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ऑपरेशन डर्टी पॉलिटिक्स: स्टिंग से यूपी चुनाव पर बड़ा खुलासा, डमी कैंडिडेट तय करते हैं हार-जीत

पहली बार 'आज तक' ने यूपी की चुनावी मंडी में डमी कैंडिडेट वाली राजनैतिक दुकानों का कैमरे पर पर्दाफाश किया है. यूपी चुनाव से पहले ये सिस्टम की नींद तोड़ने वाला सबसे बड़ा खुलासा है.

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स्टिंग ऑपरेशन से खुलासा
स्टिंग ऑपरेशन से खुलासा

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उत्तर प्रदेश में सभी राजनैतिक दल अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगे हैं. लेकिन इन तैयारियों के बीच राजनीति की वो दुकानें खुल चुकी हैं, जिनमें डमी कैंडिडेट बिक रहे हैं. डमी कैंडिडेट यानी वो उम्मीदवार, जिन्हें चुनावी जीत के मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. ये विरोधियों का वोट काटने से लेकर अपने पक्ष में प्रचार करने में लगाए जाते हैं. और ये सब चुनाव आयोग के नियमों की धज्जियां उड़ाकर सिस्टम को धोखा देते हुए किया जाता है.

पहली बार 'आज तक' ने यूपी की चुनावी मंडी में डमी कैंडिडेट वाली राजनैतिक दुकानों का कैमरे पर पर्दाफाश किया है. यूपी चुनाव से पहले ये सिस्टम की नींद तोड़ने वाला सबसे बड़ा खुलासा है.

पढ़ें कॉन्ट्रैक्ट किलर्स की हमारे रिपोर्टर से हुई बातचीत-

रिपोर्टर- अब मुझे अमाउंट बताइये जल्दी.

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वसी अहमद- देखिए, कैंडीडेट को पैसे तो मैं बाद में दूंगा. अभी पार्टी चलाने के लिए 1 करोड़ रुपये लगेंगे.

रिपोर्टर- 1 करोड़ पार्टी के लिए मांग रहे हैं आप, ठीक है. पर कैंडिडेट कितना होगा चुनाव लड़ने के लिए?

वसी अहमद- देखिए डमी कैंडीडेट को 10 लाख रुपये भी दे दो काफी है.

रिपोर्टर- अच्छा ये डमी कैंडिडेट वाली बात कहीं खुल ना जाए चुनाव आयोग के सामने. इसका ध्यान रखिएगा.

राजेश कुशवाहा- देखिये, चुनाव आयोग आपका कुछ भी नहीं कर सकता. चुनाव आयोग इसलिए कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते हमने अपने प्रत्याशी घोषित किया है. प्रत्याशी प्रचार कर रहा है या हमारा प्रत्याशी गायब है, इससे चुनाव आयोग को क्या लेना देना. हमने गाड़ी रजिस्टर करवाई है, ठीक है. किसके लिए प्रचार कर रही है, इससे निर्वाचन आयोग को कोई लेना देना नहीं है.

नेतागीरी की दुकानें चलाने वाले ये वो डीलर हैं, जिन्हें 'आज तक' की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम ने बेनकाब किया है और पर्दाफाश किया है, सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व चुनाव में उस डर्टी गेम का जो परदे के पीछे ऐसे लोगों के जरिए खेला जाता है. इनकी राजनैतिक दुकानों में करोड़ों रुपये में कैंडिडेट बिकते हैं, वो कैंडिडेट जो दूसरे कैंडिडेट के लिए काम करते हैं, वो कैंडिडेट जो दूसरे कैंडिडेट का प्रचार करते हैं, वो कैंडिडेट जो दूसरे कैंडिडेट के वोट काटते हैं. ये बड़े-बड़े नेताओं और बड़ी-बड़ी पार्टियों का सीक्रेट हथियार बनते हैं. ऐसी 1900 से ज्यादा अनजानी पार्टियां हैं, जो चुनाव की मौसम में अपनी दुकानें खोलकर बैठ जाती हैं.

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चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक किसी राज्य के विधानसभा चुनाव में एक उम्मीदवार अधिकतम 16 लाख रुपये प्रचार में खर्च कर सकता है. उम्मीदवार को प्रचार के लिए 10 गाड़ियों की इजाजत होती है और हर बूथ पर दो पोलिंग एजेंट मिलते हैं. डमी कैंडिडेट से मुख्य उम्मीदवार को प्रचार में डबल खर्च, डबल गाड़ियां और डबल पोलिंग एजेंट मिल जाते हैं. इसके अलावा अक्सर डमी कैंडिडेट के जरिए उम्मीदवार अपने विरोधी उम्मीदवार के वोट में सेंध लगाते हैं. डमी कैंडिडेट तभी पकड़ा जाता है जब उसकी गाड़ी से किसी और की चुनाव सामग्री या झंडा बरामद हो.

विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए सिर्फ 10 हजार रुपये की जमानत राशि होती है. किसी के चुनाव लड़ने पर रोक नहीं है इसलिए अक्सर नेता डमी कैंडिडेट का सहारा लेते हैं. ये डमी निर्दलीय भी हो सकते हैं और चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड किसी अनजाने दल के भी हो सकते हैं. यूपी में पिछले विधानसभा चुनाव में 403 सीटों पर कुल 223 पार्टियों के उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था. एक अनुमान के मुताबिक यूपी में पिछले चुनाव में कम से कम 2 हजार डमी कैंडिडेट खड़े किए गए थे.

एक बार फिर यूपी चुनाव की तैयारियां चल रही हैं तो डमी कैंडिडेट बेचने वाली दुकानें खुल चुकी हैं. कैसे ये दुकानें चलाने वाले डमी कैंडिडेट बेच रहे हैं और एक-एक डमी कैंडिडेट का रेट क्या है? ये चौंकाने वाला खुलासा आप पढ़ सकते हैं-

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वसी अहमद- सुनिए, डमी की बात ये है कि मेरा दल दूसरा भी रजिस्टर्ड है. मैं उससे डमी खड़ा कर दूंगा. 'राष्ट्रीय आवामी दल' से. वो भी साइन मेरा ही होता है.

रिपोर्टर- दूसरा कौन सा दल है, बताया आपने?

वसी अहमद- 'राष्ट्रीय आवामी दल', उसका भी राष्ट्रीय अध्यक्ष मैं ही हूं.

रिपोर्टर- ये चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड है?

वसी अहमद- हां, रजिस्टर्ड है.

वसी अहमद ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस नाम के संगठन के राष्ट्रीय संयोजक बरेली के रहने वाले हैं. लेकिन यूपी चुनाव में डमी कैंडिडेट वाली डील करने के लिए ये दिल्ली तक पहुंच गए. 'आज तक' की स्पेशल टीम खुद को यूपी के लिए एक राजनैतिक दल का चुनावी कैंपेन करने वाला बताकर इनसे दिल्ली में मिली तो वसी ने 'राष्ट्रीय आवामी दल' नाम की अपनी एक पार्टी का खुलासा कर दिया.

रिपोर्टर- 'राष्ट्रीय आवामी दल'. कब करवाई थी?

वसी अहमद- ये 2002 में.

रिपोर्टर- इसी नाम से है?

वसी अहमद- हां, 'राष्ट्रीय आवामी दल'

रिपोर्टर- लेकिन इस नाम पर, 'राष्ट्रीय आवामी दल' पर कभी कोई इलेक्शन लड़वाया है आपने?

वसी अहमद- हां 2002 में एसेंबली इलेक्शन लड़वाया 10.

रिपोर्टर- 10 सीट से?

वसी अहमद- हां, लड़ा दिए थे.

रिपोर्टर- यूपी?

वसी अहमद- यूपी, आपकी दुआ से.

वसी अहमद राष्ट्रीय आवामी दल के नाम पर 2002 में 10 सीट से डमी कैंडिडेट उतार चुके हैं, जो दूसरे दलों के उम्मीदवारों के लिए चुनावी फायदा कराने के लिए लड़वाए गए थे. डमी कैंडिडेट के फायदे गिनाकर वसी अहमद डील करने लगे.

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रिपोर्टर- थोड़ा सा मेरी जानकारी के लिए बता दो कि डमी के फायदे क्या क्या होते हैं?

वसी अहमद- डमी के फायदे ये होते हैं, डमी की गाड़ियां लग जाती हैं. डमी के आदमी को सुरक्षा मिल जाती हैं. वर्कर वो उन्हीं का होता है. सिक्योरिटी, गाड़ियां लेकर उस बजट से कुछ कैंडीडेट ने खर्चा इधर दिखाया कुछ उसका दिखाया.

रिपोर्टर- अच्छा.

