कोर्ट के सख्त रवैये के बावजूद रमा रमन को नोएडा और ग्रेटर नोएडा से नहीं हटाने को लेकर शनिवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना रुख और कड़ा कर लिया. हाई कोर्ट ने यूपी सरकार और रमा रमन की अपील को नामंजूर करते हुए उनके काम पर लगी रोक हटाने से साफ इनकार कर दिया है. उल्टा हाई कोर्ट ने रामा रमन से पूछा की इतनी विवादास्पद जगह पर इतने विवादों में फंसे होने के बावजूद वो आखिर इसी पद पर क्यों बने रहना चाहते हैं? इलाहाबाद हाई कोर्ट सोमवार को फिर इस मामले की सुनवाई करेगा.
सिर्फ एक आईएएस अधिकारी की पसंदीदा तैनाती को लेकर राज्य सरकार और हाई कोर्ट के बीच खींचतान हो जाए, ऐसा अमूमन नहीं होता. लेकिन, उत्तर प्रदेश में एक अधिकारी को लेकर ऐसा ही हो रहा है. यह अधिकारी हैं नोएडा अथॉरिटी के सीईओ रमा रमन. रमा रमन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की आंखों के ऐसे तारे हैं कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा की कमान उनके हाथों में बनाए रखने के लिए यूपी सरकार हाई कोर्ट की फटकार के बाद भी एड़ी चोटी का जोर लगा रही है.
कोर्ट ने मांगी जमीन अधिग्रहण की सारी फाइलें
इस मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दिलीप भोंसले और जस्टिस यशवंत शर्मा की बेंच ने रमा रमन के कार्यकाल के दौरान हुए जमीन के अधिग्रहण की सारी फाइलें कोर्ट के सामने पेश करने को कहा है. यूपी सरकार से यह भी पूछा गया है की एनसीआर में रमा रमन के कार्यकाल के दौरान कौन-कौन से ऑफिसर तैनात थे और उन्हें क्यों हटाया गया.?
6 साल से नोएडा में ही पोस्टेड हैं रमा रमन
गौरतलब है कि 1987 बैच के आईएएस रमा रमन पिछले 6 सालों से नोएडा, ग्रेटर नोएडा में ही तैनात हैं. एक जुलाई को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी सरकार को बड़ा झटका देते हुए रमा रमन के नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे ऑथरिटी के सीईओ के तौर पर काम करने पर रोक लगा दी थी. इतना ही नहीं कोर्ट ने कड़े फैसले में रमा रमन के अधिकार जब्त करने का भी आदेश दिया था. शनिवार को इस मामले में हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान यूपी सरकार ने न सिर्फ रामा रमन का बल्कि यादव सिंह का भी जमकर बचाव किया. यूपी सरकार की तरफ से हाई कोर्ट में कहा गया कि यादव सिंह पर लगे तमाम आरोप बेबुनियाद हैं.