
14 अखाड़ों के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी की संदिग्ध मौत पर आजमगढ़ में बड़ा गणेश उदासीन अखाड़ा के महंत राजेश मिश्रा का कहना है कि महंत नरेंद्र गिरी की मौत पर वे हैरान हैं. उनकी मांग है कि इस तरह की घटना की उचित जांच होनी चाहिए जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो सके. राजेश मिश्रा ने कहा, 'नरेंद्र गिरि बहुत ही बहादुर व्यक्तित्व के धनी थे. उनकी आत्महत्या समझ से परे है. उनका जीवन पूरा निष्कलंक रहा है. किसी राजनीतिक दल व सामाजिक तौर पर ही जुड़े रहे जाने के बाद भी वह सभी का उचित सम्मान भी करते थे. उनकी मौत का रहस्य नेताओं और माफियाओं का शिकार न बने, इसलिए निष्पक्ष जांच हो.'
महंत राजेश मिश्रा ने कहा, "नरेंद्र गिरी के कई बार दर्शन भी हुए और कई बार बातचीत भी होती थी. नरेंद्र गिरी जी से मेरे व्यक्तिगत संबंध थे. वह बड़े अच्छे संत थे. मैंने उनसे आगरा में कहा था कि कभी आपका आजमगढ़ आना नहीं हुआ, कभी आइये. मेरे आग्रह को स्वीकार भी किया था लेकिन कोरोना काल के कारण नहीं आ सके."
बड़ा गणेश उदासीन अखाड़ा के महंत ने नरेंद्र गिरी की मौत पर सवाल उठाते हुए कहा, "जिस अखाड़ा परिषद के वे अध्यक्ष थे उसमें 4 अखाड़े शामिल हैं उसमें हमारा उदासीन अखाड़ा भी शामिल है. उनकी मौत पर बहुत दुख है. भगवान उनको अपने श्री चरणों में जगह दे और मैं सरकार से मांग भी करूंगा कि निष्पक्ष और कड़ी जांच हो. मैं व्यक्तिगत रुप से कह सकता हूं कि उन्होंने निष्कलंक जीवन जिया है. आनंद गिरी और उनके पुजारियों के साथ क्या रहा, उन्होंने सुसाइड नोट में क्या लिखा है, यह तो जांच का विषय है लेकिन यह सत्य है उम्र के आखिरी ढलान पर थे लेकिन उनके अंदर ऊर्जा कम नहीं थी.'
महंत राजेश मिश्रा ने कहा, '70 के ऊपर के संत होते हुए भी ऊर्जावान थे. कोई बैठक नहीं छोड़ते थे. साधु संतों के चिंता करते थे. हां, उन्होंने एक काम अद्वितीय किया कि जितने फर्जी संत देश में घूम रहे थे, उनके खिलाफ वह जरूर थे और नोटिस करते थे. उनके खिलाफ मीटिंग करके उन्हें बहिष्कृत करना यह काम उन्होंने किया. इस बात का साहस कोई नहीं करता था लेकिन नरेंद्र ने अध्यक्ष पद का दूसरी बार भी चार्ज लिया तो उनके खिलाफ कड़ाई से काम किया. उस भावना का ध्यान रखते हुए नरेंद्र जी ने उन संतो को जो फर्जी थे, अखाड़े से बाहर का रास्ता दिखाया था."
महंत राजेश मिश्रा ने सरकार से मांग करते हुए कहा, 'सरकार से यह भी मांग है जो उनके विरोधी रहे, उस एंगल से भी जांच करें. देखें, कहीं उनका भी तो इसमें हाथ नहीं है. जहां तक मैं जानता हूं मंदिर या उनकी पीठ पर सारे राजनीतिक दल के लोग जाते थे, खासकर अखिलेश यादव, और भी सारे लोग जाते थे. वह किसी राजनीतिक दल से बंध के नहीं रहते थे. हां, लेकिन राम जन्मभूमि के मुद्दे पर वह समझौता नहीं करते थे. राम जन्मभूमि के पक्ष में रहते थे और जो बात थी उसे गंभीरता से कहते थे. वह किसी से डरते नहीं थे. किसी भी दल से कोई जाता था तो सबका सम्मान करते थे. दर्शन, पूजा-प्रसाद और जलपान जरूर कराकर भेजते थे. मुख्यमंत्री से भी उनके अच्छे संबंध थे. सीएम योगी तो खुद एक पीठाधीश्वर हैं. मै समझता हूं कि वह इस मामले को गंभीरता से देखेंगे.'
बता दें कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का शव सोमवार शाम को बाघंबरी मठ में उनके कमरे में नाईलोन की रस्सी के फंदे पर लटकता मिला था. पुलिस का कहना है कि वहां चारों तरफ से दरवाजे बंद थे. कमरे का मुख्य दरवाजा भी अंदर से बंद था. पुलिस ने शुरुआती जांच के आधार पर खुदकुशी करार दी थी. पुलिस ने जांच के लिए मौके पर फॉरेंसिक टीम को भी बुलाया था जहां से सुराग और सबूत जुटाए गए.
इस संबंध में प्रयागराज पुलिस की ओर से महंत गिरि की मौत को लेकर बयान जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि घटनास्थल से 6-7 पेज का सुसाइड नोट मिला है. बरामद सुसाइड नोट में महंत नरेंद्र गिरि ने आनंद गिरि और अन्य शिष्यों के नाम का उल्लेख किया है. महंत नरेंद्र गिरि ने सुसाइड नोट में माना कि वह कई कारणों से परेशान थे और इसी वजह से वे अपना जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं.