उत्तर प्रदेश की सीतापुर जेल में दो साल से बंद आजम खान से रविवार को मिलने पहुंचे सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा और उनके साथ गए नेताओं की मुलाकात नहीं हो सकी. आजम खान ने सपा नेताओं से मिलने से इनकार कर दिया जबकि तीन दिन पहले इसी जेल में आजम खान और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के बीच मुलाकात हुई थी. यानी आजम खान ने सपा नेताओं से न मिलकर पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को अपने सियासी तेवर दिखा दिए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आजम खान अब अखिलेश से अलग नई सियासी राह तलाश रहे हैं?
सपा के कद्दावर नेता और मुस्लिम चेहरा आजम खान जल्द ही जेल से बाहर आने वाले हैं, क्योंकि उन पर दर्ज मुकदमों में से सिर्फ एक ही केस में जमानत मिलनी बाकी है. ऐसे में आजम खान और उनके परिवार से मुलाकात का सिलसिला शुरू हो गया है, लेकिन अखिलेश यादव के 'दूत' आजम खान से मिलने में सफल नहीं हो पा रहे हैं.
लखनऊ मध्य सीट से सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा आजम खान से मुलाकात करने के लिए सीतापुर जेल पहुंचे थे. जेल प्रशासन ने यह जानकारी आजम खान को दी तो उन्होंने रविदास मेहरोत्रा और उनके साथ गए सपा के नेताओं से मिलने से इनकार कर दिया.
क्यों नाराज हैं आजम खान?
दरअसल, आजम खान और उनका परिवार सपा प्रमुख अखिलेश यादव से इसलिए नाराज बताया जा रहा है, क्योंकि संघर्ष के लिए उन्हें अकेले छोड़ दिया है. पिछले दो साल से आजम जेल में हैं और करीब 80 मुकदमें दर्ज हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इन दो सालों में महज एक बार मुलाकात की है, लेकिन उनकी रिहाई के लिए कोई आंदोलन नहीं किया और इस बुरे वक्त में उन्हें अकेला छोड़ दिया.
विधानसभा चुनाव में समय भी आजम खान के परिवार को सपा में कोई अहमियत नहीं दी और उनके कई करीबी नेताओं को भी टिकट नहीं दिया गया. ऐसे में चुनाव के बाद से आजम खान खेमे से नाराजगी की बात सामने आ रही है. आजम के मीडिया प्रभारी फसाहत अली खान उर्फ सानू ने अखिलेश यादव पर आजम खान की उपेक्षा का आरोप लगाकर यूपी की सियासत में खलबली मचा दी. उन्होंने कहा कि अखिलेश ने ना तो आजम को जेल से बाहर निकालने के लिए कोई प्रयास किया और ना ही उनसे मिलने गए.
आजम परिवार ने साध रखी है चुप्पी
आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान इस पर चुप्पी साधे हुए हैं, लेकिन उनके करीबी नेताओं ने सपा छोड़कर मंशा जाहिर कर दी है. खून से खत लिख रहे हैं और सपा के खिलाफ मुस्लिमों की अनदेखी का बयान जारी कर रहे हैं. इसके बाद से ही आजम खान और उनके परिवार से नेताओं ने मुलाकात का सिलसिला भी शूरू हो गया. इस बीच, अखिलेश से नाराज चल रहे चाचा शिवपाल यादव ने आजम खान से सीतापुर जेल में जाकर एक घंटे से अधिक देर तक बातचीत की है.
शिवपाल ने भी मुलायम को घेरा
शिवपाल सिंह ने आजम से जेल में मुलाकात के बाद पहली बार अपने बड़े भाई व सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव पर भी सीधा हमला बोला. शिवपाल ने कहा कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) ने भी आजम खान के लिए कुछ नहीं किया. लोकसभा और राज्यसभा में भी मामला नहीं उठाया जबकि वह चाहते तो धरना दे सकते थे. छोटी-छोटी धाराओं में 26 महीने से जेल में बंद हैं, लेकिन सपा ने कोई संघर्ष नहीं किया.
शिवपाल ने इससे पहले कभी भी मुलायम सिंह यादव के खिलाफ कुछ नहीं बोला था. ऐसे में उनके मन का गुबार अचानक क्यों फूटा, सियासी गलियारों में इसके निहितार्थ निकाले जा रहे हैं. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो शिवपाल ने जो बात कही है वो शब्द कहीं न कहीं आजम खान के हैं, क्योंकि ऐसी ही बात आजम खान के समर्थक भी बोल रहे हैं. ऐसे में शिवपाल यादव की आजम खान से मुलाकात के बाद सपा में खलबली मच गई है.
