अयोध्या राम मंदिर का विवाद अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. लेकिन अयोध्या में सरयू नदी के किनारे भगवान राम की प्रतिमा लगाने के लिए अधिग्रहित की गई भूमि भी विवादों में आ गई है. यह भूमि योगी आदित्यनाथ सरकार ने अधिग्रहित की थी. प्रशासन के जमीन अधिग्रहण के तरीके को लेकर 64 भूमि मालिकों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का दरवाजा खटखटाया है, जहां उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया गया है. इसके लिए हाई कोर्ट ने प्रशासन अधिकारियों और जमीन मालिकों को अपना पक्ष रखने के लिए 25 जुलाई को पेश होने के लिए तारीख तय की है.
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अयोध्या में सरयू के किनारे विश्व की सबसे ऊंची भगवान राम की प्रतिमा बनवाने की घोषणा की थी ताकि अयोध्या से गुजरने वाले हर शख्स को राम के दर्शन हो सकें. इसके लिए अयोध्या जिला प्रशासन के भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया करते ही विवाद खड़ा हो गया है. 64 जमीन के मालिकों ने भूमि अधिग्रहण को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं और मामलों के साथ कोर्ट पहुंच गए हैं.जमीन मालिकों का कहना है कि राम की प्रतिमा लगाए जाने पर कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन प्रशासन उन्हें लगातार गुमराह कर रहा है. उनका आरोप है कि उक्त भूमि का समुचित मुआवजा भी नहीं दिया गया. ऐसे में तिनका-तिनका इकट्ठा करके उन्होंने अपना आशियाना बनाया. अब वह कहां जाएं. उन्होंने कहा कि भगवान राम कभी नहीं चाहेंगे कि किसी को उजाड़ कर तकलीफ पहुंचाई जाए.
याचिकाकर्ता अवधेश सिंह ने कहा, भगवान राम की मूर्ति की स्थापना के लिए योगी सरकार ने घोषणा की. इससे हम लोग खुश थे. लेकिन यह नहीं मालूम था कि हम लोगों को उजाड़ कर मूर्ति का निर्माण होगा. लेखपाल और प्रशासन हम लोगों को लगातार गुमराह करता रहा. इसलिए हम लोगों को कोर्ट की शरण में जाना पड़ा, क्योंकि ये लोग मुआवजे के बारे में नहीं बता रहे हैं. बल्कि जबरन जमीन जबरन लेना चाहते हैं.
उन्होंने कहा, हम लोग राम विरोधी नहीं हैं, राम भक्त हैं. ऐसा भी नहीं है कि हम जमीन देना नहीं चाहते. लेकिन हम लोगों को उचित मुआवजा दिया जाए. इसलिए हम लोग कोर्ट की शरण में गए हैं ताकि जिससे कोर्ट ही प्रशासन से पूछे कि मुआवजा दे रहे हैं या नहीं.
याचिकाकर्ता कहते हैं कि भगवान राम की सबसे ऊंची प्रतिमा लगने की घोषणा से हम लोग बहुत खुश हुए थे. लगा था कि अयोध्या का नए तरीके से विकास होगा. बाद में पता चला कि हम लोगों की कॉलोनियों को उजाड़ कर मूर्ति का निर्माण होगा. इसके बाद भी हम लोग तैयार थे. लेकिन जिला प्रशासन हमें गुमराह करता रहा. हमने 14 तारीख को जिलाधिकारी के साथ मीटिंग कर 12 सूत्रीय मांगें भी रखीं. प्रशासन ने कहा था कि मार्केट रेट, सर्किल रेट या रजिस्ट्री रेट के जरिए मुआवजा दिया जाएगा. इस पर हम लोगों ने कहा मार्केट रेट पर मुआवजा चाहिए, जिस पर उन्होंने कई जवाब नहीं दिया.
एक अन्य याचिकाकर्ता रंजना शुक्ला ने कहा कि सर्वे हुआ तो हमें पता चला कि किसी का नाम आया किसी का नहीं. इसके बाद फिर कहा गया अभी सर्वे पूरा नहीं हुआ है, जिसके बाद कई बार सर्वे कराए गए. इसके बाद हम लोगों ने अपनी-अपनी आपत्ति दाखिल की, लेकिन डीएम ने कहा कि जमीन न देने की बात मत करिए, जमीन तो हम ले ही लेंगे. इसी के बाद हम कोर्ट के शरण में आए हैं. इसी तरह ममता गुप्ता भी उचित मुआवजे की मांग कर रही हैं.
वहीं, भगवान राम की मूर्ति को लेकर विवाद खड़ा होने से अयोध्या के साधु-संत खासे नाराज हैं. उनका कहना है कि राम मंदिर को लेकर अभी कोई फैसला आया नहीं और राम के नाम पर एक और विवाद को जन्म दे दिया गया. यह न सिर्फ राम को जबरन विवादों में घसीटने की कोशिश है बल्कि अयोध्या की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई जा रही है. इसके लिए प्रशासन अमला ही नहीं बल्कि खुद सरकार भी जिम्मेदार है.
रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि बीजेपी के लिए भगवान राम केवल वोट बैंक की तरह हैं. रामलला के नाम पर सत्ता में आई, लेकिन राम तिरपाल में हैं. इसके बाद कहा कि हम एक विशाल प्रतिमा राम लला की मूर्ति स्थापित करेंगे, लेकिन अब वह मामला हाई कोर्ट चला गया. इस प्रकार बीजेपी केवल अयोध्या में रामलला को विवादित बना रही है. एक विवाद समाप्त भी नहीं हुआ था कि जमीन अधिग्रहण का दूसरा विवाद हाई कोर्ट पहुंच गया है.
मंहत परमहंस कहते हैं, यह बहुत दुखद है कि भगवान राम की प्रतिमा लगाए जाने का मामला कोर्ट पहुंचा है. हम योगी आदित्यनाथ से अनुरोध करना चाहते हैं कि आप ऐसी जमीन का चयन करें जो निर्विवाद हो. ऐसे में अगर आपको अयोध्या में कोई जमीन नहीं मिल रही है तो तपस्वी छावनी की जमीन हाईवे से लगी हुई है. वहां पर भगवान राम की प्रतिमा लगाई जाए. इसके बदले हमें कुछ नहीं चाहिए, हम लोग बहुत विवाद झेल चुके हैं और अब किसी नए विवाद में नहीं पड़ना चाहते हैं.