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ओरल सेक्स गंभीर अपराध नहीं, सजा भी घटाई... कोर्ट के फैसले के खिलाफ बाल संरक्षण आयोग की चिट्ठी

राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर कहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ तत्काल अपील दायर करें. साथ ही बच्चों से जुड़े मामलों को गंभीरता से लें.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 10 साल से घटाकर 7 साल कर दी गई थी सजा
  • यौन ​उत्पीड़न से जुड़े मामले में लिखा पत्र

बच्चों के यौन उत्पीड़न से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल में ही बच्चों के साथ होने वाले ओरल सेक्स को 'अति गंभीर अपराध' मानने से इनकार कर दिया था. साथ ही दोषी की सजा भी घटा दी थी. अदालत के इस फैसले को लेकर कई लोगों ने सवाल उठाए थे. अब इस मामले में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग भी कूद पड़ा है.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ तत्काल अपील दायर करने के लिए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने यूपी के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है. बाल अधिकार पैनल ने खत में कहा है कि इस मामले में अदालत ने सजा को 10 साल से घटाकर 7 साल तक कर दिया. साथ ही ओरल सेक्स को 'गंभीर अपराध' मानने से इनकार कर दिया. आयोग का कहना है कि दोषी सोनू कुशवाहा के खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया था. ऐसे में दोषी की सजा बरकरार रहनी चाहिए थी.  

यह है मामला
दरअसल, यूपी में झांसी की निचली अदालत ने ओरल सेक्स मामले में आरोपी को दोषी करार देते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी. इस मामले में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की गई.

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हाईकोर्ट ने ओरल सेक्स को अति गंभीर अपराध श्रेणी से अलग रखते हुए दोषी की सजा 10 साल से घटाकर 7 साल कर दिया. अदालत ने अपने फैसले में POCSO एक्ट का हवाला भी दिया था. अदालत ने कहा कि यह कृत्य एग्रेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट (गंभीर यौन हमला) नहीं है.

'बच्चों से जुड़े मामलों पर दिखाएं गंभीरता'
अब इसी मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पत्र लिखा है और आयोग ने यूपी मुख्य सचिव से इस केस में कदम उठाने की अपील की है. आयोग ने कहा कि आने वाली शिकायतों की जांच करने और अभाव से संबंधित मामले की स्वत: संज्ञान लेने के लिए और बाल अधिकारों का उल्लंघन, सुरक्षा प्रदान करने वाले कानूनों का कार्यान्वयन न करने से संबंधित कदम उठाए जाएं.

इसके अलावा बच्चों का विकास, नीतिगत निर्णयों, दिशा-निर्देशों या निर्देशों का पालन न करने, बच्चों की कठिनाइयों को कम करने और उनके कल्याण को सुनिश्चित करने और उन्हें राहत प्रदान करने के उद्देश्य से या इससे होने वाले ऐसे मुद्दों को उठाएं.

'फैसले के खिलाफ तत्काल दायर करें अपील'
इसके अलावा आयोग ने मुख्य सचिव को लिखे पत्र में यह भी कहा है कि बच्चों से संबंधित अपराधों पर ​गंभीरता से ध्यान दिए जाने की जरूरत है. POCSO अधिनियम बच्चों की सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक व्यापक कानून है. यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों पर विशेष ध्यान दें. मामले की गंभीरता को देखते हुए POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 44 के तहत निगरानी निकाय होने की वजह से जरूरी कदम उठाएं. अदालत के फैसले के खिलाफ तत्काल अपील दायर करें.

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