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मोदी के 'राइट हैंड' का हुक्‍म नहीं मानेंगे यूपी के बीजेपी नेता!

यूपी में बीजेपी के नेताओं और विधायकों पर लोकसभा चुनाव लड़ने का भूत इस कदर सवार है कि वो पार्टी द्धारा दी जा रही जिम्मेदारी उठाने से भी पीछे हटने लगे हैं. प्रदेश में बीजेपी के कई नेताओं ने लोकसभा चुनाव के प्रदेश प्रभारी और बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी के करीबी अमित शाह द्धारा दी गई जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया है.

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यूपी में बीजेपी के नेताओं और विधायकों पर लोकसभा चुनाव लड़ने का भूत इस कदर सवार है कि वो पार्टी द्धारा दी जा रही जिम्मेदारी उठाने से भी पीछे हटने लगे हैं. प्रदेश में बीजेपी के कई नेताओं ने लोकसभा चुनाव के प्रदेश प्रभारी और बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी के करीबी अमित शाह द्धारा दी गई जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया है.

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दरअसल, लोकसभा चुनाव में बूथ मैनेजमेंट और प्रचार की जिम्मेदारी निभाने के लिये अमित शाह ने गुजरात की तर्ज पर पालक और संयोजक पदों पर नेताओं की नियुक्ति के निर्देश दिए. लेकिन, इनमें कई नेता ऐसे हैं जो खुद ही लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं. उन्हें डर है कि ऐसा करने से कहीं उनका टिकट न कट जाए, लिहाजा वो पालक और संयोजक की जिम्मेदारी लेने में हिचकिचा रहे हैं.

आम चुनाव नजदीक आते ही राजनैतिक पार्टियों में टिकट को लेकर उठापटक शुरु हो गई है. बीजेपी का हाल भी अन्य पार्टियों की तरह है. पार्टी के नेताओं का कहना है कि वो लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं और उसी के मुताबिक काम करेगें. हमीरपुर से बीजेपी की एमएलए साध्वी निरंजन ज्योति को हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र का पालक बनाया गया लेकिन ये खुद फतेहपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहती हैं, लिहाजा इन्होंने अमित शाह के ऑफर को ठुकरा दिया है. हालांकि, साध्वी खुले तौर पर ऐसा मानने से इनकार कर रही हैं. उन्‍होंने कहा, 'मैंने संयोजक या पालक का पद ठुकराया नहीं है. मैं फतेहपुर से लोक सभा चुनाव लड़ना चाहती हूं, इसलिए मैंने खुद अपना दायित्व वापस किया है ताकि इस पद की जिम्‍मेदारी किसी और को मिल सके. बीजेपी में नियम है कि एक पद पर एक ही व्यक्ति रह सकता है.'

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साध्‍वी निरंजन ज्‍योति की तरह एक और बीजेपी नेता हैं नवीन जैन. जैन को आगरा का कोऑर्डिनेटर बनाया गया लेकिन वो फतेहपुर सिकरी से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं. लिहाजा कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी लेने से कतरा रहे हैं. अगर पार्टी मजबूर करेगी तभी ये जिम्मेदारी लेगें.

यूपी में लोकसभा की 80 सीटे हैं. मोदी की रैलियों की सफलता से उत्साहित भाजपा को उम्मीद है कि इस बार उसकी सीटों का आकंड़ा 40 के पार जा सकता है. लिहाजा भाजपा किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती. टिकटों को लेकर पार्टी के नेताओं की बेताबी का आलाकमान को भी है, इसलिये पार्टी अपने नेताओं और विधायकों की इस आशंका को मिटाना चाहती है कि पालक या कोई और पद की जिम्मेदारी लेने से उनका टिकट कट सकता हैं.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी नें इस बात से इंकार किया है कि जिस भी नेता को संयोजक या पालक बनाया गया है उसे पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ाएगी. वाजपेयी के मुताबिक, चुनाव कौन लड़ेगा, कौन नहीं ये पार्टी तय करेगी, नेता नहीं और अगर पार्टी के नेताओं को ऐसी कोई आशंका है तो उस पर मीडिया में बयानबाजी के बजाय पार्टी फोरम पर बातचीत की जाएगी. जाहिर है बीजेपी चुनाव लड़ने के इच्छुक अपने नेताओं की बेचैनी को सतह पर नहीं आने देना चाहती है.

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