बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में मुस्लिम प्रोफेसर से संस्कृत नहीं पढ़ने पर अड़े छात्रों के हड़ताल वापस लेने का दावा किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर (वीसी) राकेश भटनागर से मुलाकात के बाद छात्रों ने धरना खत्म करने का फैसला लिया. छात्रों के अनुसार, वीसी ने उन्हें दस दिन में कुछ सुधारात्मक उपाय करने का आश्वासन दिया है.
धरना खत्म कर परीक्षा में शामिल होंगे छात्र
कहा जा रहा है कि छात्र आज यानी शुक्रवार से शुरू हो रही परीक्षा में हिस्सा लेंगे. बता दें कि बीएचयू के छात्र संस्कृत विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर बीते कई दिनों से हड़ताल पर हैं.
छात्र फिरोज खान का इसलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि कोई मुस्लिम व्यक्ति कैसे हिंदू धर्म के पूजा पाठ के बारे में बता सकता है. उनका कहना है कि संस्कृत को भाषा के तौर पर किसी भी जाति-धर्म के टीचर द्वारा पढ़ाए जाने पर उन्हें कोई ऐतराज नहीं है.
फिरोज खान के समर्थन में आए मदन मोहन मालवीय के पौत्र
बीएचयू विवाद के बीच चांसलर और मदन मोहन मालवीय के पौत्र, पूर्व जज गिरधर मालवीय ने फिरोज खान का समर्थन करते हुए कहा कि छात्र एक विद्वान शिक्षक का स्वागत करें. गिरधर मालवीय ने फिरोज खान के पक्ष में कहा कि छात्रों का विरोध ठीक नहीं है. हिंदू यूनिवर्सिटी में हिंदू की क्या परिभाषा है, और हिंदू किसे कहते हैं यह समझने के लिए महामना का विचार जानना जरूरी है. उन्होंने कहा कि छात्रों को इस बात का स्वागत करना चाहिए उन्हें एक सुयोग्य टीचर मिला है.
फिरोज खान को मिला AMU का समर्थन
बीएचयू के प्रोफेसर फिरोज खान की संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान विभाग में नियुक्ति के विरोध में छात्रों के प्रदर्शन के बाद प्रोफेसर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से समर्थन मिला. जहां बीएचयू के छात्रों ने फिरोज के मुस्लिम होने के कारण उनकी नियुक्ति का विरोध किया तो वहीं एएमयू के छात्र उनके समर्थन में आगे आए. एएमयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष सलमान इम्तियाज ने कहा कि मुस्लिम होने के कारण विरोध होने पर बीएचयू में उन्हें अपमान महसूस होता है. उन्होंने कहा, हम उनके और उनकी योग्यता के साथ हैं.
बीएचयू के छात्रों ने क्यों किया फिरोज खान का विरोध?
धरने की अगुवाई कर रहे पीएचडी स्कॉलर चक्रपाणि ओझा के मुताबिक, यह विरोध फिरोज खान (बीएचयू के प्रोफेसर) का नहीं, बल्कि धर्म विज्ञान डिपार्टमेंट में एक गैर हिंदू की नियुक्ति का है. अगर यही नियुक्ति विश्वविद्यालय के किसी अन्य डिपार्टमेंट में संस्कृत अध्यापक के रूप में होती तो विरोध नहीं होता. यह समझने की जरूरत है कि संस्कृत विद्या कोई भी किसी भी धर्म का व्यक्ति पढ़ और पढ़ा सकता है, लेकिन धर्म विज्ञान की बात जब कोई दूसरे धर्म का व्यक्ति करे तो विश्वसनीयता नहीं रह जाती.