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योगी राज में गई 5 विधायकों की सदस्यता, आजम खान पर 24 घंटे में हुआ फैसला, जानिए बाकी मामलों के बारे में

उत्तर प्रदेश में साढ़े पांच सालों से योगी सरकार है, जिसमें अब तक पांच विधायकों की सदस्यता गई है. सपा के दो विधायक आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान हैं तो बीजेपी के कुलदीप सेंगर, अशोक चंदेल और इंद्र तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी को विधायकी खोनी पड़ी है. हालांकि, आजम खान के मामले में जिस तरह से 24 घंटे में एक्शन लिया गया है, वैसी बीजेपी नेताओं के मामले में कार्रवाई नहीं दिखी?

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स्पीकर सतीश महाना, आजम खान, अब्दुल्ला आजम (फाइल फोटो)
स्पीकर सतीश महाना, आजम खान, अब्दुल्ला आजम (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश की सियासत में मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आजम खान की विधानसभा सदस्यता खत्म हो गई है. पिछले साढ़े पांच सालों में यूपी में पांच विधायकों की सदस्यता गई है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भड़काऊ भाषण देने के केस में एमपी-एमएलए कोर्ट ने आजम खान को दोषी ठहराया तो 24 घंटे के भीतर उनकी सदस्य रद्द कर दी गई. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जिस तेजी से आजम पर एक्शन लिया गया, वैसी तेजी बीजेपी नेताओं की सदस्यता को समाप्त किए जाने पर नहीं दिखी. 

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सूबे में योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले कार्यकाल में चार विधायकों की सदस्यता खत्म हुई थी, जबकि दूसरे कार्यकाल में आजम खान को अपनी विधायकी गवांनी पड़ी है. आजम खान के बेटे सपा विधायक अब्दुल्ला आजम के अलावा बीजेपी से विधायक रहे अशोक चंदेल, कुलदीप सिंह सेंगर और इंद्र तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी को कोर्ट से सजा होने के बाद विधायकी खोनी पड़ी है. इस तरह सपा के दो विधायकों की सदस्यता खत्म हुई तो बीजेपी के तीन विधायकों की सदस्यता गई. 

हालांकि, उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की सियासत में आजम खान पहले सदस्य हैं, जहां उन्हें और उनके बेटे को अलग-अलग कारणों के चलते सदस्यता गवांनी पड़ी है. अब्दुल्ला आजम की विधानसभा सदस्यता साल 2017 के चुनाव के नामांकन पत्र में फर्जी जन्म प्रमाणपत्र लगाने के चलते गई थी. दिसंबर 2019 में कोर्ट ने लोक प्रतिनिधि अधिनियम के तहत उनका चुनाव शून्य घोषित करते हुए अब्दुल्ला का निर्वाचन रद कर दिया गया था. 

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वहीं, रामपुर सीट से 10वीं बार विधायक बने आजम खान को हेट स्पीच मामले में कोर्ट ने दोषी ठहराया है और उन्हें तीन साल की सजा दी है. इसके चलते उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म हो गई है. आजम को कोर्ट के फैसले के खिलाफ सेशन कोर्ट में जाने का विकल्प है और अगर वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली तो वे हाईकोर्ट जा सकते हैं और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता खुला है. एमपी-एमएलए कोर्ट से निर्णय आने के 24 घंटे के अंदर ही स्पीकर सतीश महाना ने उनकी सदस्यता समाप्त कर दी.  

बीजेपी के तीन नेताओं की गई विधायकी

योगी सरकार के पहले कार्यकाल में बीजेपी के तीन विधायकों की अपनी सदस्यता खोनी पड़ी है. साल 2019 में हमीरपुर से बीजेपी के विधायक रहे अशोक कुमार सिंह चंदेल की विधानसभा सदस्यता गई थी. चंदेल को हाई कोर्ट ने हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसके बाद उन्हें अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी. 

उन्नाव की बांगरमऊ सीट से बीजेपी विधायक रहे कुलदीप सिंह सेंगर को कोर्ट के फैसले के बाद अपनी सदस्यता को गंवाना पड़ा था. सामूहिक दुष्कर्म के मामले में कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट ने 20 सितंबर 2022 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी और 25 लाख रुपये जुर्माना लगाया था. कोर्ट के फैसला आने के पांच दिन के बाद 25 सितंबर 2022 को विधानसभा अध्यक्ष ने कुलदीप सेंगर की विधानसभा सदस्यता समाप्त की थी.

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फर्जी मार्कशीट के मामले में अयोध्या की गोसाईंगंज सीट से बीजेपी विधायक रहे इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी को भी अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी. कोर्ट ने 18 अक्टूबर 2021 को खब्बू तिवारी को पांच साल की सजा सुनाई थी. इसके बाद स्पीकर ने 9 दिसंबर 2021 को उनकी सदस्यता रद की. इस तरह खब्बू तिवारी की सदस्यता समाप्त करने की अधिसूचना जारी करने में डेढ़ महीने लग गए. 

बता दें कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार के आने के बाद से आजम खान के खिलाफ तबड़तोड़ मुकदमे लिखे गए. 2017 से पहले उन पर सिर्फ एक मुकदमा दर्ज था जबकि उसके बाद से 100 से ज्यादा केस दर्ज हुए हैं. 26 महीने जेल में रहने के बाद आजम खान जमानत पर बाहर आए थे. सीतापुर जेल में रहते हुए आजम खान ने 2022 के चुनाव में 55 हजार वोटों से रामपुर सीट पर जीत दर्ज की थी, लेकिन 18वीं विधानसभा में एक बार भी सदन नहीं गए और न ही विधायक निधि का पैसा खर्च किया. इस तरह से आजम खान की सदस्यता समाप्त हो गई. 

उत्तर प्रदेश उन शीर्ष तीन राज्यों में शामिल है, जहां विधायक और मंत्री पर आपराधिक केस दर्ज हैं. राजनीतिक सुधारों के क्षेत्र में काम करने वाले नई दिल्ली स्थित संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश की 18वीं विधानसभा के लिए चुने गए कुल 403 विधायकों में से करीब आधे विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. एडीआर की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार में कम से कम एक दर्जन मंत्रियों पर हत्या, अपहरण, बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आपराधिक आरोप हैं. 
 

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