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राममंदिर पर चाहकर भी कोर्ट के बाहर समझौता नहीं कर सकते मुस्लिम पक्षकार!

वक्फ ऐक्ट 2013 के सेंक्शन 29 में साफ है कि मस्जिद, काब्रिस्तान, खानकाह, इमामबाड़ा, दरगाह, ईदगाह, मकबरे को न बेची जा सकता है, न किसी को ट्रांसफर किया जा सकता है, न गिरवी रखी जा सकती है, न गिफ्ट की जा सकती है और न ही उसके प्रयोग के स्वरूप को बदला जा सकता है.

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बाबरी मस्जिद (फाइल फोटो)
बाबरी मस्जिद (फाइल फोटो)

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अयोध्या विवाद का आपसी समझौते से हल निकालने की इन दिनों देश में कोशिशें हो रही है. अाध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर से लेकर शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड अध्यक्ष वसीम रिजवी तक अयोध्या में राममंदिर बनाने के मिशन पर हैं. हिंदू-मुस्लिम पक्षकारों से बातचीत भी की जा रही है, लेकिन बात अभी तक बनती नजर नहीं आ रही है. अयोध्या मामले में ऐसा कानूनी पेंच है कि मुस्लिम पक्षकार एक बार विवादित स्थान पर राममंदिर के लिए रजामंद भी जाए, तब भी कोर्ट से बाहर समझौता नामुमकिन है.

वक्फ ऐक्ट बना रोड़ा, कोई कानूनी अधिकार नहीं

वक्फ ऐक्ट 2013 के सेंक्शन 29 में साफ है कि मस्जिद, कब्रिस्तान, खानकाह, इमामबाड़ा, दरगाह, ईदगाह, मकबरे को न बेची जा सकती है, न किसी को ट्रांसफर किया जा सकता है, न गिरवी रखी जा सकती है, न गिफ्ट की जा सकती है और न ही उसके प्रयोग के स्वरूप को बदला जा सकता है. ये एक्ट सुन्नी और शिया वक्फ बोर्ड दोनों के लिए है. इसके विपरीत कोई काम करता है तो वह अवैध माना जाएगा. यही वजह है कि मुस्लिम पक्षकार चाहकर भी समझौता नहीं कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें कोई कानूनी अधिकार नहीं हैं.

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हाईकोर्ट का सुन्नी वक्फ बोर्ड के पक्ष में फैसला

बता दें कि अयोध्या विवाद में बाबरी मस्जिद की ओर से पैरवी सुन्नी वक्फ बोर्ड कर रहा है. इस तरह ये प्रॉपर्टी सुन्नी वक्फ बोर्ड की है. 1940 में शिया वक्फ बोर्ड ने दावा किया था कि ये मस्जिद शिया समुदाय की है और उन्हें सौंपी जाए. हाईकोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मजबूत दावा पेश करते हुए पैरवी की. 1946 में जिला कोर्ट ने शिया के दावे को खारिज कर दिया और बाबरी मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे पर मुहर लगा दी.

बता दें कि सुन्नी पक्ष ने तर्क दिया था कि मौजूदा समय में मस्जिद का मुतवल्ली और इमाम सुन्नी हैं और रमजान के महीने में इस मस्जिद में तरावी भी होती है. सुन्नी पक्ष के इस तर्क पर कोर्ट ने शिया के दावे को खारिज करते हुए सुन्नी पक्ष में फैसला दे दिया था.

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मुकदमें को एडाप्ट किया

बाबरी मस्जिद में 1949 में मूर्ति रखी गई तो अयोध्या के क्षेत्रीय मुसलमानों ने मुकदमा दायर कर दिया. इसके बाद 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस मुकदमा ए़डाप्ट कर लिया है. तब से इस मुकदमें की पैरवी मुस्लिम पक्षकारों में सुन्नी वक्फ बोर्ड कर रहा है. बाबरी मस्जिद ही नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड की किसी भी प्रापर्टी का मुतवल्ली सिर्फ रखवाला होता है मालिक नहीं. इसीलिए मुस्लिम पक्षकार चाहकर भी समझौता नहीं कर सकते हैं.

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अयोध्या मामले का हल सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के जरिए ही हल हो सकता है. इस बात को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लोग बाखूबी समझते हैं इसीलिए वो कोर्ट के फैसले की बात कर रहे हैं.

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