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यूपी: सहकारिता की सियासत से मुलायम परिवार साफ, 30 साल बाद हुआ बड़ा बदलाव

उत्तर प्रदेश सहकारिता क्षेत्र में तीन दशक से कायम मुलायम परिवार का दबदबा अब पूरी तरह से खत्म हो गया है. को-ऑपरेटिव फेडरेशन (पीसीएफ) के सभापति पद से शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव बेदखल हो गए हैं और अब उनकी जगह वाल्मीकि त्रिपाठी पीसीएफ के सभापति और रमाशंकर जायसवाल उपसभापति निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं.

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मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव
मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पीसीएफ पर शिवपाल यादव का दबदबा कायम था
  • सहकारिता क्षेत्र में अब पूरी तरह बीजेपी का कब्जा

उत्तर प्रदेश की सियासत में मुलायम परिवार का रुतबा लगातार कम होता जा रहा है. 2017 में सूबे की सत्ता से बेदखल होने के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में भले ही सपा के विधायकों की संख्या बढ़ी है, लेकिन राज्यसभा और विधान परिषद में सदस्य घटे हैं. वहीं, मुलायम परिवार की तीन दशक पुरानी सहकारिता की सियासत के मजबूत किले को भी बीजेपी ने पूरी तरह से ध्वस्त कर अपना दबदबा कायम कर लिया है. शिवपाल यादव के बीजेपी के नजदीक होने का भी सियासी फायदा नहीं मिल सका है और उनके बेटे की पीसीएफ की कुर्सी से छुट्टी हो गई है. 

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को-ऑपरेटिव फेडरेशन (पीसीएफ) लिमिटेड की प्रबंध कमेटी के सभापति और उपसभापति चुनाव में काफी लंबे समय बाद मुलायम परिवार का वर्चस्व टूटा है. वाल्मीकि त्रिपाठी पीसीएफ के सभापति और रमाशंकर जायसवाल उपसभापति निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं. इसी के साथ शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव पीसीएफ के सभापति की कुर्सी से बेदखल हो गए हैं. इस तरह से पीसीएफ पर बीजेपी का वर्चस्व कायम हो गया.

बीजेपी-आरएसएस से जुड़े लोगों की एंट्री 

पीसीएफ के सभापति बने वाल्मीकि त्रिपाठी बीजेपी के सहकारिता प्रकोष्ठ से जुड़े रहे और उपसभापति के तौर पर जीते रमाशंकर जायसवाल आरएसएस के अनुशांगिक संगठन सहकार भारती से जुड़े हैं. इस तरह बीजेपी ने पीसीएफ की प्रबंध समिति में सभी सदस्य बीजेपी और आरएसएस से जुड़े ही बनाए हैं. सपा के इस दुर्ग को भी बीजेपी ने भेदते हुए पूरी तरह से सहकारी समितियों में सपा का सफाया कर दिया. यूपी में यह पहला मौका है जब सपा सहकारिता की किसी भी शीर्ष संस्था पर काबिज नहीं है.

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सहकारिता राजनीतिक क्षेत्र में पीसीएफ ही एकमात्र ऐसी संस्था थी, जिसका चुनाव बीजेपी सरकार के पहले कार्यकाल में नहीं हो सका था. सभापति और उपसभापति के पद पर बीजेपी ने संघ से जुड़े हुए दोनों नेताओं को बैठाकर भविष्य के लिए अपनी सियासी जड़ें मसबूती से जमाने की आधारशिला रख दी है. यूपी में 7500 सहकारी समितियां हैं, जिनमें लगभग एक करोड़ सदस्य संख्या है. बीजेपी ने इन समितियों पर अपना कब्जा जमा लिया है.

सहकारिता में सपा की आखिरी कुर्सी भी खिसकी

योगी सरकार के पहले कार्यकाल में यूपी कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, यूपी सहकारी ग्राम विकास बैंक, यूपी राज्य निर्माण सहकारी संघ लिमिटेड, यूपी राज्य निर्माण एवं श्रम विकास सहकारी संघ लिमिटेड के साथ अन्य शीर्ष सहकारी संस्थाओं पर बीजेपी का झंडा पहले ही लहरा चुका था. ऐसे में सिर्फ पीसीएफ पर ही विधायक शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव का कब्जा था. बीजेपी ने इस कुर्सी पर भी काबिज होकर सहकारिता क्षेत्र की सियासत से सपा और मुलायम परिवार को दूर कर दिया है. 

बता दें कि मुलायम सिंह यादव साल 1977 में पहली बार सहकारिता मंत्री बने तो उन्होंने सहकारिता क्षेत्र में अपना दबदबा स्थापित किया. मुलायम सिंह यादव जब मुख्यमंत्री रहे, तब भी इस विभाग को या तो अपने पास रखा या फिर अपने छोटे भाई शिवपाल यादव को सौंपा. सपा ने अपनी राजनीति में सहकारिता का भरपूर इस्तेमाल किया. सहकारिता क्षेत्र की संस्थाओं पर मुलायम परिवार का ही कब्जा रहा है. 

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10 साल से कुर्सी पर थे शिवपाल के बेटे आदित्य

शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव ही पिछले 10 सालों से पीसीएफ के सभापति की गद्दी पर बैठे हुए थे. हालांकि इस बार उन्होंने प्रबंध समिति सदस्य के लिए नामांकन नहीं किया. वहीं, पीसीएफ की प्रबंध समिति में जो 11 सदस्य निर्विरोध जीते हैं उनमें बीजेपी के सहकारिता प्रकोष्ठ और आरएसएस के वैचारिक संगठन सहकार भारती से जुड़े लोग शमिल हैं. इस तरह से बीजेपी ने अपने पीसीएफ की कुर्सी पर काबिज होकर सपा के किले को पूरी तरफ सफाया कर दिया. 

उत्तर प्रदेश के सहकारिता क्षेत्र में साल 1960 में पहले सभापति जगन सिंह रावत निर्वाचित हुए थे. इसके बाद रऊफ जाफरी और शिवमंगल सिंह 1971 तक सभापति रहे. इसके बाद सहकारिता की कमान प्रशासक के तौर पर अधिकारियों के हाथ में आ गई. साल 1991 में मुलायम सिंह यादव परिवार की एंट्री हुई. हाकिम सिंह करीब तीन माह के लिए सभापति बने और 1994 में शिवपाल यादव सभापति बने. 

भाजपा के काल में तत्कालीन सहकारिता मंत्री रामकुमार वर्मा के भाई सुरजनलाल वर्मा अगस्त 1999 में सभापति निर्वाचित हुए थे. बता दें कि सहकारिता क्षेत्र में सपा की पकड़ को बसपा भी नहीं तोड़ सकी थी जबकि 2007 से 2012 तक मायावती पांच साल तक मुख्यमंत्री रहीं. बसपा काल में सपाइयों ने कोर्ट में मामला उलझाकर चुनाव नहीं होने दिए थे और अपने सियासी वर्चस्व को बरकरार रखा था, लेकिन योगी सरकार ने दूसरे कार्यकाल में आते ही मुलायम परिवार का सहकारिता क्षेत्र से पूरी तरह से सफाया कर दिया. 

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