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UP: बरेली में 48 लाख का भ्रष्टाचार, 24 साल बाद रिटायर्ड IAS समेत 7 लोगों पर FIR

अफसरों ने सांठगांठ करके यह सारा काम भी एनजीओ से ही कराया. लाभार्थियों की सूची भी एनजीओ ने बनाई और उसका नियमानुसार सत्यापन भी नगरीय निकायों के अधिकारियों ने नहीं किया.

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शासन ने शौचालय निर्माण की जिम्मेदारी सुलभ इंटरनेशनल को दी थी. Symbolic Photo
शासन ने शौचालय निर्माण की जिम्मेदारी सुलभ इंटरनेशनल को दी थी. Symbolic Photo
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बरेली के विजिलेंस थाने में जांच के बाद कार्रवाई
  • NGO कर्मचारी भी फंसे, 4 सरकारी कर्मचारी भी शामिल
  • शौचालय निर्माण के नाम पर मिलीभगत से घोटाला

यूपी के बरेली में भ्रष्टाचार के 24 साल पुराने में बड़ी कार्रवाई की गई है. मामले में एक रिटायर्ड आईएएस अफसर समेत 4 सरकारी कर्मचारियों और एनजीओ कर्मचारियों पर एफआईआर दर्ज की गई है. यह कार्रवाई विजलेंस की जांच के बाद की गई है. संबंधित आरोपियों ने 48 लाख रुपए का गबन किया था. जांच में मामला सही पाया गया तो सरकार ने कार्रवाई के आदेश जारी कर दिए.

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मामला साल 1998-99 का है. जिला नगरीय विकास अभिकरण (डूडा) और सुलभ इंटरनेशनल (एनजीओ) ने मिलकर शौचालय निर्माण के नाम पर घोटाला किया था. शासन की तरफ से शौचालय निर्माण की जिम्मेदारी सुलभ इंटरनेशनल (NGO) को दी गई थी, जिसमें मानक के अनुरूप अनुबंध नहीं किए गए थे. इसके अलावा शौचालय निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया. मामला सामने आने पर जांच की गई तो घोटाले की परतें खुलना शुरू हो गईं. इसके बाद अफसरों की जिम्मेदारी तय की गई. 

इन अफसरों पर दर्ज की गई है एफआईआर

जांच में सामने आया कि सुलभ इंटरनेशनल को सीधे तौर पर लाभ पहुंचाने के लिए प्रशासन स्तर पर गड़बड़ी की गई. इसमें 48 लाख रुपए के राजस्व का नुकसान बताया गया. मामले में अब शासन के आदेश पर तत्कालीन परियोजना निदेशक और पूर्व आईएएस अफसर सुरेंद्र बहादुर सिंह, पीओ हरिशंकर मिश्रा, डॉ. दिलबाग सिंह और सुलभ इंटरनेशनल के एके सिंह, जेई राजीव शर्मा, बसंत कुमार, कृष्णमुरारी शर्मा के खिलाफ बरेली के विजिलेंस थाने में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में एफआईआर दर्ज की गई. 

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ऐसे किया गया घोटाला 

बता दें कि शासन ने शौचालय निर्माण की जिम्मेदारी सुलभ इंटरनेशनल को दी थी. साथ ही मिलभगत रोकने के लिए लाभार्थियों के सत्यापन की जिम्मेदारी नगरीय निकायों के पास थी. लेकिन अफसरों ने सांठगांठ करके यह सारा काम भी एनजीओ से ही कराया. लाभार्थियों की सूची भी एनजीओ ने बनाई और उसका नियमानुसार सत्यापन भी नगरीय निकायों के अधिकारियों ने नहीं किया, बल्कि कमीशन लेकर एनजीओ की लिस्ट पर ही भरोसा कर लिया. इस वजह से कई अपात्रों को इस योजना का लाभ मिल गया और शासन को करीब 48 लाख रुपए का राजस्व का नुकसान हुआ. 

ना सत्यापन किया, ना मानक के अनुरूप बनाए शौचालय 

दरअसल, मार्च 1998 में जल प्रवाहित शौचालय के निर्माण के लिये पांच लाभार्थियों पर तीन हजार, दस लाभार्थियों पर 3818 और 15 लाभार्थियों पर 4500 रुपए लागत निर्धारित की गई थी. डीएम के आदेश पर टास्क फोर्स गठित की गई थी. मामले में नगर निगम के तत्कालीन अधिकारी सहायक अभियंता सुरेश चंद्र, अपर नगर मजिस्ट्रेट जयशंकर प्रसाद, सुलभ के उपाध्यक्ष फतेह बहादुर सिंह ने जांच की. 8696 शौचालयों के निर्माण में 2271264 रुपए खर्च किए गए. 24 जून 2000 तक सुलभ इंटरनेशनल को 448.320 लाख रुपए दिए गए. जांच में पाया गया कि अनुबंध तीन प्रतियों के बजाय दो में कराया गया. शौचालयों का सत्यापन नहीं कराया गया. मानक के अनुरूप निर्माण भी नहीं किया गया. शासन को 48 लाख रुपए के राजस्व की हानि कराई गई. 

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