आजम खान ने अखिलेश यादव के दूतों को सीतापुर जेल से बिना मिले बैरंग वापस कर दिया जबकि शिवपाल यादव से तीन दिन पहले ही मिले थे. वहीं, आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने भी रामपुर जाकर आजम खान के परिवार के सदस्यों से मिले थे. ऐसे में आजम खान का सपा नेताओं से न मिलना, साफ संकेत है कि अब आजम खान की सपा से दूरी बन रही है. ऐसे में आजम खान सपा के भीतर अखिलेश विरोध का केंद्र बनते जा रहे हैं और शिवपाल यादव उसे और भी हवा देने में जुटे हैं.
असदुद्दीन ओवैसी से लेकर जयंत चौधरी और शिवपाल यादव तक उन्हें साधने की कवायद में जुट गए हैं, जिसके लिए अब खुलकर आजम खान के साथ खड़े दिखाए दे रहे हैं. ऐसे में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने डैमेज कन्ट्रोल करने के मकसद से जरूर कहा कि आजम खान के लिए जो भी कानूनी मदद पार्टी कर रही है, लेकिन शिवपाल के आरोपों पर कोई बोलने के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में विपक्षी दलों के कई नेताओं की आजम परिवार से मुलाकात और सपा नेता से किनारा इस बात की तरफ साफ इशारा करता है कि अब आजम खान ने अखिलेश के संदेश दे दिया है.
मुस्लिमों पर अखिलेश की चुप्पी भी चर्चा में
उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों के मामले पर अखिलेश यादव चुप्पी साध रखी है, जिसे लेकर मुसलमानों के बीच सपा से नाराजगी भी बढ़ रही है. ऐसे में आजम खान अगर सपा से नाता तोड़कर नई सियासी राह पर कदम बढ़ाते हैं तो सपा के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है. इसकी वजह यह है कि आजम खान की पकड़ मुसलमानों के बीच अच्छी खासी है. ऐसे में अलग होते हैं तो अगले लोकसभा चुनाव में इसका खामियाजा सपा को भुगतना पड़ सकता है.
आजम खान ने साल 2009 में अमर सिंह को लेकर जब सपा छोड़ी थी, तब उन्होंने न कोई अपनी पार्टी बनाई थी न ही किसी दल में गए थे. लेकिन, इस बार बगावत की यह चिंगारी तमाम सपा नेताओं को उकसा रही है और अब मुद्दा सपा द्वारा आजम का साथ छोड़ने, मुस्लिमों की बात न करने तक पहुंच गई है. ऐसे में आजम खान से जिस तरह से विपक्षी दलों के नेताओं के मिलने का सिलसिला शुरू हुआ है, उसके जरिए सियासी बिसात पिछती दिख रही है. वहीं, सपा नेताओं से आजम खान ने न मिलकर अखिलेश को अपनी मंशा से वाकिफ करा दिया है.
2022 विधानसभा के चुनाव में मुस्लिम वोटरों ने सपा को जिताने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी. मुस्लिम वोटरों की सपा के प्रति एकजुटता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यूपी में किसी दूसरे दलों से उतरे कई कद्दावर मुस्लिम चेहरों को जीतना तो दूर अपने ही समाज के वोट तक के लिए तरस गए थे. सीएसडीएस के आंकड़ों को माने तो सूबे में 87 फीसदी मुस्लिम समाज ने सपा को वोट दिया है.
यूपी चुनाव नतीजों के बाद सपा के भीतर के कई फैसलों के बाद अब मुस्लिम नेताओं का एक तबका पार्टी पर खुले तौर पर मुसलमानों को हाशिए पर रखने का आरोप लगा रहा है. ऐसे में मुस्लिमों की बढ़ती सपा से नाराजगी के बीच आजम खान जेल से बाहर आने के बाद किसी तरह का कोई सियासी कदम सपा से अलग उठाते हैं तो नई सियासी समीकरण बन सकते हैं. अखिलेश के खिलाफ एक माहौल मुस्लिम वर्ग में बना हुआ है, जिसके चलते सारी सियासी बिसात बिछाई जा रही है. अखिलेश यादव के लिए भविष्य में सियासी संकट खड़ा हो सकता है.