बसपा सुप्रीमो मायावती आज एससी-एसटी एक्ट में दुरुपयोग को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट की ओर से बदलाव किए जाने पर सरकार की आलोचना जरूर कर रही हैं, लेकिन एक सच यह भी है कि 11 साल पहले सत्ता में रहते हुए उनकी सरकार की ओर से इस कानून के जरिए किसी निर्दोष को अनावश्यक परेशान नहीं किए जाने की हिदायत दी गई थी.
सुप्रीम कोर्ट की ओर से एससी-एसटी एक्ट में किए गए कई बदलावों को लेकर दलित समुदाय में भारी रोष है और इसके विरोध में दलित संगठनों ने सोमवार को भारत बंद का आयोजन किया था. यह आयोजन कई जगहों पर हिंसक हो गया और लोगों ने तोड़फोड़, आगजनी, पथराव कर अपना रोष जताया. विरोध-प्रदर्शन और प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई के कारण कई लोगों की जान भी चली गई.
केंद्र सरकार की ओर दायर पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने पुराने फैसले पर किसी भी तरह से रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने इस मामले में सभी पार्टियों से अगले दो दिनों में विस्तृत जवाब देने को कहा है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिन बाद होगी.
सरकार दलितों को गुलाम बना रही
पिछले महीने देश की शीर्ष अदालत की ओर से किए गए बदलाव और दलित समुदाय की नाराजगी के बीच विपक्ष केंद्र पक्ष पर लगातार निशाना साध रहा है. भारत बंद के दिन उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने भी सरकार पर जमकर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र के मौजूदा रवैया को देखते हुए अनुसूचित जाति और जनजाति के सामने एक बार फिर से गुलाम बनने का खतरा दिख रहा है, लिहाजा दलित समाज में यह आक्रोश देखने को मिल रहा है.
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दाखिल किए जाने पर देरी को लेकर उन्होंने कहा, 'हम संसद में नहीं हुए तो क्या हुआ, हम अपनी ताकत के दम पर संसद के बाहर रहते हुए भी मोदी सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर करने में समर्थ हैं.' उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की कोशिश इस कानून को निष्क्रिय करने की है. उन्होंने मांग रखी कि एससी-एसटी एक्ट की पुरानी स्थिति बहाल की जाए.
मायाराज में FIR पर गिरफ्तारी पर लगी थी रोक
मायावती कोर्ट की ओर से किए गए बदलाव के बाद सरकार के रवैये की जमकर आलोचना कर रही हैं, लेकिन हकीकत यह भी है कि 2007 में जब वह उत्तर प्रदेश में सत्ता में थीं तो उस समय उनके कार्यकाल में मुख्य सचिव ने राज्य के आला पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया था कि इस कानून का दुरुपयोग न होने पाए और किसी निर्दोष को सजा न मिले.
2007 अक्टूबर में कैबिनेट के जरिये एक फैसला लिया था जिसमें संशोधन के जरिए एक्ट में जोड़ा गया कि यह भी ध्यान रखा जाए कि किसी निर्दोष व्यक्ति को अनावश्यक परेशान न किया जाए यदि विवेचना में किसी मामले में दोषी पाया जाए कि झूठ मामला बनाया गया है तो उस दशा में भारतीय दंड विधान की धारा 182 के अंतर्गत कार्रवाई की जाए.
उत्तर प्रदेश में एससी-एसटी एक्ट और दहेज उत्पीड़न एक्ट के तहत तमाम फर्जी मामले दर्ज करने की शिकायतें मिलती रही हैं.
सबसे बड़ी बात यह है कि इसी संशोधन के बाद उत्तर प्रदेश में 2007 में ही एफआईआर के बाद तत्काल गिरफ्तारी पर रोक भी लग गई थी. एक्ट के तहत दर्ज सभी एफआईआर पर पहले विस्तृत विवेचना के बाद ही कार्रवाई सुनिश्चित की जाती थी जिससे ये संदेश गया कि सरकार दलित उत्पीड़न एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर पर कार्रवाई करने से बचना चाहती है.
तब दुरुपयोग रोकने की दी थी हिदायत29 अक्टूबर, 2007 को मुख्य सचिव प्रशांत कुमार की ओर से राज्य के पुलिस महानिदेशक, सभी जोनल पुलिस महानिरीक्षक, समस्त परिक्षेत्रीय पुलिस उप महानिरीक्षक, समस्त जिला वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक को भेजे गए पत्र में सभी अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि एससी-एसटी एक्ट के पालन में पूरी तरह से ईमानदारी बरती जाए.
पत्र के जरिए कहा गया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम को पूरी निष्ठा और अधिनियम की भावनाओं के अनुरूप लागू किया जाए. इस समुदाय के सदस्यों को उत्पीड़न की दिशा में न्याय सुनिश्चित किया जाए. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के उत्पीड़न के मामले में त्वरित न्याय दिलाने को साथ-साथ यह भी ध्यान रखा जाए कि किसी निर्दोष व्यक्ति को अनावश्यक परेशान न किया जाए.'
सुप्रीम कोर्ट ने बीते 20 मार्च को महाराष्ट्र के एक मामले को लेकर एससी-एसटी एक्ट में नई गाइडलाइन जारी की, जिसके तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अधिनियम-1989 के दुरुपयोग पर बंदिश लगाने के लिए फैसला सुनाया गया. इसमें कहा गया था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी. पहले आरोपों की जांच डीएसपी स्तर का अधिकारी करेगा. यदि आरोप सही पाए जाते हैं तभी आगे की कार्रवाई होगी. इस फैसले के बाद दलितों में खासा रोष है.