यूपी में बंद की गई मीट की दुकानों पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 अप्रैल तक योगी सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि लाइसेंस देने के लिए अदालत के दिशा निर्देश पर विचार किया जाए.
लखनऊ बेंच ने कहा कि 31 मार्च तक जिन दुकानों को लाइसेंस नहीं मिले थे, उन्हें 1 हफ्ते में लाइसेंस देने पर हमारे गाइडलाइंस के मुताबिक विचार हो. सूबे में सभी ज़िला अधिकारी हर 2 किलोमीटर पर मीट की दुकानों को जगह मुहैया कराएं. कोर्ट ने साथ ही ये भी कहा है कि भोजन की आदत एक मानवीय स्वभाव है जो आदमी-आदमी पर निर्भर करती है और इसे राज्य द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है.
पूरी तरह बैन संभव नहीं
हाई कोर्ट ने कहा कि सरकार अवैध बूचड़खानों को बंद करें, लेकिन पूरी तरह से मीट पर बैन नहीं लगाया जा सकता. संविधान में आर्टिकल 21 के तहत लोगों को जिंदगी जीने और उनकी पसंद के खान-पान का अधिकार है. यह लोगों की आजीविका, खान-पान और रोजगार से जुड़ा मामला है, इसे पूरी तरह से बंद नहीं किया जा सकता. लखीमपुर खेरी नगर परिषद के रहने वाले मीट व्यपारी ने अपनी याचिका में कहा था कि वह बकरे के मीट का व्यापारी है और बार-बार अपील करने के बावजूद उसका लायसेंस रिन्यू नहीं किया जा रहा है. लाइसेंस रिन्यू नहीं होने से मीट व्यपारी पर जीविका गहरा संकट छा गया है.
हड़ताल पर गए थे मीट व्यापारी
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के अगले ही दिन से ही सभी अवैध तरीके से चल रहे बूचड़खानों को बंद करने के आदेश दिए थे, जिसके बाद मीट व्यापारी हड़ताल पर चले गए. सरकार पर आरोप लगे कि इस कदम का मकसद लोगों को मीट खाने से रोकना है, मीट व्यापारियों ने जब योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की, उसके बाद यह हड़ताल खत्म हुई.