'राष्ट्रीय आवामी दल' यूपी में दस लोग भी इस पार्टी का नाम नहीं जानते होंगे. लेकिन चुनाव आयोग में ये पार्टी रजिस्टर्ड है और जब चुनाव आते हैं तो ये दूसरे कैंडिडेट के फायदे के लिए अपनी दुकानें खोल कर बैठ जाते हैं. ऐसे कई चेहरे हैं, ऐसे कई अनजान राजनैतिक दल हैं, जो यूपी चुनाव से पहले राजनीति के डर्टी गेम में लगे हैं.

एक राजेश भारती हैं. इनकी भी अपनी सियासी दुकान है. स्वराष्ट्र जन पार्टी के नाम से, जिसके ये अध्यक्ष हैं. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के राजेश भारती ने अपनी पार्टी 2011 में चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड करवाई. चुनाव के लिए डमी कैंडिडेट का धंधा तब से चल रहा है.

राजेश भारती- वो अपनी पार्टी का झंडा लगाएगा, आपकी पार्टी का झंडा नहीं लगाएगा. वो अपना पोस्टर लगाएगा, अपने नाम पर पास लेगा गाड़ी का. वो स्वयं घूमेगा, अब घुमते समय समाज में बैठ कर के क्या बातें करता है, वो आपकी बात कह देगा. लेकिन चलेगा वो प्रत्याशी अपनी पार्टी का.

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रिपोर्टर - यही तो बात कह रहे हैं.

राजेश भारती - प्रचार करने को प्रचार करेगा.

आज तक की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम ने राजेश भारती जैसे कई चुनावी धंधेबाज़ों को पकड़ा, जो खास तौर पर चुनाव के मौसम में एक्टिव हो जाते हैं और इस फिराक में रहते हैं कि कोई बड़ा राजनैतिक दल या कोई उम्मीदवार उनसे डमी कैंडिडेट की डील कर लेगा.

एक शारिक उस्मानी 'अपना देश पार्टी' नाम के राजनैतिक दल के कर्ताधर्ता और इस दल के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी हैं. हमारी बातचीत में ये डमी कैंडिडेट के सीक्रेट डर्टी गेम के मास्टर निकले.

शारिक उस्मानी- हर तरह की प्लानिंग है आदमी के पास. भाई देखिये दो चीजें हैं आजकल के दौर में, अब जो माहौल चल रहा है, सबसे पहले तो आप पैसे से सब कुछ खरीद सकते हैं, दूसरी बात आपकी नीति ऐसी होनी चाहिए की आपकी बात उसके दिमाग में आप किस तरह से बिठाएंगे कि वो आपकी बात मान ले.

शारिक उस्मानी 2017 के यूपी चुनाव में हमारे कैंडिडेट को फायदा पहुंचाने के लिए अपनी पार्टी से डमी कैंडिडेट उतारने को तैयार थे. लेकिन इसके लिए जो रकम उन्होंने मांगी वो चौंकाने वाली थी.

शारिक उस्मानी- कम से कम जैसे 20 कैंडिडेट हो गए. 10 से 12 करोड़ रूपये तो कम से कम खर्चा आएगा ही आएगा. 20 कैंडिडेट में कम से कम.

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रिपोर्टर- कितना ?

शारिक उस्मानी- कम से कम 10 करोड़ मान के चलिए आप.

रिपोर्टर- 10 लाख?

शारिक उस्मानी- 10 करोड़.

20 कैंडिडेट उतारने के लिए 10 से 12 करोड़ रुपये का खर्च. यानी हर डमी कैंडिडेट के लिए कम से कम 50 लाख रुपये का रेट. नेतागीरी की हर दुकान का रेट अलग है. पार्टी का नाम किसी ने ना सुना हो उम्मीदवार खड़े करके फायदा पहुंचाना. चुनावी धंधे का खुला खेल चल रहा है.

'आज तक' की टीम ने यूपी चुनाव में डमी कैंडिडेट का धंधा करने वाले एक और शख्स को पकड़ा. नाम राजेश कुमार कुशवाहा, जो खुद को 'भारत रक्षक क्रांति पार्टी' नाम से एक राजनैतिक दल के उपाध्यक्ष बताते हैं. जब यूपी चुनाव के लिए डमी कैंडिडेट की बात हुई तो राजेश खुद डमी कैंडिडेट बनने के लिए तैयार हो गए.

सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि इन सियासी दुकानों का जाल हर तरफ फैला है. ये कहीं भी किसी भी इलाके से किसी भी सीट से चुनाव में डमी कैंडिडेट खड़े कर देने का दावा करते हैं.

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