चाहे मायावती सरकार हो या फिर अखिलेश यादव सरकार इन दोनों पर आईएएस रमा रमण का जादू चलता रहा है. नोएडा, ग्रेटर नोएडा या फिर यमुना एक्सप्रेस-वे प्राधिकरण में चाहे जितने भी बड़े घोटाले हुए हो, लेकिन रमा रमण की कुर्सी बरकरार रही. यादव सिंह की बहाली में अहम भूमिका निभाने वाले इस अफसर के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
अदालत ने सुनाया तबादले का फरमान
दरअसल आईएएस अधिकारी रमा रमण अकेले ऐसे पहले अफसर नहीं हैं. जो नोएडा, ग्रेटर नोएडा के लंबे समय तक चेयरमैन व सीईओ रहे हों. ब्रजेश कुमार और मोहिन्दर सिंह का कार्यकाल भी चार से पांच साल का रहा. बसपा शासन काल में ललित श्रीवास्तव भी दो बार में साढ़े तीन साल तक चेयरमैन और सीईओ रहे थे. नोएडा प्राधिकरण की स्थापना 17 अप्रैल 1976 में हुई थी, जबकि ग्रेटर नोएडा की स्थापना 28 जनवरी 1991 और यमुना प्राधिकरण की 24 अप्रैल 2001 को स्थापना हुई. स्थापना के वक्त से तीनों प्राधिकरण के सीईओ अलग-अलग रहे हैं, लेकिन चेयरमैन एक ही रहा है.
HC ने रमा रमण के काम पर लगाई रोक
दअसल आईएएस रमा रमण को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है. नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस-वे अथारिटी के मुख्य कार्यपालक अधिकारी का पद संभाल रहे आईएएस रमा रमण पर शुक्रवार को कोर्ट की गाज गिरी. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीईओ के रूप में उनके काम करने पर रोक लगा दी है. यही नहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने सख्त निर्देश में रमा रमण के अधिकार जब्त करने के भी आदेश दिए हैं. इसके अलावा प्रदेश सरकार को दो हफ्ते के अंदर इनका तबादला करने का आदेश दिया है. हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि प्रदेश सरकार को रमा रमण का तबादला गौतम बुद्ध जिले से बाहर करना होगा.
एक सामाजिक कार्यकर्ता की याचिका पर फैसला
जानकारी के मुताबिक ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण के चेयरमैन पद पर रमा रमण काफी लंबे समय से तैनात रहे. रमा रमण पिछले 6 सालों से नोएडा अथॉरिटी और यमुना एक्सप्रेस-वे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी के मुख्य अधिशासी के पद पर जमे थे, जिसको लेकर हाई कोर्ट ने रमा रमण के एक साथ 3 पोस्ट संभालने पर आपत्ति दर्ज की थी. बता दें कि सामाजिक कार्यकर्ता जितेंद्र गोयल की याचिका पर कोर्ट का ये फैसला आया है, मामले की अगली सुनवाई 20 जुलाई को होगी. गौरतलब है कि रमा रमण 2009 में ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के सीईओ बने थे, फिर 2011 में ग्रेटर नोएडा, नोएडा और यमुना एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी के चेयरमैन भी बन गए.
हाईकोर्ट ने पहले भी जताई थी नाराजगी
हाईकोर्ट ने एक बड़े आदेश में तीनों प्राधिकरण के चेयरमैन रमा रमण के कामकाज पर रोक लगा दी है. वरिष्ठ आईएएस अफसर रमा रमण की नियुक्ति को लेकर एक बार फिर कोर्ट ने अखिलेश सरकार के कामकाज को लेकर खिंचाई की है. बता दें कि हाईकोर्ट ने पूर्व में भी प्राधिकरण में रमा रमण की नियुक्ति को लेकर सवाल उठाए थे. तब कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि आखिर सरकार की रमा रमण की तैनाती के पीछे क्या मजबूरी है, वह इतने सालों से प्राधिकरण में क्यों तैनात हैं.
