष्ण जन्मस्थान और ईदगाह मस्जिद के बीच यह जो जगह है, वह 13.3 एकड़ है. जिसमें 11.1 एक एकड कृष्ण जन्मस्थान के पास है 2.2 एकड़ शाही ईदगाह मस्जिद के पास है, लेकिन यहां कभी विवाद नहीं हुआ है. हाल ही में हिंदू महासभा ने शाही ईदगाह मस्जिद में 6 दिसंबर को जलाभिषेक की बात कही थी और 10 दिसंबर को मस्जिद में आरती करने की बात कही थी. उसके बाद थोड़ा सा तनाव रहा था, लेकिन जिला प्रशासन ने उन्हें किसी भी तरह की अनुमति नहीं दी और पूरे जनपद में धारा 144 लागू हुई थी.' पत्रकार मदन गोपाल कहते हैं कि मथुरा के लोग हमेशा सद्भाव में रहे और यहां कभी दो समुदायों के बीच इस मसले को लेकर के विवाद हुआ ही नहीं.
इस विवाद की जड़ की वजह इतिहास के पन्नों में है. मुगल शासक 10वीं सदी से लेकर 16वीं सदी तक लगातार भारत के धार्मिक प्रतिष्ठानों, अनुष्ठानों, संस्कृति और मंदिरों को अपना निशाना बनाते रहे. मोहम्मद गजनवी से लेकर मुगल शासक औरंगजेब ने कई मंदिरों को ढहाकर मस्जिदें और ईदगाह बनाईं.
मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर और इतिहासकार फिरोज बख्त अहमद कहते हैं कि यह तारीख गवाह है कि मुगलों ने कई सदियों तक हिंदुस्तान के धार्मिक अनुष्ठानों को नुकसान पहुंचाया. और यह भी सच है कि 16वीं सदी में औरंगजेब ने मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि की जगह ईदगाह बनाई.
कृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के ओएसडी विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि मुगलों ने मंदिरों को निशाना बनाया और उन्हें तोड़कर मस्जिद बनाई. ऐसे में मथुरा को भी इंसाफ मिलना चाहिए, क्योंकि 13 एकड़ की जो कुल भूमि है वह भगवान कृष्ण की है. अगर जमीन भगवान कृष्ण की है तो वहां ईदगाह या मस्जिद क्यों?
चुनाव नजदीक हैं इसलिए राजनीतिक हवा दी जा रही है
इस मामले में ईदगाह पक्ष को यह लगता है कि चुनाव की तारीखों को नजदीक देखते हुए, इसे राजनीतिक हवा दी जा रही है. शाही ईदगाह मस्जिद के सचिव और इस मामले में वकील तनवीर अहमद कहते हैं कि मथुरा गंगा जमुनी तहजीब वाला शहर है और यहां जन्माष्टमी पर बाल गोपाल के लिए मुस्लिम समुदाय लड्डू बनाते हैं, तो वहीं सलमा की चुनरी राधा रानी पहनती हैं. तनवीर अहमद कहते हैं कि सालों तक कभी यहां कोई बखेड़ा हुआ ही नहीं और 68 में जो मसले हल किए गए उसके बाद यहां लोग अमन और सुकून से ही रहते थे, लेकिन चुनाव को देखते हुए फिर कुछ लोग इसे हवा दे रहे हैं.
मथुरा के लोग सिर्फ अमन और सुकून के साथ रहना चाहते हैं
यह तो हुई पक्षकारों की बात, तो क्यों ना अब उनकी राय भी जानें जिनका इस शहर से सीधा सीधा सरोकार है. आगरा के बाजारों में आज भी रौनक है और चाय की चौपाल जिंदा है. रामकिशन राजपूत की चाय की दुकान पर 75 साल के सलीम चाय की चुस्की लेते हैं. मथुरा की तहजीब दिखाई पड़ती है, जब रामकिशन और सलीम दोनों एक साथ यमुना मैया की जय जयकार लगाते हैं.
रामकिशन कहते हैं कि मथुरा वालों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा यहां का सुकून और सद्भाव है, जिसे कुछ लोग खराब करने की कोशिश कर रहे हैं. सलीम कहते हैं कि सालों से यहां हिंदू मुसलमान एक साथ रहे हैं और अब इस मामले को लेकर कुछ लोग राजनीति कर रहे हैं क्योंकि चुनाव आने वाले हैं. रामकिशन कहते हैं कि यहां मुसलमान जन्माष्टमी और दिवाली पर जश्न मनाते हैं तो यहां के हिंदू ईद के त्यौहार पर गले मिलते हैं, बधाइयां देते हैं. आज तक की चौपाल में आए मथुरा के ज्यादातर लोगों की राय है कि मंदिर-मस्जिद सिर्फ एक सियासी मुद्दा है जबकि मथुरा के लोग सिर्फ और सिर्फ अमन सुकून से एक साथ सद्भाव के साथ रहना चाहते हैं.
मांस-मदिरा के कारोबार पर बैन
सिर्फ मंदिर मस्जिद ही नहीं, मथुरा में हाल ही में विवाद की एक लहर तब खड़ी हुई जब कृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ठाकुर जी के दर्शन के बाद, इलाके में मांस और मदिरा की बिक्री पर रोक लगाने का ऐलान कर दिया. योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि जो लोग इस बैन से प्रभावित होंगे, वे लोग मथुरा के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महिमा को पुनर्जीवित करने के लिए दूध बेचने का कारोबार शुरू कर सकते हैं.
मथुरा को तीर्थ स्थल घोषित किए जाने की मांग लगातार उठा रही थी और चुनावों से पहले योगी सरकार ने मथुरा-वृंदावन में श्रीकृष्ण जन्म स्थल को केंद्र में रखकर 10 वर्ग किमी क्षेत्र को तीर्थ स्थल घोषित कर दिया. साथ ही, यहां मांस-मदिरा के कारोबार पर बैन लगा दिया. योगी सरकार के इस फैसले से ब्रज के संत समाज में तो खुशी है, लेकिन इसका एक पहलू यह है कि अब इस कारोबार से जुड़े हजारों लोग सड़क पर आ गए हैं. अब उनके सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है.
मजीद होटल के मालिक जाकिर हुसैन के यहां मटन कोरमा और खमीरी रोटी के लिए बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ होती थी. अब खमीरी रोटी तो बनती है, लेकिन मटन कोरमा की जगह पनीर और सोयाबीन कोरमा ने जगह ले ली है. जाकिर हुसैन कहते हैं कि सरकार के इस फैसले ने उनके साथ-साथ इलाके के कई कारोबारियों को मुश्किल में डाल दिया है. जाकिर कहते हैं कि यह फैसला 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक रूप से लिया गया है. क्योंकि अगर यह मसला आस्था का होता, तो क्या भगवान सिर्फ 10 वर्ग किलोमीटर ही देखते हैं. जाकिर हुसैन कहते हैं कि हमारी मान्यता भी भगवान कृष्ण में है और वह कण-कण में बसते हैं, इसलिए जन्माष्टमी के समय हम यहां लंगर भी लगाते हैं. लेकिन मीट बंद करने का यह फैसला पूरी तरह से राजनीतिक है, आस्था का नहीं. जाकिर हुसैन का आरोप है कि उत्तर प्रदेश सरकार मुस्लिम समाज को भूखे मारना चाहती है, इसलिए उनसे कारोबार छीन रही है.
मीट बैन से जिनका कारोबार प्रभावित हुआ है उनमें से कई अपनी दुकान बेचकर या तो चले जाना चाहते हैं या कुछ और करना चाहते हैं. मीट विक्रेता अबरार कुरैशी कहते हैं कि उनके चाचा की दुकान अब बिकने के लिए तैयार है, क्योंकि योगी के फैसले से मीट कारोबारियों की रोजी-रोटी बंद हो गई है. अबरार कहते हैं कि सरकार के आदेश के बाद, अब मीट का कारोबार बंद हो गया है. ऐसे में उनकी कमाई बंद हो गई है और अब वह दुकान बेचना चाहते हैं. अबरार कहते हैं कि कारोबार बंद होने से अब उनके सामने घर चलाने और बच्चों को पढ़ाने तक के पैसे नहीं हैं.
