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शिक्षा विभाग की चली तो लखनऊ में हॉकी, फुटबॉल और क्रिकेट नहीं खेल पाएंगी लड़कियां

यूपी में जनवरी में होने वाली ब्लॉक स्तर की खेल प्रतियोगिताओं का जो कार्यक्रम जारी किया है उसमें हॉकी, क्रिकेट और फुटबॉल के मुकाबले सिर्फ छात्रों के लिए रखे गए हैं, छात्राओं के लिए नहीं.

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लखनऊ की बेटियां हॉकी, क्रिकेट और फुटबॉल नहीं खेल सकतीं. ये तुगलकी फरमान जारी किया है समाजवादी पार्टी सरकार में राजधानी लखनऊ के बेसिक शिक्षा विभाग ने. विभाग ने जनवरी के महीने में खेल प्रतियोगिताओं के लिए जो कार्यक्रम जारी किया है उसमें साफ कर दिया है कि इन तीन खेलों यानी हॉकी, क्रिकेट और फुटबॉल के मुकाबले सिर्फ लड़कों के लिए खुले हैं, लड़कियां इन खेलों में हिस्सा नहीं ले सकतीं.

इस फैसले से स्पोर्ट्स में दिलचस्पी रखने वाली लड़कियां बेहद मायूस हैं. इन खेलों में लड़कियों की भागीदारी पर प्रदेश के शिक्षा विभाग ने सवाल उठाया है. जनवरी में होने वाली ब्लॉक स्तर की खेल प्रतियोगिताओं का जो कार्यक्रम जारी किया है उसमें हॉकी, क्रिकेट और फुटबॉल के मुकाबले सिर्फ छात्रों के लिए रखे गए हैं, छात्राओं के लिए नहीं. विभाग की इस हरकत ने विपक्ष को खुल कर सरकार पर हमला करने का मौका दे दिया है.

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'मुख्यमंत्री दें इस पर स्पष्टीकरण'
कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने कहा, 'शिक्षा और खेल के तालिबानीकरण का कोई एक तरीका तो नहीं है वर्तमान सरकार का. जिस तरह से सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने कई बार महिलाओं की शिक्षा उनके पहनावे पर टिप्पणी की है ये कहीं न कहीं उसी सोच का एक नतीजा मुझे लगता है. मुख्यमंत्री इस पर स्पष्टिकरण दें.'

विपक्ष शिक्षा विभाग के इस फैसले को समाजवादी पार्टी नेताओं की संकीर्ण सोच का नतीजा बता रहा है. हालांकि बेसिक शिक्षा अधिकारी और खेल निदेशालय के अफसर कैमरे पर कुछ बोलने को तैयार नहीं हुए लेकिन विपक्षी पार्टियां इस बात को कतई मानने को तैयार नहीं कि कार्यक्रम में छात्राओं के लिये हॉकी, क्रिकेट और फुटबॉल मुकाबलों का शामिल न किया जाना किसी भूल के तहत भी हो सकता है.

'खोखला है यूपी सरकार का नारा'
बीजेपी प्रवक्ता हरीशचंद्र श्रीवास्तव ने कहा, 'आज जब पूरी दुनिया में लड़कियां बहुत बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं, खेल हो शिक्षा हो, टेक्नोलॉजी हो. हर फील्ड में लड़कियां बहुत बेहतर काम कर रही हैं. ऐसे में अगर लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है तो हमारी जो संवैधानिक व्यवस्था है समान अवसर की उसका उल्लंघन है. और दूसरा आखिर ये भेदभाव क्यों? अगर ये जानबूझ कर है तो पढ़ें बेटियां, बढ़े बेटियां का जो नारा है यूपी सरकार का ये पूरी तरह खोखला है.'

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क्या है मामला
पांच जनवरी तक बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में संकुल स्तर और 15 जनवरी तक ब्लॉक स्तर की खेल प्रतियोगिताएं होनी हैं. इन खेलों में 100, 200, 400 और 600 मीटर की दौड़ के साथ साथ रिले रेस, बाधा दौड़, लंबी कूद, ऊंची कूद, गोला फेंक, चक्का फेंक, खो-खो, कबड्डी, जिमनास्टिक, वॉलीबाल, फुटबाल, बैडमिंटन, तैराकी, टेबल टेनिस, क्रिकेट और हॉकी के खेल होंगे. मगर स्कूली बच्चे और उनके अभिभावक तब हैरान रह गए जब उन्होंने पाया कि हॉकी, फुटबॉल और क्रिकेट के मुकाबलों से लड़कियों को बाहर रखा गया है. हालांकि मामले के तूल पकड़ने के बाद अब बेसिक शिक्षा मंत्री इसे पिछली सरकार का तुगलकी फरमान बता कर भूल सुधार देने का वादा कर रहे हैं. साथ ही मंत्री ने इस मामले में जांच के आदेश भी दे दिए हैं.

'पिछली सरकार का हर फरमान था तुगलकी'
बेसिक शिक्षा मंत्री अहमद हसन ने कहा, 'मायावती के शासन में ऐसा हो सकता है. उस सरकार में तो सारे ही ऑर्डर तुगलकी होते थे. बहुजन समाज पार्टी मशहूर है इस तरह के आदेशों के लिए. तो अगर ऐसा होगा तो तुरंत उसे खत्म करा दिया जाएगा.'

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