इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के डीजीपी को निर्देश दिया है कि वे पुलिस थानों से टॉप टेन अपराधियों के बारे में सूचना देने वाले बैनर या पोस्टर हटा लें. इन बैनरों में अपराधियों के नाम व पहचान के साथ ही उनके आपराधिक इतिहास की भी जानकारी होती है. होईकोर्ट ने कहा कि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है. वहीं कोर्ट ने अदालत की निगरानी के लिये अपराधियों की सूची तैयार करना गलत नहीं माना है.
डीजीपी को सभी थानों को सर्कुलर जारी कर टॉप टेन अपराधियों के बैनर थाने से हटाने के लिये कहा गया है. कोर्ट का मानना है कि सार्वजनिक रूप से पुलिस स्टेशनों के बाहर अपराधियों के बारे में जानकारी प्रदर्शित करना अनावश्यक और मानवीय गरिमा के विपरीत है. जस्टिस पंकज नकवी और विवेक अग्रवाल की पीठ ने ये निर्देश जीशान उर्फ जानू, बलवीर सिंह यादव और दुधनाथ सिंह की याचिका पर सुनवाई के बाद दिये.
याचिकाकर्ताओं के नाम प्रयागराज और कानपुर थानों में बाहर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित अपराधियों की टॉप टेन सूची में हैं. हाईकोर्ट ने इस याचिका की सुनवाई के बाद आदेश दिया कि न तो राजनीतिक और ना हीं सामाजिक रूप से किसी अपराधी का नाम थानों के बाहर सार्वजनिक रूप से बैनर या पोस्टर लगाकर प्रदर्शित करने की आवश्यकता है, जब तक उसके खिलाफ धारा 82 सीआरपीसी (कुर्की का नोटिस) के तहत आदेश न जारी किया गया हो.
बता दें कि हर थाने में टॉप टेन अपराधियों की सूची होती है. इस सूची में शामिल अपराधियों के नाम को थाने में बैनर पर लगाया जाता है. इस बैनर में अपराधी के नाम, उसकी पहचान के अलावा अन्य जानकारियों होती हैं. उसके द्वारा किये गये अपराधों की संख्या के बारे में भी जानकारी अंकित होती है. टॉप टेन अपराधियों के बारे में जानकारी सार्वजनिक होती है. साफ शब्दों में कहा जाये, तो इस बैनर पर अमूमन हर उस व्यक्ति की नजर पड़ जाती है, जो थाने में जाता है.
ये भी पढ़ें