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अखिलेश यादव कर रहे जतन पर जतन, क्या बदल पाएंगे आजम खान का मन?

समाजावादी पार्टी में आजम खान का जलवा उसी तरह कायम है, जिस तरह से मुलायम सिंह के दौर में था. आजम खान अपनी प्रेशर पॉलिटिक्स के दांव से कपिल सिब्बल को राज्यसभा भिजवाने से लेकर रामपुर में अपने करीबी को प्रत्याशी बनाने और एमएलसी में अपने दो चेहते नेताओं को टिकट दिलाने में सफल रहे हैं.

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आजम खान और अखिलेश यादव
आजम खान और अखिलेश यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अखिलेश यादव ने कपिल सिब्बल को भेजा राज्यसभा
  • रामपुर में आजम खान ने अपने करीबी को बनाया प्रत्याशी
  • आजम के दो चहेते को अखिलेश ने भेजा विधान परिषद

समाजवादी पार्टी की सियासत में एक बार फिर से आजम खान का जलवा पहले की तरह ही दिखने लगा है. 27 महीने बाद जेल से बाहर आए आजम खान ने प्रेशर पॉलिटिक्स का ऐसा सियासी दांव चला, जिसमें अखिलेश यादव पूरी तरह से उनके चक्रव्यूह में फंसे हुए नजर आ रहे हैं. आजम खान के साथ अपने रिश्ते सुधारने और सारे गिले-शिकवे को दूर करने के लिए अखिलेश यादव उनकी हर एक मुराद पूरी करने में जुटे हैं.  

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अखिलेश यादव अपने गठबंधन के सहयोगी दल और अपने नजदीकी नेताओं की जगह आजम के करीबियों को प्राथमिकता दे रहे हैं. राज्यसभा से लेकर रामपुर लोकसभा उपचुनाव और विधान परिषद चुनाव में सपा के कैंडिडेट सिलेक्शन में आजम खान की ही चली. आजम खान के सपा में बढ़ते सियासी वर्चस्व से पार्टी के सियासी समीकरण भी गड़बड़ाने लगे हैं, लेकिन अखिलेश ने फिलहाल आजम खान की नाराजगी को दूर करने की ही रणनीति बनाई है. 

कांग्रेस छोड़कर सपा में एंट्री करने वाले इमरान मसूद पर आजम खान के करीबी नेता शाहनवाज खान शब्बू और जासमीर अंसारी एमएलसी चुनाव में भारी पड़े हैं. कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजना, आसिम राजा को रामपुर लोकसभा उपचुनाव में कैंडिडेट बनाना और विधान परिषद में आजम के दो करीबी मुस्लिम नेताओं को विधान परिषद में भेजने के निर्णय को आजम खान के साथ ही जोड़कर देखा जा रहा है. 

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आजम खान का दांव क्या सफल रहा

दरअसल, सपा के कद्दावर नेता आजम खान दो साल से ज्यादा समय तक सीतापुर की जेल में बंद थे. इस दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव महज एक बार ही आजम खान से मिलने सीतापुर जेल गए थे, अखिलेश उनकी रिहाई के लिए किसी तरह का कोई बड़ा आंदोलन नहीं खड़ा कर सके थे. ऐसे में आजम खान ने अपने समर्थकों के जरिए महज एक इशारा दिया कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराज है. इसके बाद ही शिवपाल सिंह यादव से लेकर तमाम विपक्षी नेताओं ने उनसे मिलने का सिलसिला तेज कर दिया, लेकिन आजम खान ने सपा नेताओं से दूरी बनाए रखा. 

वहीं, जेल से बाहर आने के करीब 10 दिन बाद आजम खान से अखिलेश यादव ने दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में मुलाकात की. हालांकि, उससे पहले अखिलेश ने विधानसभा के सदन में आजम खान के खिलाफ दर्ज मामलों को उठाते हुए योगी सरकार को घेरा और यह बताने की कोशिश की उन्होंने आजम खान के मुद्दे को प्रधानमंत्री तक के सामने रखा था. इससे भी बात नहीं बनी तो अखिलेश ने आजम खान के करीबी नेताओं को सियासी तौर पर प्रथामिकता देना शुरू किया. अखिलेश और आजम के बीत सेतु का काम कपिल सिब्बल ने किया. 

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव बदली हुई सियासी परिस्थितियों में आजम खान को किसी भी सूरत में नाराज करना नहीं चाहते हैं और न ही पार्टी से दूर. ऐसे में अखिलेश यादव द्वारा लिए जा फैसलों से तो कम से कम यही महसूस हो रह है. अखिलेश ने राज्यसभा भेजने से लेकर रामपुर उपचुनाव और विधान परिषद में आजम खान की चाहत का ख्याल रखा है, इस वजह से अखिलेश को अपने कई करीबी नेताओं और सहयोगी दलों के अरमानों पर पानी फेरना पड़ा है. 

कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजा
उत्तर प्रदेश में राज्यसभा के चुनाव में आजम खान को सुप्रीम कोर्ट से जमानत दिलाने वाले मशहूर वकील कपिल सिब्बल को अखिलेश यादव ने उच्च सदन भेजा. आजम खान ने पत्रकारों से कहा था कि सपा अगर सिब्बल को राज्यसभा भेजेगी तो हमें खुशी होगी. अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के नेताओं को दरकिनार कर निर्दलीय प्रत्याशी कपिल सिब्बल को समर्थन देकर राज्यसभा भेजा.  माना जाता है कि आजम की नाराजगी को दूरने के दिशा में कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजने का पहला कदम था. कपिल सिब्बल के साथ-साथ जावेद अली खान को भी मुस्लिम प्रतिनिधित्व के तौर पर राज्यसभा भेजा. 

रामपुर में आजम के करीबी को टिकट 

रामपुर लोकसभा उपचुनाव में अखिलेश यादव ने सपा के कैंडिडेट के चयन करने का फैसला आजम खान के ऊपर छोड़ दिया था. ऐसे में आजम खान ने अपने करीबी आसिम रजा को खुद सपा का उम्मीदवार घोषित किया. आसिम राजा सपा से कहीं ज्यादा आजम खान के वफादार है, जिसके चलते उन्हें सपा से लोकसभा का टिकट मिला है. आजम  ने उनको अपना अजीज साथी और लंबा सियासी तजुर्बा रखने वाला बताते हुए कहा था कि हम आसिम राजा को लड़ाना चाहते हैं और आप सबकी तकलीफों का हिसाब लेना चाहते हैं और यदि आसिम हार गए तो उनकी मुश्किलें बढ़ जाएगी. इससे साफ है कि आजम की मर्जी से आसिम रजा को रामपुर से उम्मीदवार बनाया. 

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आजम के दो चेहतों को एमएलसी का टिकट 

पश्चिमी यूपी के कद्दावर नेता इमरान मसूद विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान सपा में शामिल हुए थे, पर न तो विधानसभा में टिकट मिला और न ही एमएलसी चुनाव में. अखिलेश ने एमएलसी चुनाव में इमरान मसूद की जगह आजम खान के करीबी पूर्व मंत्री सरफराज खान के बेटे शाहनवाज खान उर्फ शब्बू को प्रत्याशी बनाया. शाहनवाज को आजम का वफादार माना जाता है और वे उसी सहारनपुर से हैं जहां से इमरान मसूद आते हैं. हालांकि, अखिलेश पहले इमरान मसूद के जरिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने वोट बैंक को मजबूत करने का दांव चलना चाहते थे, लेकिन पार्टी की रणनीति पर आजम खान एक बार फिर भारी पड़ गए. 

जासमीर अंसारी को एमएलसी का इनाम

आजम खान के दूसरे चहेते के रूप में जासमीर अंसारी को एमएलसी सीट इनाम में मिला है. जासमीर अंसारी कांग्रेस छोड़कर सपा में आए थे और आजम के करीबी नेताओं में गिने जाते हैं. 27 महीने सीतापुर जेल में बंद रहने के दौरान आजम के लिए जासमीर अंसारी एक पैर से खड़े थे. वे आजम को जेल में खाना और दवा दोनों मुहैया करवाने का काम करते थे. कहा जा रहा है कि आजम खान ने इस एहसान की कीमत उन्हें विधान परिषद का प्रत्याशी बनाकर चुकाई है. इस तरह से एक साथ दो करीबियों को विधान परिषद भिजवा कर आजम ने अपनी सियासी ताकत का एहसास भी करवा दिया है. सपा प्रत्याशियों के नामांकन के दौरान आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम मौजूद थे, जो इस बात की गवाही दे रहा था कि अब सपा में आजम के पुराने दिन लौट आए हैं. 

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बता दें कि यूपी में करीब 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता है, जो एक दर्जन संसदीय सीटों पर अपना खास असर रखते हैं. ऐसे में मुस्लिम वोटों की सियासी ताकत को देखते हुए सपा के लिए उन्हें नजर अंदाज करना आसान नहीं था. आजम मौजूदा समय में भी सपा में सबसे बड़े मुस्लिम चेहरा हैं और उनकी अपनी पकड़ रुहेलखंड से लेकर पश्चिमी यूपी के मुस्लिम बेल्ट में अच्छी खासी है. 2024 के चुनाव को देखते हुए अखिलेश किसी तरह से भी आजम खान की नाराजगी का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं. इसीलिए आजम की हर मुराद सपा में पूरी हो रही है. 


 

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