बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुए लाठीचार्ज पर स्थानीय प्रशासन की जांच रिपोर्ट की एक कॉपी आज तक के पास है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश पर कमिश्नर द्वारा की गई जांच में सीधे-सीधे कुलपति और प्रॉक्टोरल बोर्ड को दोषी ठहराया गया है.
यह रिपोर्ट बीएचयू प्रशासन के झूठ के पुलिंदे की न सिर्फ हवा निकालती है, बल्कि इससे यह भी साबित होता है कि प्रशासन ने जानबूझकर मामले को ढकने की कोशिश की. जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट में विश्वविद्यालय प्रशासन की घोर लापरवाही पाई गई है.
कुलपति द्वारा नहीं हुई संवाद की कोशिश
रिपोर्ट में सबसे बड़ी खामी कॉलेज प्रॉक्टोरियल बोर्ड और कुलपति की पाई गई है. रिपोर्ट के मुताबिक कुलपति या प्रॉक्टोरियल बोर्ड द्वारा छात्रों से संवाद करने की कोई भी कोशिश नहीं की गई. यही नहीं वे छात्रों के गुस्से का आकलन करने में भी विफल रहे.
सुरक्षाकर्मियों की संवेदनहीनता उजागर
21 तारीख को घटना के बाद छेड़खानी की शिकायत पर सुरक्षाकर्मियों ने कोई कार्रवाई नहीं की और इसके उलट उन्होंने छात्राओं पर अनुचित टिप्पणी की. यानी छात्राओं का यह आरोप सही है कि सुरक्षाकर्मी ने पीड़िता से कहा कि आखिर वह शाम 6 बजे के बाद बाहर क्यों निकली. यहां आपको बता दें कि चीफ प्रॉक्टर लगातार यह कहते रहे कि सुरक्षाकर्मियों ने कोई भी टिप्पणी पीड़िता पर नहीं की थी.
सुरक्षा में कोताही
प्रशासन के तमाम दावों के विपरीत 22 तारीख को जब छात्राएं सड़कों पर उतरीं और वह प्रदर्शन पर बैठ गए तब भी उचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गई.
संवाद के सभी दरवाजे प्रशासन ने किए बंद
रिपोर्ट में कहा गया कि प्रशासन के पास 36 से 48 घंटों के बीच छात्राओं से संवाद करने के कई मौके थे, पर उन की तरफ से इसकी कोई पहल नहीं हुई. छात्र इकट्ठा होते गए लेकिन BHU प्रशासन ने ऐसी कोई भी कोशिश नहीं की जिससे भीड़ कम हो. वहीं अलग-अलग छात्र संघ के नेता भी इस आंदोलन में जुड़ते चले गए.
कुलपति के छात्राओं से न मिलने से मामला और बढ़ा
22 सितंबर को छात्राएं विश्वविद्यालय के मेन गेट पर कुलपति का इंतजार कर रही थीं, मगर सुरक्षा का बहाना देकर कुलपति का वहां न जाना एक भारी गलती थी. अगर उनको सुरक्षा के इंतजाम कम लग रहे थे, तो वह प्रशासन से अधिक सुरक्षा की अपील कर सकते थे.
पुलिस प्रशासन पर भी जरूरत से ज्यादा सख्ती के आरोप
कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पुलिस ने जरूरत से ज्यादा बल का प्रयोग किया और पत्रकारों पर जो लाठी चार्ज किया गया वह अनावश्यक था और उसको अवॉइड किया जा सकता था. हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मामले की भी पूरी जांच हो रही है कि पुलिस द्वारा न्यूनतम प्रयोग बाल का इस्तेमाल किया गया है कि नहीं.