बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की समीक्षा का ऐलान करके सबको चौंका दिया है. हालांकि मायावती की राजनीति को जानने वालों को 24 साल पहले की एक घटना याद होगी? जो उनकी राजनीति से परिचित नहीं हैं उन्हें हम लगभग ढाई दशक पहले की एक अहम राजनीति हलचल याद दिलाना चाहेंगे. आज से ठीक 24 साल पहले वो तारीख थी 3 जून 1995, जब मायावती अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव को किनारे लगाकर बीजेपी के समर्थन से उत्तर प्रदेश की सीएम बन गई थीं. इस बार वह सीएम तो नहीं बनने जा रहीं लेकिन एक तरह से मायावती ने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को सियासी धोखा दिया है. क्योंकि 2019 के चुनाव में अगर किसी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है तो भाजपा के बाद बसपा का ही नाम लिया जा रहा है.
2014 में बसपा का एक भी सांसद नहीं जीत पाया था लेकिन सपा से हाथ मिलाने के बाद बसपा के 10 सांसद जीतने में सफल रहे. जानकारों का यह भी कहना है कि अगर सपा के वोट बसपा को नहीं मिले होते तो इतने सांसदों का जीतना नामुमकिन था. कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश किसी बहाने से गठबंधन से अलग हो जाएंगे लेकिन उसके पहले मायावती ने अपने विचार जाहिर कर दिए.
3 जून 1995 को मायावती जब यूपी की सीएम बनी थीं उससे महज एक दिन पहले यूपी का चर्चित गेस्टहाउस कांड हुआ था. 1993 में राम लहर पर सवार को बीजेपी को यूपी की सत्ता से बाहर करने करने के लिए समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और बीएसपी प्रमुख कांशीराम ने गठजोड़ किया था. विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा साथ मिलकर लड़े. एसपी को 109 सीटें मिली और बीएसपी को 67 सीटें आईं. मुलायम सिंह यादव बीएसपी के सहयोग से अविभाजित यूपी के सीएम बने. लेकिन एसपी-बीएसपी की ये दोस्ती ज्यादा दिन तक नहीं चली. आपसी मनमुटाव की वजह से 2 जून 1995 को बीएसपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई.
बहुमत जुगाड़ करने के लिए सपा ने बसपा के कई विधायकों से संपर्क साधा, लेकिन बात नहीं बनी. 2 जून 1995 को ही मायावती लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में अपने एमएलए के साथ बैठक कर रही थीं. तभी कथित तौर पर समाजवादी पार्टी के उग्र कार्यकर्ताओं ने उनपर हमला कर दिया. इस घटना का मायावती की सियासी यात्रा पर गहरा असर पड़ा वो, तत्कालीन एसपी प्रमुख मुलायम सिंह यादव को कभी माफ नहीं कर सकीं. 24 साल तक दोनों राजनीतिक दलों में कोई संपर्क नहीं रहा. इस घटना के अगले ही दिन मायावती बीजेपी और दूसरे दलों के बाहरी समर्थन से सीएम बनी. बतौर सीएम ये उनकी पहली पारी थी. हालांकि सीएम पद का उनका ये कार्यकाल महज चार महीने का था. 17 अक्टूबर 1995 में ये सरकार गिर गई.
मायावती के साथ सियासी दोस्ती करने के लिए अखिलेश ने राजनीतिक दूरदर्शिता का परिचय दिया था. लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी की राजनीति में महागठबंधन नाम का अभिनव प्रयोग हुआ. सियासत के दो योद्धा मायावती और अखिलेश सालों पुरानी आपसी दुश्मनी को भूलाकर बीजेपी को रोकने के लिए एक साथ आए थे. पीएम नरेंद्र मोदी के उभार को रोकना दोनों के लिए चुनौती थी इसके लिए दोनों ने इस गठबंधन की जरूरत को समझा. इस गठबंधन को देश और उत्तर प्रदेश में बीजेपी के बरक्श एक वैकल्पिक राजनीति के तौर पर देखा गया था. लेकिन चुनाव नतीजों में मनचाहा नतीजा न मिलने के बाद इस गठबंधन पर संकट के बादल मंडरा रहे थे. मायावती ने ये कहकर कि अखिलेश लोकसभा चुनाव में अपनी पत्नी को भी नहीं जिता सके, महागठबंधन रूपी ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी है. उन्होंने यूपी के उपचुनाव अपने दम पर लड़ने की घोषणा कर दी है.