नरेंद्र मोदी सरकार ने योगी आदित्यनाथ सरकार के उस फैसले को गैर-कानूनी बताया है, जिसके तहत 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदेश दिया है. हालांकि केंद्र सरकार भले ही 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में रखने को असंवैधानिक करार देती हो लेकिन योगी सरकार अपने फैसले से डिगती हुई दिखाई नहीं दे रही है.
केंद्र सरकार चाहे कुछ भी कहे लेकिन योगी सरकार 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति मानती है और उन्हें अनुसूचित जाति के सर्टिफिकेट और सुविधाएं हासिल होंगी. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा फिलहाल हाइकोर्ट के आदेश से मिला है. जब तक अदालत का आखिरी फैसला इस पर नहीं आ जाता, तब तक उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा हासिल रहेगा.
योगी सरकार में मंत्री और सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने आज तक के साथ खास बातचीत में यह माना कि ये अदालत का अंतरिम आदेश है और जब तक अदालत का आखिरी फैसला इस मसले पर नहीं आता, तब तक सरकार न सिर्फ उन 17 जातियों को अनुसूचित जाति की तरह मानेगी बल्कि उन्हें अनुसूचित जातियों के सर्टिफिकेट और लाभ मिलते रहेंगे. वहीं इस मामले को लेकर उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य ने भी कहा कि ये फैसला कोर्ट के आदेश के बाद हुआ है. सरकार इसके तकनीकी पहलुओं को देखेगी.
बता दें कि बहुजन समाज पार्टी के नेता सतीशचंद्र मिश्र के सवाल के जवाब में राज्यसभा में सदन के नेता और केंद्र सरकार में मंत्री थावरचंद गहलोत ने 17 अनुसूचित जातियों के दलित जातियों में शामिल करने को असंवैधानिक कहा है. साथ ही यह भी कह डाला कि इसका अधिकार राज्य सरकार को नहीं है. केंद्र सरकार के एक इसी जवाब को लेकर विपक्षी दलों ने योगी सरकार को घेरना शुरू कर दिया. कांग्रेस ने कहा कि योगी सरकार धोखा दे रही है और यह 17 अति पिछड़ी जातियां अब कहीं की नहीं हैं. न तो यह ओबीसी में होगी और न ही यह दलितों में होंगी. ऐसे में बीजेपी ने उनके साथ खिलवाड़ किया है.
हालांकि चारों तरफ से इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की कोशिश हो रही है. लेकिन योगी सरकार इस मुद्दे पर अपने पांव पीछे खींचती नहीं दिखती बल्कि अदालत के फैसले का हवाला देकर इसे लागू करने की बात कह रही है.