अबरार कुरैशी कहते हैं कि अगर सरकार ने यह फैसला आस्था को देखते हुए लिया है, तो वह भी इस फैसले का सम्मान करते हैं. लेकिन रोजी-रोटी छीनने से पहले, सरकार को उनके लिए आजीविका का दूसरा कोई बंदोबस्त करना चाहिए या कम से कम आसपास के औद्योगिक इलाकों में उनके लिए नौकरियों की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि वह भी अपने बच्चों का पेट पाल सकें.
मोहम्मद कुरैशी ने तो मीट की दुकान बंद करके अब किराने की दुकान खोली है, लेकिन कहते हैं कि कमाई इतनी नहीं है जिससे घर परिवार का पेट पाल सकें. इसलिए जिंदा रहने के लिए अपनी पुरानी मीट की दुकान बंद करके राशन पानी की दुकान खोल ली है.
आस्था की डुबकी- यमुना के हाल बेहाल
मथुरा में एक और मुद्दा सालों से समाधान का इंतजार कर रहा है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, मथुरा में जन्मे कृष्ण का ज्यादातर समय वृंदावन और गोकुल की गलियों में यमुना के किनारे बीता. जिस जमुना के साथ मान्यताएं और कथाएं जुड़ी हुई हैं, आज मथुरा में वह यमुना प्रदूषित होकर किसी बदबूदार बजबजाते बड़े नाले की तरह दिखाई पड़ती है. यमुना के ऊपर कचरा तैरता दिखाई पड़ता है तो गंदे नाले अपनी सारी गंदगी इस नदी में प्रवाहित कर देते हैं. आस्था की डुबकी तो छोड़िए इस नदी के किनारे दो पल ठहरना भी मुश्किल है.
यमुना की सफाई के लिए यमुना मिशन का गठन तो किया गया है, लेकिन उसका काम यमुना की सतह पर दिखाई देता है. यमुना मिशन से जुड़ा हुआ उमेश कहता है कि यहां 8 घंटे रोजाना सफाई होती है और वह पूरी मेहनत से काम कर रहे हैं. इसके चलते पहले के मुकाबले ज्यादा स्वच्छता दिखाई दे रही है, लेकिन प्रशासनिक दावे कैमरे की तस्वीरों के आगे धूमिल पड़ रहे हैं.
स्थानीय निवासी रामकुमार कहते हैं कि यमुना अब नाम के लिए पवित्र रह गई है, जबकि यहां डुबकी लगाना और इसका आचमन तो अब असंभव है. राम कुमार कहते हैं कि यमुना की बात कोई नहीं करता, ना ही कोई इसकी सफाई पर ध्यान देता है, इसलिए यमुना का हाल बेहाल हो चला है.
यमुना के घाटों के किनारे रहने वाले स्थानीय निवासियों की शिकायत भी यही है कि सरकार इस पवित्र नदी की स्वच्छता की ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है. जो कदम उठाए भी जा रहे हैं वह फिलहाल नाकाफी हैं, इसलिए यमुना बेहाल हो रही है.
मथुरा के कई रंग हैं, कई परंपराएं हैं तो कई विविधताएं भी हैं और साथ ही कई समस्याएं भी हैं. विडंबना यह है कि स्थानीय मुद्दे समस्याओं की अनदेखी करके, सर पर चुनाव आता देख ऐसे मसलों को हवा दी जा रही है जिनका आम जनता से सरोकार ना के बराबर है. जबकि जनता चाहती है कि उनके मसलों का समाधान हो, उनके शहर में अमन सुकून बना रहे और लोग 2 जून की रोटी कमा खा सकें.