अयोध्या हिंदुस्तान की वो नगरी, जो मंदिर-मस्जिद विवाद के साए में तीन चश्मों से देखी जा रही है. इसे लेकर मजहब का नजरिया कुछ और है और सियासत का कुछ और. तीसरा चश्मा अयोध्या के अतीत का है, इसे लेकर ऐतिहासिक दस्तावेजों और आंखों देखी बयान हैं. इस नजरिए से देखें, तो अयोध्या में मंदिर-मस्जिद जैसा विवाद होना ही नहीं चाहिए.
अयोध्या किस साजिश का शिकार हुई कि अमन की नगरी सुलगने लगी? इसे किसने बांट दिया मंदिर और मस्जिद के खेमे में? आम राय तो यही है कि भगवान श्रीराम की नगरी में विवाद का बीज 5 सौ साल पहले मुगल शासक बाबर ने बोया. उसी के शासन में राममंदिर तोड़ा गया और इसकी जगह मस्जिद बनवाई गई. यहीं से नफरत का बीज पनपा और समाज में दो खेमों में बंट गया.
अयोध्या विवाद आजादी के बाद से अब तक न जाने कितने जख्म दे चुका है, हिंदुस्तान की साझी विरासत के खाके को मजहब की दीवार के साथ ऐसे बांट चुका है, कि ऐतिहासिक दस्तावेज भी इसके आगे बेमतलब हो चुके हैं. इनके मुताबिक बात तो ये सामने आती है, कि विवादित मस्जिद तो बाबर ने बनवाया ही नहीं था.
बाबर को लेकर इतिहास में अनेक बात
मुगलिया इतिहास की तारीखें ये बताती है कि बाबर मार्च 1526 में हिंदुस्तान आया था. मात्र 12 हजार सैनिकों के साथ उसने पानीपत में दिल्ली के बादशाह इब्राहिम लोदी के साथ जंग लड़ी थी. 20 अप्रैल को इब्राहिम लोदी का कत्ल करने के एक हफ्ते बाद दिल्ली में उसकी ताजपोशी हुई. उसके आयोध्या आने की बात 1528 में की जाती है. राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की बात इसी साल की जाती है, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेजों की माने तो अयोध्या में राम मंदिर तो बाबर के आने के बाद मौजूद था.
अयोध्या रीविजिटेड के लेखक किशोर कुणाल का कहना है कि 1631 में मंदिर देखा, तुलसीदास ने भी लिखा. इस तरह के प्रमाण है कि 1640 तक मंदिर था.
किशोर कुणाल, किताब और मंदिर-मस्जिद
पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी रह चुके किशोर कुणाल ने 20 साल के शोध के बाद अयोध्या रीविजिटेड नाम की किताब लिखी है. इस किताब में वो ऐसे तमाम तथ्यों को खारिज करते हैं, जिसमें कहा जाता है- बाबर एक आक्रमणकारी के तौर पर अयोध्या आया, यहां एक लाख 74 हजार हिंदुओं का नरसंहार कराया और उनके अराध्य का मंदिर तोड़कर अपने नाम से मस्जिद बनवाई.
इस तथ्य पर एक रौशनी मशहूर कथाकार कमलेश्वर ने भी अपनी किताब कितने पाकिस्तान डाली है. कमलेश्वर के मुताबिक बाबर के आने के साढ़े तीन सौ साल ब्रिटिश गैजेटियर के मुताबिक अयोध्या की आबादी 10 से 12 हजार की थी, तो फिर उसकी सेना ने नरसंहार कैसे किया. बल्कि अयोध्या पर तो हमले की भी कोई जरूरत नहीं थी.
दरअसल ये पूरी साजिश अंग्रेजों की थी. उन्होंने ही मंदिर का पुराना शिलालेख बदला और बाबर की डायरी बाबरनामा के अप्रैल से लेकर सितंबर 1528 तक के पन्ने गायब कर दिए.
हालांकि ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ये मान चुकी है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर के सुबेदार मीर बाकी ताशकंदी ने कराया था. मीर बाकी अयोध्या से चार मील दूर सनेहुआ से सटे ताशकंद गांव का रहने वाला था. उसी ने अयोध्या में मस्जिद बनाने का सुझाव दिया था.
एएसआई के पूर्व निदेशक डॉ. जमाल हसन के मुताबिक बाबर जौनपुर से वापस आ रहा था. अयोध्या में रुका था. मीर ने गुजारिश की, मस्जिद नहीं है, एक होनी चाहिए. तो बाबर ने कहा बनवा लीजिए.
क्या इब्राहिम लोदी शासन में बन गई थी मस्जिद?
इससे ये साबित नहीं होता कि बाबर ने मस्जिद राम मंदिर तोड़कर बनाई थी. अगर किशोर कुणाल और कमलेश्वर की लिखी किताबों में दिए गए हवालों की माने, तो अयोध्या में मस्जिद बाबर के आने के पहले इब्राहिम लोदी के शासनकाल में ही बन गई थी. इसे लेकर मस्जिद में एक शिलालेख भी था, जिसका जिक्र एक ब्रिटिश अफसर ए फ़्यूहरर ने भी कई जगह किया है.
फ़्यूहरर के मुताबिक वो शिलालेख उन्होंने आखिरी बार 1889 में पढ़ा था, जिसके मुताबिक मस्जिद का निर्माण इब्राहिम लोदी ने 1523 में शुरू कराया था.
अंग्रेजी राज और बाबरी मस्जिद
अयोध्या की उस मस्जिद का शिलालेख अंग्रेजी राज में बड़ी चालाकी के साथ नष्ट कर दिया गया. शायद ब्रिटिश हुकूमत ये समझ चुकी है कि मजहब को लेकर साझे रुख वाले हिंदुस्तान पर लंबे समय तक राज करना है, तो इन्हें आपस में लड़ाना होगा. अयोध्या के जरिए अंग्रेजों ने हिंदू-मुस्लिम के बीच आपसी एकता को दुश्मनी में बदल दिया.
1857 के सिपाही विद्रोह के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने मजहबी भेदभाव की रणनीति और भी तेज कर दी. इसी नीति के तहत इब्राहिम लोदी की मस्जिद ‘बाबरी मस्जिद’ के नाम से मशहूर की गई.