मायावती पर भी रमा रमण का जादू
खास बात यह है कि चाहे मायावती सरकार हो या फिर अखिलेश यादव सरकार सभी पर आईएएस रमा रमण का जादू हमेशा चला. नोएडा, ग्रेटर नोएडा या फिर यमुना एक्सप्रेस-वे प्राधिकरण में चाहे जितने भी बड़े घोटाले हुए हो, लेकिन रमा रमण की कुर्सी बरकरार रही. यादव सिंह की बहाली में अहम भूमिका निभाने वाले इस अफसर के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. तीनों प्राधिकरण के मौजूदा चेयरमैन रमा रमण से पहले ब्रजेश कुमार ऐसे पहले अधिकारी थे, जिन्होंने करीब साढ़े चार साल तक ग्रेटर नोएडा के सीईओ और चेयरमैन की जिम्मेदारी संभाली. वह भाजपा शासनकाल में 1997 से 2001 तक सीईओ और चेयरमैन रहे. इसके बाद 2005 में प्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद उन्हें दोबारा ग्रेटर नोएडा के साथ नोएडा और यमुना प्राधिकरण का भी सीईओ एवं चेयरमैन बनाया गया. हालांकि इस बार उनका कार्यकाल करीब आठ महीने का रहा.
तबादला नहीं होने से कोर्ट ने पूछा सवाल
नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना प्राधिकरण के चेयरमैन रहे राकेश बहादुर और नोएडा के सीईओ संजीव सरण को भी कोर्ट के हस्तक्षेप से पद से हटना पड़ा था. दोनों अधिकारियों पर नोएडा में होटल आवंटन में गड़बड़ी का आरोप था. साल 2007 में बसपा के सत्ता में आने के बाद दोनों को निलंबित किया गया था. इसके बाद प्रदेश में जब 2012 में सपा सत्ता में आई तो दोनों का निलंबन खत्म किया गया था. दोनों अधिकारियों की तैनाती दोबारा नोएडा और ग्रेटर नोएडा में की गई थी, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी डाली गई. इसके अलावा कोई भी अधिकारी दो साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया.
लंबे वक्त तक ये भी पद पर थे तैनात
रमा रमण 2009 में ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के सीईओ बने थे. फिर 2011 में ग्रेटर नोएडा, नोएडा और यमुना एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी के चेयरमैन भी बन गए. आईएएस अधिकारी रमा रमण अकेले ऐसे पहले अफसर नहीं हैं, जो नोएडा, ग्रेटर नोएडा के लंबे समय तक चेयरमैन व सीईओ रहे हों. ब्रजेश कुमार और मोहिन्दर सिंह का कार्यकाल भी चार से पांच वर्ष का रहा. बसपा शासन काल में ललित श्रीवास्तव 2001 से 2003 और 2007 से 2009 के अंत तक ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण के सीईओ और चेयरमैन एवं नोएडा प्राधिकरण के चेयरमैन रहे. इसके अलावा राकेश बहादुर भी दो बार नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण के सीईओ रहे. उनका पहला कार्यकाल 2005 से 2007 तक रहा जबकि दूसरा कार्यकाल 2012 में रहा. ग्रेटर नोएडा में योगेंद्र नारायण, नृपेन्द्र मिश्र, रवि माथुर, डी एस बैंस, टी जॉर्ज जोसफ, अजय शंकर, आरएस माथुर सीईओ औक चेयरमैन ऐसे थे, जिनका कार्यकाल लंबा था.
इनकी हुई जल्दी छुट्टी
इसके अलावा तीनों प्राधिकरणों में कोई अधिकारी ऐसा नहीं रहा, जिसने दो साल का कार्यकाल भी पूरा किया हो. अधिकतर सीईओ और चेयरमैनों की छुट्टी एक साल के भीतर ही हो गई. नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण में ऐसे भी अनेक अफसर रहे, जो छह माह का कार्यकाल भी पूरा न कर सके. लेकिन योगेश कुमार, गंगाराम बरुआ, दिनेश सिंह और मनोज कुमार सिंह एक से तीन महीने के अंदर पद से हटा दिए गए.
अथॉरिटी में करोड़ों के घोटाले
अब सवाल उठता है कि आखिर एक ही अधिकारी को तीनों प्राधिकरणों का मुखिया क्यों बनाया गया जबकि अथारिटी में करोड़ों के कई घोटाले हैं. आईएएस रमा रमण 6 साल से इन तीनों प्राधिकरणों के सीईओ का पद संभाल रहे हैं. इस बीच प्राधिकरणों में तमाम घोटाले सामने आने के बाद भी उन्हें नहीं हटाया गया. कोर्ट ने कहा है कि कई योग्य अधिकारियों के बावजूद एक ही अधिकारी को तीन प्राधिकरणों का सीईओ बनाए रखना कई तरह के सवाल खड़े करता है. मुख्य सचिव को आदेश दिया गया है कि उनकी अध्यक्षता में गठित कमेटी दो महीने के भीतर रमा रमण के तबादले पर फैसला ले.